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पी मिद्धि भली प्रकार में होना तय उस ममय ही आत्मा को पुण्य और पाप आश्रर और भयर पद्ध और मुध इत्यादि विपयों को भली भांति बोध हो सका है।
यपि प्रत्येक आस्तिक मत ने आत्मा का स्वरूप अपनी इच्छानुसार वर्णन किया है किंतु १६ स्वरूप मर्यज्ञान न होने से यथार्थ आत्मा का योध नहीं करा सकना है।
क्याकि ये लोग स्यय ही आत्मा विपय मे भ्रम युक्त है। तो भरा पिर वे आत्मा का यथार्थ वर्णन पिम प्रकार पर मत हैं । अतएष उन रोगों का आत्मा विषय क्थन फासतोप प्रद निश्चित नहीं होता। ___ जैसे कि किमीन आत्मा अनुरूप मान लिया है तो पिर दूसरे आत्मा को विभुरूप वर्णन कर दिया है, फिमी ने यवाकार आत्मा स्वीकार किया है। तो फिर किसीने पांच स्कंधों का ममुदायरूप आत्मा मान लिया है।
इतना ही नहीं किंतु किमी ने आत्मा को परमेश्वर का अश-माना, हुआ है, तो फिर किसी ने आत्मा को ब्रह्मरूप मान रक्सा है। ___किमी.ने आत्मा ज्ञानस्वरूप क्थन किया है तो फिर दूसरे ने आमा ज्ञानगुण से शून्य मान रक्सा है या किसी ने आत्मा को पर्ता माना है तो फिर फिमी ने इसका