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म गमन करने लग जाता है तब उस समय हव्यात्मा गोग रूप होकर प्रधान कपायात्मा नाम से फिर उसे कहा जाता है।
क्योंकि कषाय सज्ञा शोध, मान, माया और लोभ की कथन की गई है जैसे कि यह क्रोधी आत्मा है, यह मानी आत्मा है यह मायी ( छल करने वाला ) आत्मा है या लोभी आत्मा है । मो इन चारों नामसे उन नमय द्रव्यात्मा उक्त चारों में परिणित हो जाता है । उक्त ही अपेक्षा मे फिर उमे पायात्मा कहा जाता है।
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फिर जिस समय इन्यात्मा मन, वचन और पाय के व्यापार में प्रविष्ठ होता है उस समय उस द्रव्यात्मा को चोगात्मा कहा जाता है। इसी नय की अपेक्षा मे कहाजाता है कि अपनी आत्मा ही वा करना चाहिये । सो यहापर आत्मा शब्द से मन आदि का वर्णन किया गया है । क्याकि मनयोग, वचनयोग और काययोग में द्रव्यात्मा का ही परिणमन हुआ है । इसी कारण से दले मन योग कहते हैं 1
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मो मनमें चार प्रकार के विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं उभी कारण से मन के भी चार ही भेद प्रतिपादन किये गए हैं जैसे कि जिस समय मन में सत्य सकल्प उत्पन्न होता है तब उन
समय मत्यमनः योग कहाजाता है। जिस समय मन में असल्य सक्स्प उप्तन्न होता है तब उस समय असत्य मन योग कहा ।