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क्योंकि मुद्धि की सिद्धि में सम्यदर्शन ही क्रिया सावरता है अन्य दर्शन | तु
इसलिये सिद्धानयादियों ने लिया है कि पारिव तो कदाचित मुक्ति की प्रति भी करले परंतु दर्शन हीन का तो retina गामी हो ही नहीं गया।
सो उही कारणों से दर्शन की अपेक्षा मे श्रज्यात्मा को दमा भी कहा जा सभा है ।
साथ में यह भी पहना अनुचित of
होगा कि सम्यग
a ft अश्यमेव साध्यान
दान के लिये अ वरना राहिये ।
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पाठ पाचवाँ । चारित्रात्मा ।
निम प्रकार दर्शनात्मा विषय घणन किया गया है ठीक उसी प्रकार चारित्रात्मा विषय वणन किया जाता है ।
आत्मा की रक्षा करने वाला और सुगति मार्ग को दिग्बलाने पाला शेर और परलोक में यश उत्पादन करने वाली आत्मा की एक मात्र अतरग लक्ष्मी सदाचार ही है।