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उनके नाम ये हैं जैसे कि -जुआ, माम, मदिरा, आखेट कर्म (शिकार ),वैश्या संग, परस्त्री मेवन और चार्य कर्म । इनका फल प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो ही रहा है । अतएप इनका सविस्तृत स्वरूप नहीं लिखा, किंतु इतना हम लिख देना उचित ममझते हैं कि प्रथम व्यसन के अन्तर्गत (सट्टाभी है) सर ही यमन आजाते हैं । जो इस व्यमन में पडगए हैं पे भी प्राय: अपनी स्वकीय लक्ष्मी को सोकर निर्धन दशा को प्राप्त होगए हैं जिसमे वे नाना प्रकार के कष्टो या अन मुह देस रहे हैं।
यदि कल्पना भी करलो कि कोई व्यक्ति उक्त क्रिया मे कुछ समय के लिये लक्ष्मीपति बन भी गया तो उसकी वह विभूति चिरस्थायी नहीं रह मक्ती । जिस प्रकार यदि थोड़ी।
दें क्सिी खेत (क्षेत्र) में पडती हों तो वे बूद सेती की वृद्धि में अमृत के ममान काम करती हैं किंतु यदि उमी सेत में परिमाण से अधिक वर्षा पड़ती हो और साथ ही रिसी नदी की वर्षा अधिक होने के कारण से वाढ आजाय तो वह पाढ खेती का नाश करती हुई जो उस सेत में कोई अन्य जाति के वृक्ष हो तो उनको भी हानि पहुचाती है। । तथा यदि वही वाढ नगर की ओर आजाय तो नागरिक लेग परम दुखित होते हैं और उस बाढ के द्वारा नागरिक लोगों के प्रासादि (घर) स्थान, धन और माल सर अव्यवाधित होजाता है । इतना ही नहीं किंतु सोडादि पदाथों में जर प्रवेश क्यिा आ बहुत मी हानि परजाता है। . .
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