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__ • मिथ्या विश्वास-जिम प्रकार के पदार्थ ही उन पदार्थों से विपरीत निश्चय धारण करना उसी का नाम मिथ्या विश्वास है जैसे कि कल्पना करो कि जीर को अजीर मानना तथा आत्मा को अरता और परमात्मा को क्र्ता इसी प्रकार अन्य पदार्थों के विषय में भी जानना चाहिये क्योंकि मिया विश्वास इमी का नाम है कि यथार्थ निश्चय का न होना।
कल्पग करो कि कोई व्यक्ति माता, भगिनी. पुन तथा भार्या को एररूप मे नेयता है। सो यह मिथ्या विश्वाम है। तथा ईश्वर म कतृत विश्वास धारण कर लेना एक आत्मा को ही में व्यापक मान लेना, नास्तिर न जाना इत्यादि ये सन मिा या विधाम कहलाते हैं। इसमें कोई भी मन्देह नहीं है कि विश्वास का होना असा आवश्यकीय है परत यदि सम्यग् विश्वाम होगा तो वह कार्य की सिद्धि में एक प्रकार माधकतम करण बन जायगा। यतिनिध्या विश्वास होगा तो वह कार्य भिद्धिमें विश्न के रूप म उपस्थित बन गडेगा। ___अतण्य निरर्प यह निकला कि मिल्या विधास कापि धारण न करना चाहिये।
३ मिश्रित विश्वास -सर पदार्थों को एक ममान ही जानना, मत्य और असत्य का निर्णय न करना, चाहे साधु हो वा अमाधु,' श्रेष्ठ या नियष्ट, भद्र हो या कुटिल, धम हो वा पुण्य की क्रिया हो या पाप की, .