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ता फिर अन्य जारमा सार स्थिति मागे ? अनन्य ज्ञान द्वारा सब व्यापर मानना युक्त मपन हे frम प्रसार सूर्य मडल जामाग पर स्थित होनपर भी अपन परिनिक्षेपको प्रमागिन करता है ठीर की प्रकार अनर अमर आमा समान भाग में स्थित होने पर भी अपने परिमित पा अपरिमित क्षेत्र को प्रमाणित र सा है।
मेही वह असाथिर होने पर भी रूपी अरूपी मय दया के भागो को हस्तामयत जानना और देयता है मो उक्त कपन म द्रव्यात्मा या नात्मा मानना युति युक्त मिद्ध हुआ अतपदयात्मा को हमज्ञानात्मा भी कह पर
चतुर्थ पाठ। दशनात्मा।
जिस प्रकार नदी का पार करने के लिये नावकी आवश्यक्ता होती है तया विस प्रसर पायों के देखने के लिये आपा की आवश्यक्ता होती है वा निम प्रकार सुख अनुभव करने के लिये पुण्य कर्म की आवश्यकता होती है तथा किस प्रकार घोष प्राप्त करने के लिये ज्ञान की आवश्यकता होती है या जिस प्रकार विद्या प्राप्ति के लिय गुरु की। भती की भावश्यक्ता है नथा यशोकीन मपादन करने के लिये