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जैसे कि
जिस विषय के अर्थ को जान लिया है फिर उस
अर्थ के विषय सदैव उपयोग लगे रहना उसीका नाम
अविच्युति है ।
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स्मृति के हेतुभूत सरकार का नाम वासना है अर्थात् किसी पदार्थ की स्मृति करने की सदैव वासना लगी रहना तथा उसी प्रकार उपयोग विषय भूतार्थ पदार्थ की कालान्तर में स्मृति होना कि यह वही पदार्थ है सो यह सय श्रुत निश्रित मतिज्ञान के भेद हैं।
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जिस प्रकार न निश्रित मतिज्ञान के चार भेद वर्शन किये गए हैं ठीक उसी प्रकार अद्भुत निश्रित मति ज्ञान के भी चारों ही भेद प्रतिपादन किये गए हैं जैसे कि -- औत्पातिकी बुद्धि, वैनयिकी बुद्धि कार्मिकी बुद्धि और पारि णामिकी बुद्धि अर्थात् जिस बुद्धि द्वारा वादी की तर्क सर्व प्रकार से सबुद्धि द्वारा पूर्ण कीजाय उसीका नाम औत्पतिकी बुद्धि है । धर्म, अर्थ, और काम शास्त्र में निपुणता उत्पन्न करने वाली गुरु की विजयसे जो बुद्धि उत्पन्न होजाती है उसीका नाम वैनयिकी बुद्धि है ।
किन्तु जिस कर्म का अधिक
फिर उसी कर्म में निपुणता भी अधिक
इस बुद्धि का नाम कार्यकी बुद्धि है ।
अभ्यास किया जाय बढजाती है इसीलिये