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परमात्म समर्पित कर्म 4
भारत में जो वर्ण का प्राथमिक विभाजन था, हॉरिजांटल था । उसमें शूद्र, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय एक-दूसरे के ऊपर-नीचे हाइरेरकी में बंटे हुए नहीं थे। समाज में एक ही भूमि पर खड़े हुए चार विभाजन थे। बाद में हॉरिजांटल विभाजन वर्टिकल हो गया, ऊपर-नीचे हो गया। जिस दिन से ऊपर-नीचे हुआ, उस दिन से वर्ण की जो कीमती आधारशिला थी, वह गिर गई और वर्ण का सिद्धांत और वर्ण का मनसशास्त्र शोषण का आधार बन गया। लेकिन कृष्ण के समय तक यह बात घटित न हुई थी। इसलिए कृष्ण कहते हैं कि जो तेरा स्वधर्म जिस वर्ण में तू जन्मा है और जिस वर्ण में तू बड़ा हुआ है और जिस वर्ण की तूने शिक्षा पाई है। और जिस वर्ण की तेरी तैयारी है और जिस वर्ण से तेरा हड्डी, खून, मांस, तेरा मन, तेरे संस्कार, तेरी' कंडीशनिंग हुई है, उस वर्ण को छोड़कर भागने से उस वर्ण के काम को करना ही श्रेयस्कर है। क्यों ? अनेक कारण हैं। दो-तीन गहरे कारणों पर खयाल कर लेना जरूरी है।
एक तो प्रत्येक व्यक्ति की अनंत संभावनाएं हैं। लेकिन उन अनंत संभावनाओं में से एक ही संभावना वास्तविक बन सकती है। सभी संभावनाएं वास्तविक नहीं बन सकतीं। एक व्यक्ति जब जन्मता है, तो उसके जीवन की बहुत यात्राएं हो सकती हैं, लेकिन अंततः एक ही यात्रा पर उसे जाना पड़ता है। जीवन की वास्तविकता हमेशा वन डायमेंशनल होती है, एक आयामी होती है; और जीवन की पोटेंशियलिटी मल्टी-डायमेंशनल होती है, जीवन की संभावना अनंत आयामी होती है।
हम एक बच्चे को डाक्टर भी बना सकते हैं, वकील भी बना सकते हैं, इंजीनियर भी बना सकते हैं। हम एक बच्चे को बहुत-बहुत रूपों में ढाल सकते हैं। बच्चे में बहुत लोच है, वह अनंत आयामों में जाने की संभावना रखता है। लेकिन जाएगा एक ही आयाम में ।। हम उसे अनंत आयामों में ले जा नहीं सकते। और अगर ले जाएंगे, तो हम सिर्फ उसको विक्षिप्त कर देंगे, पागल कर देंगे ।
आज विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है। वह कहता है, प्रत्येक व्यक्ति के जानने की क्षमता अनंत है। लेकिन जब भी कोई व्यक्ति जानने जाएगा, तो स्पेशलाइजेशन हो जाएगा। अगर एक व्यक्ति जानने निकलेगा, तो वह डाक्टर ही हो पाएगा। अब तो पूरा डाक्टर होना मुश्किल है, क्योंकि डाक्टर की भी बहुत शाखाएं हैं। वह कान का डाक्टर होगा कि आंख का डाक्टर होगा कि हृदय का डाक्टर होगा कि मस्तिष्क का डाक्टर होगा ! ये भी शाखाएं हैं।
मैं तो एक मजाक भी सुनी है कि आज से पचास साल बाद एक औरत एक डाक्टर के दरवाजे पर अंदर प्रवेश हुई है और उसने कहा कि मेरी आंख में बड़ी तकलीफ है। डाक्टर उसे भीतर ले गया और फिर पूछा कि कौन-सी आंख में ? बाईं या दाईं ? क्योंकि मैं सिर्फ दाईं आंख का डाक्टर हूं। बाईं आंख का डाक्टर पड़ोस में है।
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असल में एक आंख भी इतना बड़ा फिनामिनन है, एक | छोटी-सी आंख इतनी बड़ी घटना है कि उसे एक आदमी पूरी जिंदगी जानना चाहे, तो भी पूरा नहीं जान सकता है। इसलिए स्पेशलाइजेशन हो जाएगा, इसलिए विशेषज्ञ पैदा होगा ही; उससे बचा नहीं जा सकता है । आज पश्चिम में जिस तरह विशेषज्ञ ज्ञान के पैदा हुए हैं कि एक आदमी गणित को, तो गणित को ही जानता है; फिजिक्स के संबंध में वह उतना ही नासमझ है, जितना नासमझ | कोई और आदमी है। और जो आदमी फिजिक्स को जानता है, वह केमिस्ट्री के संबंध में उतना ही अज्ञानी है, जितना गांव का कोई किसान। प्रत्येक व्यक्ति की जानने की एक सीमा है और उस सीमा में उसको यात्रा करनी पड़ती है। और रोज सीमा नैरो होती चली | जाएगी, संकरी होती चली जाएगी।
जैसे आज पश्चिम में विज्ञान स्पेशलाइज्ड हुआ, ऐसे ही भारत में हजारों साल पहले हमने चार व्यक्तित्वों को स्पेशलाइज्ड कर दिया था। हमने कहा था, जब कुछ लोग क्षत्रिय ही होना चाहते हैं, तो उचित है कि उन्हें बचपन से ही क्षत्रिय होने का मौका मिले। हमने सोचा कि जब कुछ लोग ब्राह्मण ही हो सकते हैं और क्षत्रिय | नहीं हो सकते, तो उचित है कि उन्हें बचपन के पहले क्षण से ही ब्राह्मण की हवा मिले, ब्राह्मण का वातावरण मिले। उनका एक क्षण भी व्यर्थ न जाए।
इसमें एक और गहरी बात आपसे कह दूं, जो कि साधारणतः आपके खयाल में नहीं होगी। और वह यह है कि जब हमने यह बिलकुल तय कर दिया कि जन्म से ही कोई व्यक्ति ब्राह्मण हो जाएगा और कोई व्यक्ति क्षत्रिय हो जाएगा, तब भी हमने यह उपाय रखा था कि कभी अपवाद हो, तो हम व्यक्तियों को दूसरे वर्णों में प्रवेश दे सकते थे। लेकिन वह एक्सेप्शन की बात थी। वह नियम | नहीं था, नियम की जरूरत न थी । कभी-कभी ऐसा होता था कि कोई विश्वामित्र वर्ण बदल लेता था। लेकिन वह अपवाद था, वह नियम नहीं था। साधारणतः जो व्यक्ति जिस दिशा में दीक्षित होता था, जिस दिशा में निर्मित होता था, साधारणतः वह उसी दिशा में आनंदित होता था, उसी दिशा में यात्रा करता था।
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