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है सय यह पहिले ही डावाडोर होने लग जाता है किंतु जब वा बुझने लगता है सब बुझने से पहिले एक मार तो प्रकाश भली प्रगर कर देता है सदनु शात होजाता है।
ठीक इसी प्रकार जो रमी अन्याय से उत्पादन की जाती है उसका भी प्रकाश तद्वत् ही जानना चाहिये।
अतण्य अयायसे रक्ष्मी कभी भी उत्पादन म करना चाहिये । जय यह आत्मा उक्त तीनों शुद्धियों से विभूषित हो जायगा तब वह रोकिन पक्ष में सदाचारी पहलाने लग जायगा ।
इसी कारण से द्रव्यात्मा को चारित्रात्मा भी कहा जाता है क्योंकि आत्मा के आत्म प्रदेश जय सम्यग्यारिन म प्रविष्ट होजाते हैं तय यह आत्मा चारित्रात्मा बन जाता है । जय के प्रदेश मिण्याचरण में प्रविष्ट होते हैं तब उस आत्मा को मिथ्याचारिणी (पदाचारी) यहाजाता है। __ सो सिद्धांत। यह निकला कि उपाधिभेद से द्रव्यात्मा पारिजात्मा भी हो जाता है।
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