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इन मूल गुणों के अतिरिक्त उत्तर गुण भान इस आत्मा के प्रतिपादन किये गए
है
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किंतु जब आत्मा वर्मा स युक हे सव के गु प्राय क्मों के आयरणों मे आच्छादित है। मोवी उपाधि भेद स आभा एक होने पर भी आत्मद्रव्य आठ प्रकार से वर्णन कियागया है जैसे कि -
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१ व्यात्मा पापात्मा ३ योगात्मा ४ उपयोगात्मा १ ज्ञानात्मा, ६ दमनात्मा, ७ पारियात्मा और ८ वीर्यात्मा । जो निरंतर स्वपयाय को प्राप्त होता रहता है उसे आत्मा कहते हैं तथा जो निरंतर ज्ञानादि अर्थों में गमन करता रहता है उपयोग लक्षण से युक्त है उसी का नाम आत्मा द्रव्य है ।
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मोमीन काल में जो अपने द्रव्य की अम्नित्व रखता है किसी काल में भी द्रव्य से अद्रव्य नहीं होता और पायादि से युक्त है उसीको द्रव्यात्मा कहते हैं ।
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पर्याय
कारण कि द्रव्य की अपेक्षा में दी आत्मद्रव्य अना बहाजाता है क्योकि द्रव्य नित्य और य माना जाता है सो द्रव्य नित्य प्रतिपादन किया गया है । अतण्य आत्मद्रव्य भी नित्य ही सिद्ध होगया। यद्यपि द्रव्य शब्द अर्थ द्रव्य से अद्रव्य नहीं हो सका । इसलिये' द्रव्यात्मा
का
अनादि प्रतिपादन किया गया है।
जब द्रव्यात्मा पुगल का सम्बन्ध हो जाने से चार वस्तुओं