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रनोगुणी आदि भोजन करने का फल भी रम विकार होने से सुस-प्रद नहीं होता।
अतण्य सन्महस्थों को उक्त प्रभार के भोजनों मे संदेव बचना चाहिये और साथ ही जो मादक द्रव्य है उनका भी सेवन न करना चाहिये जैसे कि मदिरा पान, अफीम, भाग, परस, मुल्फा, गाना, तमासू, सिगरेट इत्यादि । तात्पर्य यह है कि जिन पदार्थों के सेवन मे बुद्धि में विप्लव पैदा होता है और सदाचार की दशा निगडती हो तो इस प्रकार के पदार्थों को पदापि सेवन न करने चाहिये ।
२ आचार शुद्धि --जब आहार की शुद्धि भली प्रकार से होजाय तो फिर आचरण की शुद्धि भी भली प्रकार की जाती है जैसे कि -आचरण शुद्धि मे प्रथम मात व्यसनो पा परित्याग कर देना चाहिये क्याकि उनके सेवन मे परम पष्ट और धर्म से पराइमुस होना पड़ता है। जिम प्रकार साप से कौतुहल या उपदामादि दिया हुआ कभी भी मुस प्रद नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सात व्यसन सेवन किये हुए सुखप्रद नहीं होते।
तथा जिस प्रकार सम्राट का अविनय किया हुआगीन ही अशुभ फल देने में उपस्थित होजाता है ठीक उसी प्रकार सात व्यसन भी सेवन किये हुए शीघ्र ही विपत्तियो का मुह दिग्पलाते हैं। अत सद्गृहस्थ इन्हें कदापि सेवन न करें।