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3m गीता दर्शन भाग-1 -सर
शक्तिशाली व्यक्ति नहीं है। भागते सिर्फ कमजोर हैं। शक्तिशाली इसलिए कृष्ण कहते हैं, भागना व्यर्थ है, पलायन व्यर्थ है, भागते नहीं, कमजोर ही भागता है। और जितना भागता है, उतना एस्केप व्यर्थ है। और ध्यान रहे, इस पृथ्वी पर एस्केप के खिलाफ,
और कमजोर हो जाता है। भयभीत भागता है। और जो भयभीत है, पलायन के खिलाफ कृष्ण से ज्यादा बड़ी आवाज दूसरी पैदा नहीं वह यहां बंधन में है; जहां भी जाएगा, वहां बंधन में पड़ जाएगा। हुई। पलायन व्यर्थ है, भागना व्यर्थ है। भागकर जाओगे कहां? कमजोर बंधन से बचेगा कैसे!
अपने से भागोगे कैसे? सबसे भाग जाओगे, खुद तो साथ ही एक आदमी गृहस्थी में है। वह कहता है, घर बंधन है। बड़े रहोगे। और उस खुद में ही सारी बीमारियां हैं। इसलिए कृष्ण कहते आश्चर्य की बात है। घर कहीं भी नहीं बांधता। दरवाजे खुले हैं। | हैं, कर्म से कोई अगर बंधन से छूटने के लिए भागता है, तो घर कहीं भी लोहे की श्रृंखला नहीं बना हुआ है! घर कहीं पैर में नासमझ है। कर्म में कोई बंधन नहीं है। कर्म मेरा है, यही बंधन है। जंजीर की तरह अटका नहीं है। घर कहीं नहीं बांधता है। लेकिन | | इसलिए अगर कर्म को परमात्मा का है, ऐसा कहने का कोई साहस वह आदमी कहता है, घर बांधता है। तो मैं घर छोड़ दूं। अब जुटा ले, तो कर्म यज्ञ हो जाता है और उसका बंधन गिर जाता है। समझने जैसा जरूरी है कि उसको घर बांधता है ? तब तो घर छोड़ने | । क्यों गिर जाता है? क्योंकि वह फिर मेरा नहीं रह जाता। से वह मुक्त हो जाएगा। लेकिन घर किसको बांधेगा? घर तो सार बात इतनी है कि मेरा ही बंधन है-चा बिलकुल जड़ है। वह न बांधता है, न स्वतंत्र करता है। जब यह हो, चाहे मेरा धन हो, चाहे मेरा बेटा हो, चाहे मेरा धर्म हो, चाहे छोड़कर जाने लगेगा, तब इतना भी नहीं कहेगा कि रुको, कहां जा | | मेरा कर्म हो, चाहे मेरा संन्यास हो—जो भी मेरा है, वह बंधन बन रहे हो? वह इसकी फिक्र ही नहीं करेगा। लेकिन यह कहता है, घर जाएगा। सिर्फ एक तरह का कर्म बंधन नहीं बनता है, ऐसा कर्म जो बांधता है।
मेरा नहीं, परमात्मा का है। ऐसे कर्म का नाम यज्ञ है। असल में, यह बात कहीं न कहीं गलत समझ रहा है। यह घर को । यज्ञ बहुत पारिभाषिक शब्द है। इसका अनुवाद दुनिया की किसी अपना मानता है, इससे बंधता है। घर नहीं बांधता। मेरा है घर, मेरे भी भाषा में नहीं हो सकता है। असल में कर्म का एक बिलकुल ही से घर बंधता है। लेकिन मेरा तो इसके पास ही रहेगा। यह घर नया रूप, जिसमें मैं कर्ता नहीं रहता, बल्कि परमात्मा कर्ता होता छोड़कर भाग जाएगा, तब मेरा आश्रम। फिर मेरा आश्रम बांध लेगा। है। कर्म की एक बिलकुल नई अवधारणा, कर्म का एक बिलकुल वह मेरा इसके साथ चला जाएगा। वह मेरा इसकी कमजोरी है। घर नया कंसेप्शन कि जिसमें मैं कर्ता नहीं होता, मैं सिर्फ निमित्त होता तो छूट जाएगा। घर छोड़ने में क्या कठिनाई है! घर जरा भी नहीं हूं और कर्ता परमात्मा होता है। जिसमें मैं सिर्फ बांसुरी बन जाता रोकेगा कि रुकिए! बल्कि प्रसन्न ही होगा कि गए तो अच्छा हुआ, | हूं, गीत परमात्मा का, स्वर उसके। उपद्रव टला! लेकिन आप उस तरकीब को तो साथ ही ले जाएंगे, ___ यज्ञरूपी कर्म बंधन नहीं लाता है। इसलिए कृष्ण अर्जुन से कहते जो गुलामी बनेगी। मेरा आश्रम हो जाएगा, फिर वह बांध लेगा। | हैं, तू कर्म से मत भाग, बल्कि कर्म को यज्ञ बना ले। यज्ञ बना ले
पत्नी नहीं बांधती। पत्नी को छोड़कर भाग जाएं। तो क्या | अर्थात उसको तू परमात्मा को समर्पित कर दे। तू कह दे पूरे प्राणों कामवासना पत्नी को छोड़कर भागने के साथ पत्नी के पास छूट से कि मैं सिर्फ निमित्त हूं और तुझे जो करवाना हो, करवा ले। जाएगी? तो पत्नी नहीं थी आपके पास, तब कामवासना नहीं थी? नानक की जिंदगी में एक घटना है, जिस घटना से नानक संत जब यात्रा पर चले जाते हैं, पत्नी नहीं होती है, तब कामवासना नहीं बने। उस दिन से नानक का कर्म यज्ञ हो गया। छोटी-मोटी होती है? और जब पत्नी को छोड़कर चले जाएंगे, तो कामवासना जागीरदारी में वे नौकर हैं। और काम उनका है सिपाहियों को राशन पत्नी के पास छूट जाएगी कि आपके साथ चली जाएगी? वह | बांटना। तो वे दिनभर सुबह से शाम तक गेहूं, दाल, चना, तौलते कामवासना आपके साथ चली जाएगी। और ध्यान रहे. पत्नी तो रहते हैं और सिपाहियों को देते रहते हैं। . पुरानी पड़ गई थी, नई स्त्रियां दिखाई पड़ेंगी जो बिलकुल नई होंगी, पर एक दिन कुछ गड़बड़ हो गई। ऐसी गड़बड़ बड़ी सौभाग्यपूर्ण वह वासना उन नई पर और भी ज्यादा लोलुप होकर बंध जाएगी। है। और जब किसी की जिंदगी में हो जाती है, तो परमात्मा प्रवेश भागता हुआ आदमी यह भूल जाता है कि जिससे वह भाग रहा है, हो जाता है। एक दिन सब अस्तव्यस्त हो गया, सब गणित टूट वह बांधने वाली चीज नहीं है। जो भाग रहा है, वही बंधने वाला है। गया, सब नाप टूट गई। नापने बैठे थे; एक से गिनती शुरू की।
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