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9- अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण Am
रहा है। अगर अर्जुन उत्तर दे, तो खतरे पैदा होंगे। लेकिन अर्जुन | | उतना साहसी नहीं है। असल में कई बार ऐसा होता है कि अंधेरी जिज्ञासा कर रहा है। और मैं मानता हूं कि जिसे दिखाई पड़ता | गली में आदमी निकलता है, तो सीटी बजाता हुआ निकलता है। हो—जैसा सार्च को दिखाई पड़ता है कि कोई मूल्य नहीं है, एक | | सीटी बड़ी साहसी मालूम पड़ती है आस-पास सोए हुए लोगों को। वैल्युलेसनेस है-जिसे दिखाई पड़ता है कि कोई अर्थ नहीं, कोई | | लेकिन सीटी बजाने से साहस पता नहीं चलता, उससे सिर्फ इतना प्रयोजन नहीं। अगर सच में ही ऐसा दिखाई पड़ता है, तब तो सार्च | | ही पता चलता है कि आदमी डर रहा है। वह सीटी साहस का सबूत को कुछ कहने का भी अर्थ नहीं है। चुप हो जाना चाहिए। ऐसी | नहीं होती। वह सिर्फ भय को छिपाने की चेष्टा होती है। स्थिति में मौन ही सार्थक मालूम पड़ सकता है। व्यर्थ है सारी बात। | वह जो केआस, जो अराजकता पश्चिम के सामने दो महायुद्धों
नहीं, लेकिन सार्च मौन नहीं है। आतुर है कहने को, समझाने | | ने प्रकट कर दी है, वह जो नीचे से एक बवंडर प्रकट हुआ है और को, जो कह रहा है उससे दूसरों को राजी करने को। तब डर होता | भूमि फट गई है, और एक ज्वालामुखी ने मुंह बा दिया है पश्चिम है। तब डर यह होता है कि सार्च भी भीतर असंदिग्ध नहीं है कि जो | के सामने, उस ज्वालामुखी को झुठलाने की कोशिश चल रही है। कह रहा है वह ठीक है। शायद सार्च दूसरों को समझाकर दूसरों के है ही नहीं जीवन में कोई अर्थ, इसलिए अनर्थ से डरने की चेहरे पर यह देखने को उत्सुक है कि कहीं उनको अगर ठीक लगती | | जरूरत क्या है! है ही नहीं कोई मूल्य, इसलिए मूल्य की खोज की हो यह बात. तो ठीक होगी। मैं भी फिर ठीक मान लं।
चिंता भी क्या करनी है! है ही नहीं कोई परमात्मा, तो प्रार्थना करने .. सात्र जिज्ञासा करे, वहां तक ठीक है। लेकिन पश्चिम में | | से क्या फायदा है! है ही नहीं कोई आशा, इसलिए निराशा में भी एक्झिस्टेंशियलिस्ट विचारक जिज्ञासा को उत्तर बना रहे हैं। और जब चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है! जिज्ञासा उत्तर बनती है, और जब शिष्य गुरु हो जाता है, और जब । निराशा में भी निश्चितता खोजने की चेष्टा, सिर्फ इस बात की पूछना ही बताना बन जाता है, तब एक क्राइसिस आफ वैल्यूज पैदा | सूचक है कि हृदय बहुत कमजोर है और साहस कम है। असल में होती है, जो कि पश्चिम में पैदा हुई है। सब अस्तव्यस्त हो गया है। | आशा जब तीव्र निराशा में पड़ती है, तभी पता चलता है कि है या
सब अस्तव्यस्त हो गया है। उस अस्तव्यस्तता में कहीं कोई राह नहीं | | नहीं। और जब गहन अंधकार में ज्योति को खोजने की चेष्टा चलती दिखाई पड़ती। नहीं दिखाई पड़ती, इसलिए नहीं कि राह नहीं है, राह | है, तभी पता चलता है कि प्रकाश की कोई आकांक्षा, गहरा साहस, तो सदा है। लेकिन अगर हम यह मान ही लें कि राह है ही नहीं, यही गहरी लगन और गहरे संकल्प से जुड़ी है या नहीं जुड़ी है। हमारा उत्तर बन जाए, तो फिर राह दिखाई पड़नी असंभव है। __पश्चिम की सार्त्रवादी चिंतना निराशा को स्वीकार कर लेने की है।
अर्जुन यह नहीं मानता। अर्जुन बड़ी जिज्ञासा कर रहा है कि राह निराशा है। इससे पश्चिम उबरेगा नहीं। इसलिए एक्झिस्टेंशियलिज्म होगी। मैं खोजता हूं, मैं पूछता हूं, आप मुझे बताएं। वह कृष्ण को | और उस तरह के विचारक सिर्फ एक फैशन से ज्यादा नहीं हैं। और कह रहा है, आप मुझे बताएं, आप मुझे समझाएं। मैं अज्ञानी हूं, | फैशन मरनी शुरू हो गई है, फैशन मर रही है। अब अस्तित्ववाद मुझे कुछ पता नहीं है। विनम्र है। अर्जुन का अज्ञान विनम्र है, सार्च | | कोई बहुत जीवित धारणा नहीं है। बच्चे पश्चिम के उसको भी इनकार का अज्ञान विनम्र नहीं है। सार्च का अज्ञान बहुत असर्टिव है। खतरा | कर रहे हैं, वह भी ओल्ड फैशन हो गई है। छोड़ो यह बकवास भी! है। और जब अज्ञान असर्टिव होता है, जब अज्ञान मुखर होता है, __ लेकिन सार्च की पीढ़ी ने जो निराशा दी है, उसका दुष्परिणाम तो जितने खतरे होते हैं, उतने खतरे और किसी बात से नहीं होते।। आने वाली पीढ़ी पर दिखाई पड़ रहा है। वह पीढ़ी कहती है कि ठीक लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि अज्ञान मुखर होता है। | है, हम सड़क पर नंगे नाचेंगे; क्योंकि तुम्हीं ने तो कहा कि कोई __ अर्जुन पूछ रहा है। वह कहता है, मुझे पता नहीं है। मैं संदेह में | | अर्थ नहीं है, तो फिर कपड़े पहनने में ही कौन-सा अर्थ है! तो हम पड़ गया हूं। मैं डूबा जा रहा हूं संकट में, मुझे कोई मार्ग दें। लेकिन | | फिर किसी भी तरह के काम-संबंध निर्मित करेंगे; क्योंकि तुम्हीं ने मार्ग हो सकता है, इसकी उसकी खोज जारी है।
तो कहा है कि कोई अर्थ नहीं है, तो परिवार का भी क्या अर्थ है! मैं मानता हूं कि अर्जुन सार्च से ज्यादा साहसी है। क्योंकि इतनी | । | फिर हम किसी को आदर नहीं देंगे; क्योंकि तुम्हीं ने तो कहा है कि गहन निराशा में भी मार्ग की खोज बड़े साहस की बात है। सार्च | | जब ईश्वर ही नहीं है, तो आदर का क्या अर्थ है! और हम कल की उतना साहसी नहीं है। उसके वक्तव्य बहुत साहसी मालूम पड़ते हैं, चिंता न करेंगे।