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पाला मृग मृत्यु पी शरण गत क्यों होता है ? 1 RE उसर म कहा जा सका है कि -
विश्वाम भी सीन प्रगर मे वर्णन किया गया है अमेसि, १ सम्यग विभास २ मिया विश्वास, मिश्रित निधाम । इनका तासर्य इस प्रकार जाना चाहिये।
१ सम्यग् विश्वास --विम प्रशार ये पाय हो उसी प्रकार का उतरा AITER यि जाने पर फिर तदन ही उन्हा पर विश्वास किया जाय इसी का नाम सम्यगू विधाम है। जैसे विनीय को जीय ही जा जड पो नई हो मान तथा सामायि पदायों के विषय में भी यथाय बुद्धि का धारण करना उमी नाम यथार्थ मिदिर उसी का परिणाम भी विधान तुल्य ही माल होना। अमे किनार रुपये को रुपयादी माननाद तय उमया पर भी उसके समान ही उसको मिल जाता है। परंतु यदि पाइ रुपये को मुवर्ण मुद्रा मानने लगजाय इतना ही पर बह अपना हद विश्वास भी फरलेवे परप जब व्यापारादि प्रिया में पर पुरुष प्रयत्न शील होकर उस रुपये को सुबग मुद्रा घे रूप में प्रयत्नशील होगा तो यह कदापि मफर मनोरथ नदी अन सकेगा क्योंकि उसका प्रयन्न यथार्थ नहीं है। अतय शिकर्ष यह निकला कि सम्यग् पदाथों पर सम्यग् ही विश्वास किया जाय तयही फलीभूत कार्य हो सत्ता है।