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सो जिम प्ररार अधिर वर्षा या याढ के कारण मे लोग दुग्गों से पीटित होनाते है ठीक उसी प्रकार सट्टा आदि के यापार में रमी की वृद्धि की यही दशा होती है।
अतएर निवर्प यह पिला कि सेत म पड़ी हुई यूदों में समान थाहा भी व्यापार लक्ष्मी की वृद्धि कर देता है किंतु याद के समान काय करनेवारे भद्रादि के द्वारा लक्ष्मी की धृद्धि की इच्छा कभी भी न करनी चाहिये ।
क्योंकि उपकी वृद्धि का फर उत्त दृष्टात द्वारा विचार महे । तथा इस बात को भली भकार विचार मके हैं कि जय आचार गुद्धि भली प्रकार से हो जायगी तय पिर यवगर (व्यापार) शुद्धि भी पी जासकेगी।
___क्योंकि व्यापार गुद्धि के मूल पारणीभूत आहार शुद्धि या आचार शुद्धि क्या थी गई है__ न्यापार शुद्धि -व्यापार-शुद्धि पा मम्बन्ध प्रथम दोनो गुद्धिया के माथ हूँ और उक्त दोनों शुद्धिया का सबघ व्यापार गुद्धि के साथ है। अत इन तीनों का परस्पर आश्रय सम्बन्ध है सो निस व्यापार में महत् फ्मा का यध पडता हो और वह व्यापार अनाय भावों की सीमा तक पहचता हो वह -यापार सद्गृहस्थ यो कदापि न करना चाहिय ।
फ्याकि जब यह शरीर ही क्षण विनश्वर है तो भला फिर क्यों इसकी रक्षा के लिये
र द्वारा इसरी