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ये अपमृत्यु, रोग और शोकादि मयुक्त दे रहा करते है । उनके शरीर की याति या आत्मve neा निषेट पर जाता है । अपने यन्याण के लिये इस प्राये भित होकर अपने अभीष्ट पी सिद्धि करनी चाहिये क्योंकि यावन्मात्र स्वाध्याय या ध्यानादि तप है ये सब इस की स्थिरता में ही स्थिर या कार्य साधक यन सकते है । अत वियप यह निफ्लाय भवश्यमेव धारण करना चाहिये ।
मथ प्रकार से परिग्रह का परित्याग करना धर्माप वरण को छोडकर और किसी प्रकार का भी सचय न करना तथा समार म य धन्मान ऐश उमस हो रहे हैं उनमें प्राय मुख्य कारण परिषद का ही होता है क्योंकि ये मत्र धनादि ष्ठे के कारणी भूत यथा किये गए हैं। इसके कारण से सम्बधियों का सम्बन्ध छूट जाता है परसर मृत्यु के कारण मे विशेष दुःखों का अनुभव करते है, अतएव महर्षि परिग्रह के धन से सर्वथा विगुप्त रहे ।
सर्व प्रकार से रात्रि भोज का परित्याग करना - जीय रक्षा के लिये या आत्म समाधि या तप कम के लिये रात्रि भोजन भी करना चाहिये । कारण कि प्रथम तो रात्रि भोजन करने से प्रथम प्रत का सर्वधा पालन दो दी नहीं मता । द्वितीय समाधि आदि क्रियाओं के करते समय ठीक पाचन न होने से रात्रि भोजन एक प्रकार का विघ्न उपस्थित कर देता है ।
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