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इममे मिद हुआ रि उप मोश से उम आत्माको सामारिफ अवस्था ही अन्टी थी जिससे यह पता युग था और माप या दुरा पा अनुभव करता था।
यदि ऐमा कहानाय कि "जाने न पानीमा मे शायी बनता है सो इम पथन मे मिद आदि सप मान का जीप से सयोग हुआ तय ही जीय पो शानी पदागया। मो जय सर आमा के साथ बात का मगोग नहीं भाया तय नम आत्मा शान मे शून्य ही माना पहा । अमाप सिद्ध हुआ कि -मानगुण आत्मा का नहीं हेमा मोक्षावस्या म ज्ञानसे शून्य आत्मा का मानना न्याय समत दे क्योकि शानसे श्रेष्ठ या निष्ठ पदायाँ पा पोध किया जाता है। जय श्रेष्ठ वा निषष्ठ पदायों का बोध हुआ तप आरमा को राग पा उप में फमा स्वाभाविक ही है।
'अत इस कारण से आत्मा को शान शून्य मााना युधिः युक्त है। मो इम शा या समाधान इस प्रकार किया जाता है कि
शान फो गुण प्रत्येक पादीने स्त्री किया है सो गुग द्रव्य के आश्रिा होता ही है अत फिर ज्ञानरूप गुग का द्रव्य कौनसा स्वीकार किया जाय ? यदि ऐमा का आय कि --शान पदायों से होता है तो इसका यह समाधान है कि वह ज्ञान किमयो होता है ? क्योंकि पदार्थ दो है जैसे कि