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PM दलीलों के पीछे छिपा ममत्व और हिंसा -
इस जगत में इवेंट्स, घटनाएं घटती हैं और राख हो जाती हैं। और को जिन्होंने सहा है, उनसे पैदा हुआ है। अर्जुन ने कष्ट सहा है उस विचार शाश्वत यात्रा पर निकल जाते हैं। घटनाएं मर जाती हैं, उन | | घड़ी में, उस कष्ट के परिणाम में गीता प्रतिसंवेदित हुई है। घटनाओं के बीच अगर किसी विचार का, किसी आत्मवान विचार | नहीं, मनु से काम नहीं चल सकता। उतने जड़ नियम सड़क पर का जन्म हुआ, तो वह अनंत की यात्रा पर निकल जाता है। | ट्रैफिक के नियम जैसे हैं कि बाएं चलना चाहिए। बिलकुल ठीक
महाभारत महत्वपूर्ण नहीं है। न भी हुआ हो तो क्या फर्क पड़ता | | है। इसमें कोई अड़चन नहीं है। उलटा कर लें कि दाएं चलना है! लेकिन गीता न हुई हो तो बहुत फर्क पड़ता है। महाभारत एक | | चाहिए, तो भी कोई तकलीफ नहीं है। अमेरिका में उलटा चलते हैं, छोटी-सी घटना हो गई। और जैसे समय आगे बढ़ता जाएगा, | लिखा है दाएं चलना चाहिए, तो आदमी दाएं चल रहा है। बाएं छोटी होती जाएगी। एक परिवार के भाइयों का, चचेरे भाइयों का | चलें, दाएं चलें, तय कर लेने से काम चल जाता है। झगडा था। हो गया. निपट गया। उनकी बात थी. समाप्त हो गई। लेकिन ये कोई जीवन के परम आधार नहीं हैं। और अगर कोई लेकिन गीता रोज-रोज महत्वपूर्ण होती चली गई है। यह हो सकी | आदमी सवाल उठाए कि बाएं चलने में ऐसी कौन-सी खूबी है, महत्वपूर्ण इसलिए कि अर्जुन के पास मनु को मान लेने जैसी दाएं क्यों न चला जाए! तो दुनिया में कोई नहीं समझा पाएगा। यह साधारण बुद्धि नहीं थी। अर्जुन के पास एक प्रतिभा थी, जो पूछती | सिर्फ व्यवस्थागत है। और अगर कोई बहुत विचारशील आदमी हो है, जो संकट में सवाल उठाती है।
और सवाल उठाए कि बाएं क्या है और दाएं क्या है, तो मुश्किल - आमतौर से संकट में सवाल उठाना बहुत कठिन है। घर में | | खड़ी हो जाएगी। कामचलाऊ है। बैठकर गीता पढ़ना और सवाल उठाना बहुत आसान है। अर्जुन की | मनु की जो व्यवस्था है, अत्यंत कामचलाऊ है। कामचलाऊ स्थिति में सवाल उठाना बहुत जोखम से भरा काम है। वह स्थिति | व्यवस्था के ऊपर प्रश्न उठ रहे हैं अर्जुन के मन में। उसके प्रश्न सवाल की नहीं है। वह स्थिति कोई ब्रह्म-जिज्ञासा की नहीं है, वह | परम हैं। वह यह पूछ रहा है कि मिल जाएगा राज्य इतनों को स्थिति कोई गुरु-शिष्य वृक्ष के नीचे बैठकर चिंतन-मनन करें, मारकर, अपनों को मारकर-क्या होगा अर्थ? क्या होगा इसकी नहीं है। यद्ध द्वार पर खड़ा है। हंकारें हो गई हैं, शंख बज गए प्रयोजन? माना कि जीत जाऊंगा, क्या होगा? माना कि वे हैं और इस क्षण में उस आदमी के मन में कंपन हैं। हिम्मतवर आदमी आततायी हैं, काट डालेंगे उन्हें, बदला पूरा हो जाएगा-फिर क्या है। कंपन को उस युद्ध के बीच स्थल में प्रकट करता है और वहां होगा? बदले का क्या अर्थ है? और न मालूम कितने निहत्थे मर भी सोच-विचार करता है। इतने संकट में जो सोच-विचार करता है, जाएंगे, न मालूम कितने निर्दोष मर जाएंगे, जिनका कोई संबंध नहीं वह साधारण प्रतिभा नहीं है। मनु से काम न चलेगा, उसे कृष्ण जैसा | है, जो युद्ध में घसीटकर ले आए गए हैं, क्योंकि उनका कहीं कोई आदमी चाहिए। मनु वहां होते तो वे कहते कि पढ़ लो मेरी मनुस्मृति, | संबंध है—उन सबका क्या होगा? उसमें लिखा है कि आततायी को मारो, कर्तव्य स्पष्ट है।
नहीं, उसके प्रश्न ज्यादा कीमती हैं, मनु से काम नहीं चल कर्तव्य सिर्फ नासमझों को सदा स्पष्ट रहा है. समझदारों को
| सकता है। कभी स्पष्ट नहीं रहा। समझदार सदा संदिग्ध रहे हैं। क्योंकि समझदार इतना सोचता है और अक्सर दोनों पहलुओं पर सोचता है कि मुश्किल में पड़ जाता है कि कौन सही है, कौन गलत है! तस्मानार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् । गलत और सही की स्पष्टता अज्ञानियों को जितनी होती है, उतनी स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ।। ३७ ।। विचारशील लोगों को नहीं होती।
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः । अज्ञानी के लिए सब साफ होता है, यह गलत है, वह सही है। __कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ।। ३८।। यह हिंदू है, वह मुसलमान है। यह अपना है, वह पराया है। लेकिन इससे हे माधव, अपने बांधव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के जितना चिंतन आगे बढ़ता है, उतना ही संदेह खड़ा होता है। कौन | | लिए हम योग्य नहीं हैं, क्योंकि अपने कुटुंब को मारकर हम अपना, कौन पराया? क्या ठीक, क्या गलत? और इस जगत में | कैसे सुखी होंगे? यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग जो भी मूल्यवान पैदा हुआ है, वह इस चिंतन की पीड़ा के प्रसव | कुल के नाशकृत दोष को और मित्रों के साथ विरोध करने
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