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सो आर्य व्यापारों द्वारा भी इसकी भली प्रकार मे
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रक्षा की जा सकती है । अन प्रश्न इसमें यह उपस्थित होता
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है कि वे अनार्य व्यापार कौन कौन से हैं जिनसे बचने का
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उपाय किया जाय। इस प्रकार की शंका के उत्तर में कहा जा सका है कि इस प्रकार के अनेक व्यापार है जैसे कि मास का बेचना, मन्यि का बेचना, मादक द्रव्यों का बेचना, चमड़े का व्यापार करना, दातों का व्यापार करना, दातों के आभूषण बनाकर बेचना, क्न्या विक्रय करना, निश्वासघात करना, इत्यादि अनेक प्रकार के व्यापार जो गृहस्थोंके लिये करने अयोग्य हैं । इनका पूर्ण विवरण इसी पुस्तक के चतुर्थ भाग में प्रतिपादन किये हुए थानक के १० प्रती का स्वरूप भली प्रकार जानना चाहिये और उन्हीं तो के अन्तर्गत सातना जो उपभोग परिभोग नत है उसे सावधानी से पटना चाहिये ।
क्योंकि उमी त म आहरशुद्धि और का भली भाति वर्णन किया गया है । १५ गृहस्थों के लिये निषेध किया गया है ।
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व्यापारशुद्धि कर्मान्न का
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' मॉथम यह भी विचार अन्त करण में उत्पादन करना चाहिये कि जो लक्ष्मी अन्याय मे वृद्धि पाति है उसकी स्थिरता चिरस्थायी नहीं होती और न उसका प्रकाश चिरस्थायी होता है जैसे कि, जब दीपक ज्ञात होने को आता