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at म है जिसके द्वारा सर्व
ear after प्रकार से हमें का आना पद किया जाय। जिस प्रकार मगेवर के पाच नालों (माग) म पानी आता रहता है और जब यह जल आने पे माग निरोध किये जायें तप यह जल आपा यह होता है। उसी प्रकार आत्मा रूपी मरावर में कर्म रूपी जल आता रहता है । जब मागों का रोध किया जाय तब वह धर्म रूपी जल आग पूर्व कर्म रूप जल ध्यार, तपादि द्वारा मुवा दिया जाता ६ जिसमे आत्मा फिर विशुद्धि का प्राप्त होता है । परंतु त्रियाण भी प्रकार मे यदि की जायें तो, जे
होनाता है और फिर
१ सब प्रकार से प्राणातिपात या परित्याग - अधात सूक्ष्म या स्थूल अपने लिये या परके लिये अथवा दोना के लिये किसी प्रकार से भी जीव की हिंसा न की जाय ।
साथ ही मन से, पाणी मे या वाया मे न स्वय
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जाय
तथा जो हिंसा
हिंसा की जाय न औ करते हैं उनकी अनु
यात सामाधिक मानी
किसी प्राणी से
की प्राप्ति क्यों
समाधि अवश्यमे
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अतएव प्राप
प्रथम उक्त प्रत
क्योंकि यह 'किसी प्राणी का
उसे