Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 497
________________ - वासना की धूल, चेतना का दर्पण - होमो-सेक्सुअल सोसाइटी वहां पैदा हो जाएगी। वहां पुरुष पुरुष | | भीतर हम दो तरह के भाव रख सकते हैं, या तो भोक्ता का, कर्ता के साथ ही स्त्री-पुरुष जैसा व्यवहार करने लगेंगे। | का, या साक्षी का। कर्ता भोक्ता होता है। ___ अब उस द्वीप की तकलीफ हम समझ सकते हैं कि तकलीफ __ मैं एक छोटी-सी कहानी आपसे कहूं, फिर दूसरा सूत्र हम ले लें। क्या है। उन्होंने एक इंद्रिय को मार डालने की कोशिश की। परिणाम मैंने सुना है, कृष्ण के गांव के बाहर एक तपस्वी का आगमन जो होना था वही हुआ है, इंद्रिय नहीं मरी, सिर्फ विषाक्त हो गई, | हुआ। कृष्ण के परिवार की महिलाओं ने कहा कि हम जाएं और विकृत हो गई, कुरूप हो गई। और उसने और दूसरे उपद्रव के रास्ते तपस्वी को भोजन पहुंचा दें। लेकिन वर्षा और नदी तीव्र पूर पर और खोज लिए। मनुष्य जाति की अधिकतम विकृति और परवर्शन तपस्वी पार। उन स्त्रियों ने कहा, हम जाएं तो जरूर, लेकिन नाव इंद्रियों को काट डालने और मार डालने के खयाल से पैदा हुआ है। लगती नहीं, नदी कैसे पार करेंगे? खतरनाक है पूर, तपस्वी भूखा लेकिन कृष्ण का वह मतलब नहीं है। कृष्ण का मतलब है, | और उस पार वृक्ष के नीचे बैठा है। भोजन पहुंचाना जरूरी है। क्या रूपांतरण। और रूपांतरण ही वस्तुतः इंद्रियों की मृत्यु है। यह सूत्र, कोई तरकीब है? कृष्ण ने कहा, नदी से कहना, अगर तपस्वी रूपांतरण ही इंद्रियों को वश में करना है। इंद्रियां मार डालें, तो फिर जीवनभर का उपवासा हो, तो नदी राह दे दे। भरोसा तो न हुआ, वश में करने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। पर कृष्ण कहते थे, तो उन्होंने कहा, एक कोशिश कर लेनी चाहिए। अगर बाप अपने बेटे को मार डाले और फिर कहे कि बेटा मेरे जाकर नदी से कहा कि नदी, राह दे दे, अगर तपस्वी उस पार वश में है, ओबिडिएंट है, बेकार की बात करता है। मरा हुआ बेटा | | जीवनभर का उपवासा हो। भरोसा तो न हुआ, लेकिन जब नदी ने तो ओबिडिएंट होता ही है। और अक्सर ऐसा होता है कि राह दे दी, तो कोई उपाय न रहा! स्त्रियां पार हुईं। बहुत भोजन ओबिडिएंट बेटे मरे हुए बेटे होते हैं। अक्सर। क्योंकि उनको | बनाकर ले गई थीं। सोचती थीं कि एक व्यक्ति के लिए इतने भोजन ओबिडिएंट बनाने में करीब-करीब मार डाला जाता है। लेकिन मरे | | की तो जरूरत भी नहीं, लेकिन फिर भी कृष्ण के घर से भोजन आता हुए बेटे के आज्ञाकारी होने का क्या अर्थ? बेटा होना चाहिए जिंदा, | | हो, तो थोड़ा-बहुत ले जाना अशोभन था, बहुत ले गई थीं, जिंदा से जिंदा, और फिर आज्ञाकारी, तब पिता का कुछ अर्थ है, | | सौ-पचास लोग भोजन कर सकें। लेकिन चकित हुईं, भरोसा तो अन्यथा कोई अर्थ नहीं। मरे-मराए विद्यार्थी को बिठाकर गुरु अगर | न आया, वह एक तपस्वी ही पूरा भोजन कर गया। अकड़ता रहे और मरे हुए विद्यार्थी घिराव न करें, तो ठीक है। जिंदा फिर लौटीं। नदी ने तो रास्ता बंद कर दिया था, नदी तो फिर बही होने चाहिए-पूरे जिंदा, पूरे जीवंत-और फिर गुरु के चरणों पर चली जा रही थी। तब वे बहुत घबड़ाईं कि अब तो गए! क्योंकि सिर रख देते हों, तो कुछ अर्थ है। अब वह सूत्र तो काम करेगा नहीं कि तपस्वी जीवनभर का उपवासा इंद्रियां मार डाली जाएं, काट डाली जाएं और आपके वश में हो | हो...। लौटकर तपस्वी से कहा, आप ही कुछ बताएं। हम तो • जाएं, तो होती नहीं हैं, सिर्फ भ्रम पैदा होता है। मरी हुई इंद्रियों को | बहुत मुश्किल में पड़ गए। हम तो नदी से यही कहकर आए थे कि क्या वश में करना! नहीं, इंद्रियां वश में हों। स्वस्थ हों, जीवंत हों, | | तपस्वी जीवनभर का उपवासा हो, तो मार्ग दे दे। नदी ने मार्ग दे लेकिन मालिक न हों। आपको न चलाती हों, आप उन्हें चलाते हों। | दिया। तपस्वी ने कहा, वही सूत्र फिर कह देना। पर उन्होंने कहा, आपको आज्ञा न देती हों, आपकी आज्ञा उन तक जाती हो। वे | अब! भरोसा तो पहले भी न आया था, अब तो कैसे आएगा? आपकी छाया की तरह चलती हों। तपस्वी ने कहा, जाओ नदी से कहना, तपस्वी जीवनभर का साक्षी व्यक्ति की इंद्रियां अपने आप छाया की भांति पीछे चलने उपवासा हो, तो राह दे दे। लगती हैं। जो अपने को कर्ता समझता है, वही इंद्रियों के वश में अब तो भरोसा करना एकदम ही मुश्किल था। लेकिन कोई होता है। जो अपने को मात्र साक्षी समझता है, वह इंद्रियों के वश | रास्ता न था, नदी के पार जाना था जरूर। नदी से कहा कि नदी राह के बाहर हो जाता है। जो इंद्रियों के वश में होता है, उसके वश में | दे दे, अगर तपस्वी जीवनभर का उपवासा हो। और नदी ने राह दे इंद्रियां कभी नहीं होतीं। और जो इंद्रियों के वश के बाहर हो जाता | | दी! भरोसा तो न आया। नदी पार की। कृष्ण से जाकर कहा कि है. सारी इंद्रियां समर्पण कर देती हैं उसके चरणों में और उसके वश | बहुत मुश्किल है। पहले तो हम तुमसे ही आकर पूछने वाले थे कि में हो जाती हैं। समर्पण का, इंद्रियों के समर्पण का सूत्र क्या है? अदभुत मंत्र दिया! काम कैसे किया? लेकिन छोड़ो उस बात को 467

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