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अधात् वा अपने अनरण भावों से रूपी पदार्थों में देखने साल उमादन परलेता है । जय यह आत्मीय उपयोग | सामान्य प्रकार मे पदायों को देखता है उस समय मे अवधि दानी कहा जाता है।
कारण जि आत्मशात द्वारा मामान्य प्रकार में पदार्थ क स्वरूप को देखना यही अवधिदशी का मुख्य भण? ।
इस पिया के परते समय मरकी महायसा आत्मा को अवश्य ऐनी पड़ती है। इसी कारण से अपधिस द्वारा भात्मा, रूपी पदार्थों के देखने मी शक्ति र पता है क्योंकि मन, रूपी पार्थ है अतण्य या रूपी पदार्थों का ही देर मक्ता है।
४ फेवर दर्शन --जय सावरणीय, पर्शनावरणीय माहनीय और अतराय कर्म, य चारा धर्म भय होनाते है तब आत्मा का केवलज्ञान और फेवरदान प्रकट होजाना
इसके कारण से अनतक्षान, अनतदर्शन, वायिर सम्यक्त्व और अत शति यह निमकीय चारों गुण आत्मा में प्रगट होते हैं इसी कारण से फिर उसक आत्मा को । सर्वज्ञ और सवदी या अनत शक्तिवाला कहा जाता है।