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पाठ छठ्ठा । बलवीर्यात्मा ।
जिम प्रकार पूर्व पाठ में चारित्रात्मा का वर्णन किया गया है ठीक उसी प्रकार इस पाठ में बलवीर्यात्मा का वर्णन किया जाता है क्योंकि ज्ञात रहे कि आत्मद्रव्य के मुख्य उपयोग जोर वीर्य लक्षण ही शारीने प्रतिपादन किये हैं ।
सो बलवीर्यात्मा का आत्मभूत लक्षण है इसीसे योगा की प्रवृत्ति सिध्द होती है और इमीसे आत्म स-त्रिय माना जाता है । अतरायकर्म के क्षय या क्षयोपशम से इसका निवास होता है । फिर इसकी प्रवृत्ति योगों द्वारा प्रत्यक्ष नेसने में आती है तथा ज्ञानादि में उपयोगशक्ति का व्यक्त करना भी इसीका काम है ।
दान देने की शक्ति १ लाभ उप्तादन करने की शक्ति उपभोग पों के भोगने की शक्ति ३ परिभोग की शक्ति १ अपने दल के दिमाने की शक्ति ५ यह सब शक्तिया बलवीर्य के सिरपर ही निर्भर हैं ।
तथा यावन्मान पाच इंद्रिया, मन, वचन और काय के योग, श्वासोश्वास के प्रवृत्ति करने की शक्तिया सव इमी पर निर्भर है । अतएव वीर्य सम्पन्न होने से द्रव्यात्मा को नटवीर्यात्मा भी कहा जाता है। तथा यावन्मान तेजसादि शरीर की शक्तिया है
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बलवीर्यात्मा ही है ।.