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ઘર
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होता है । जिम प्रकार प्रत्यय आत्मा के कर्तापन को देखकर उमे तो अस्वीकार करना जो सर्व प्रमाणो से मान देना जेने कि ईश्वर सिद्ध नहीं होता उता
अकर्ता
होता है बने कर्ता
जगत् की भी प्रमाग मे कर्ता निरच जो आत्मा प्रत्यक्ष मे किया फर्ता ि
है उसे अकर्ता मानना यही मिया का
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श्रु
तथा निस से धर्म और मोच का फल तो उपलब्ध न होये किंतु अर्थ और काम की सर्वथा सिद्धि की जाये उपका नाम भी मिध्याश्रुत है क्योंकि मिध्याश्रुत से ससारवृद्धि हो जाती है और सम्पश्रुत पार होने का उपाय ढूंढता है ।
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चत्र में परिभ्रमण की मे आत्मा समाचन से
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तथा संसार की सर्व क्रियाए मतिज्ञान
शान वा
मनिअज्ञान या श्रुतअज्ञान के आधार पर चल रही हैं ।
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अतएव प्रत्येक आत्मा उच्च ज्ञान वा अज्ञान मे सयुक्त है ।
येंगे है
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किंतु यह ज्ञा मनी
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जन अवधिज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपशम होना है 'तब आत्मा अवधिज्ञान युक्त होनाता है सहायता से कार्य साबक होता है के देखने की शक्ति रसता है क्योंकि
इसीलिये यह रूपी द्रव्यो
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अवधिज्ञान में रूपी द्रव्य इसीलिये कि यह ज्ञान मन की महायता से अपने
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अभिगत होते हैं कार्य की सिद्धि