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अध वा प्रतिज्ञा के हेतु मान से माध्य साधिका रूप अवस्था ये परिपाक से पुनीभूत, अभ्युदय और मोन पे देनेपाली जो युद्धि है उसका नाम पारिणामिकी बुद्धि कहते हैं । -
यद्यपि मतिज्ञान के अनन्त पर्याय है तथापि इस स्थान पर यकिंचित यह विषय वर्णन लिया गया है।'
यहा पर येग्ल मतिज्ञान का यही रमण सिर्स करना था । पतिज्ञानावरणीय फर्म पे क्षयोपशम से मति नि होजाती है जिस प्रकार उक्त ज्ञान का वर्णन किया गया है ठीक उसी प्रकार श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म पे क्षयोपशम होजाने से श्रुतगान प्रगट होताता है जैसे कि अभर श्रुतादि इस ज्ञान के अनेक भेद प्रतिपादन किये गए हैं। -
वैसेही जर किमी गुरु आदि के मुख से कोई सत्व विपय पाता सुनी जागे फिर उस वार्ता के तत्व का अपनी निर्मल बुद्धि द्वारा अनुभव किया जाय तय अनुभव द्वारा ठीक निश्चित होजाय सो उसी का नाम श्रुत शान है।
परतु स्मृति रखना चाहिये कि एक तो सम्यगश्रुत होता है और एक मियाश्रुत होता है। जय नय षा प्रमाणों द्वारा पदार्थों का ठीर २ स्वरूप सुना जाता है उसे सभ्य श्रुत कहा जाता है किंतु जो नया ..भास और प्रमाणाभास द्वारा पदार्थों का स्वरूप, सुना जाता है. वहीं, मिथ्याश्रुत