Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 490
________________ - गीता दर्शन भाग-1 AM दर्पण के साथ एक और बात समझ लेनी जरूरी है। दर्पण पर, | अब वह सूरज है, न वह आकाश है, न जमीन है; सब बदल चुका। आपने कभी खयाल किया कि दर्पण के सामने आइए, तो आपकी | चौबीस घंटे में गंगा बहुत बह गई। तू किससे माफी मांगता है! न जाती है और हट जाइए, तो तस्वीर मिट जाती है। यह लेकिन वह कहने लगा, नहीं, मुझे माफ कर दें। बुद्ध ने कहा, तूने दर्पण की खूबी है। यही उसकी क्वालिटी है, यही उसका गुण है।। | थूका ही नहीं। मालूम होता है, तू जो थूक गया था, चौबीस घंटे फोटो कैमरे के भीतर भी फिल्म होती है। वह उस पर भी तस्वीर | उसको दोहराता भी रहा है, उसकी जुगाली करता रहा है। बनती है, लेकिन मिटती नहीं; बन गई, तो बन गई। एक्सपोजर हो ___ हम सब ऐसे ही जीते हैं। यहां कोई हम में दर्पण जैसा नहीं है। गया, तो हो गया। एक दफे बनती है, फिर तस्वीर को पकड़ लेती | दर्पण जैसा व्यक्ति ही अनासक्त हो सकता है, क्योंकि तब चीजें है कैमरे की फिल्म, फिर छोड़ती नहीं। आती हैं और चली जाती हैं। दर्पण जैसा कहने का कारण है। सिर्फ जो व्यक्ति धुएं से और | वही कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तू दर्पण जैसे ज्ञान को दुर्गंधयुक्त मल से मुक्त होता है और जिसका चित्त शद्ध दर्पण हो | उपलब्ध हो जा। हटा धूल को, जिस धूल के कारण चित्र पकड़ जाते जाता है, उसकी स्थिति ऐसी हो जाती है-उसके सामने जो आता | | हैं। हटा धुएं को, जिस धुएं के कारण तुझे दिखाई नहीं पड़ता कि है, उसकी तस्वीर बन जाती है; जो हट जाता है, दर्पण कोरा और | | तेरे भीतर जो ज्योति है ज्ञान की, वह क्या है। अपने दर्पण को उसकी खाली और मुक्त हो जाता है। मित्र आया, तो खुशी; और चला | पूरी शुद्धता में, पूरी प्योरिटी में ले आ, ताकि चीजें आएं और मिटें गया, तो भूल गए। परिवार के लोग रहे, तो आनंद; नहीं रहे, तो | और जाएं और तेरे ऊपर कोई प्रभाव न छूट जाए, कोई इंप्रेशन, कोई बात समाप्त-दर्पण जैसा। फिर कोई चीज पकड़ती नहीं, | प्रभाव तेरे ऊपर पकड़ न जाए, तू खाली...। ' एक्सपोजर होता ही नहीं। चीजें आती हैं, चली जाती हैं, और दर्पण ___ कबीर ने कहा न, ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया, खूब जतन अपनी शुद्धता में जीता है। से ओढ़ी कबीरा; बहुत जतन से ओढ़ी चादर और फिर ज्यों की त्यों दर्पण को अशद्ध नहीं किया जा सकता। फोटो के कैमरे की जो धरि दीन्हीं। जरा भी दाग नहीं लगाया। दर्पण जैसी हो चादर, तभी फिल्म है, उसको अशुद्ध किया जा सकता है, वह अशुद्ध होने के | हो सकता है ऐसा। अगर चादर दर्पण जैसी न हो, तो दाग लग ही लिए ही है। वही उसकी खूबी है कि वह फौरन तस्वीर को पकड़ लेती जाएगा। जिस चादर की बात कबीर कह रहे हैं, वह कृष्ण के दर्पण है और बेकार हो जाती है। दर्पण बेकार नहीं होता। लेकिन हम जिस | की ही बात है। अगर चित्त दर्पण जैसा है, तो कितनां ही ओढ़े, कोई चित्त से जीते हैं, उसमें हमारी हालत दर्पण जैसी कम और फोटो की दाग नहीं लगता। दर्पण पर दाग लगता ही नहीं। दर्पण कुछ पकड़ता फिल्म जैसी ज्यादा है। जो भी पकड़ जाता है, वह पकड़ जाता है, | ही नहीं। सब चीजें आती हैं और चली जाती हैं, और दर्पण अपने फिर वह छूटता नहीं। एक्सपोजर हो जाता है, छूटता ही नहीं। कल | खालीपन में, अपनी शून्यता में, अपनी निर्मलता में, अपनी शुद्धता किसी ने गाली दी थी, वह अभी तक नहीं छूटी; चौबीस घंटे बीत | में रह जाता है। गए, वह गूंज रही है, वह चल रही है। देने वाला हो सकता है, भूल | लेकिन शुद्धता दर्पण की तो तब हो न, जब उसके ऊपर धूल गया हो; देने वाला हो सकता है, अब माफी मांग रहा हो मन में; देने | अशुद्धि की न जमे। दर्पण शुद्ध तो तब हो न, जब मैं स्वयं रहूं, मेरे वाला हो सकता है, अब हो ही न इस दुनिया में लेकिन वह गाली | | ऊपर दूसरे न जम जाएं। दर्पण तो शुद्ध तब हो न, जब मैं जो हूं, गूंजती है। हो सकता है वह आज गूंजे, कल गूंजे; हो सकता है कब्र | | वही रहूं; उसकी आकांक्षा न करूं, जो मैं नहीं हूं। दर्पण तो शुद्ध में आप उसे अपने साथ ले जाएं और वह गूंजती ही रहे। एक्सपोजर | | तभी हो सकता है न, जब वर्तमान का क्षण पर्याप्त हो और जब हो गया, दर्पण जैसा नहीं रह्य आपका चित्त। भविष्य की कामनाएं न पकड़ें और अतीत की स्मृतियां न पकड़ें, एक सुबह बुद्ध के ऊपर एक आदमी थूक गया और दूसरे दिन | तभी मन का दर्पण शुद्ध हो सकता है। माफी मांगने आया। तो बुद्ध ने कहा, पागल, गंगा का बहुत पानी । ऐसे शुद्ध दर्पण को कृष्ण कहते हैं, ज्ञान। और ऐसा ज्ञान मुक्ति बह चका है। कहां की बातें कर रहा है। इतिहासों को मत उखाड.| गड़े मुरदों को मत उखाड़; बात खत्म हो गई। अब न तो मैं वह हूं, जिस पर तू थूक गया था; न अब तू वह है, जो थूक गया था; न 4601

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