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ओशो-एक परिचय -m
ओशो जुलाई 1986 में बम्बई और जनवरी 1987 में पूना व्हाइट रोब ब्रदरहुड" की सभा में आधे घंटे के लिये उपस्थित के अपने आश्रम में लौट आए, जो अब ओशो कम्यून | होते रहे। इंटरनेशनल के नाम से जाना जाता है। यहां वे पुनः अपनी | 17 जनवरी को वे सभा में केवल नमस्कार करके वापस क्रांतिकारी शैली में अपने प्रवचनों से पंडित-पुरोहितों और | चले गए। 18 जनवरी को “ओशो व्हाइट रोब ब्रदरहुड" की राजनेताओं के पाखंडों व मानवता के प्रति उनके षड्यंत्रों का | सांध्य-सभा में उनके निजी चिकित्सक स्वामी प्रेम अमृतो ने पर्दाफाश करने लगे।
| सूचना दी कि ओशो के शरीर का दर्द इतना बढ़ गया है कि वे इसी बीच भारत सहित सारी दुनिया के बुद्धिजीवी वर्ग व | हमारे बीच नहीं आ सकते, लेकिन वे अपने कमरे में ही सात समाचार माध्यमों ने ओशो के प्रति गैर-पक्षपातपूर्ण व विधायक | बजे से हमारे साथ ध्यान में बैठेंगे। दूसरे दिन 19 जनवरी चिंतन का रुख अपनाया। छोटे-बड़े सभी प्रकार के | 1990 को सायं पांच बजे ओशो शरीर छोड़ कर महाप्रयाण कर समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में अक्सर उनके अमृत-वचन | | गये। इसकी घोषणा सांध्य-सभा में की गयी। ओशो की इच्छा अथवा उनके संबंध में लेख व समाचार प्रकाशित होने लगे। के अनुरूप, उसी सांध्य-सभा में उनका शरीर गौतम दि बुद्धा देश के अधिकांश प्रतिष्ठित संगीतज्ञ, नर्तक, साहित्यकार, | | आडिटोरियम में दस मिनट के लिए लाकर रखा गया। दस कवि व शायर ओशो कम्यून इंटरनेशनल में अक्सर आने लगे। हजार शिष्यों और प्रेमियों ने उनकी आखिरी विदाई का उत्सव मनुष्य की चिर-आकांक्षित उटोपिया का सपना साकार देख कर | संगीत-नृत्य, भावातिरेक और मौन में मनाया। फिर उनका उन्हें अपनी ही आंखों पर विश्वास न होता।
शरीर दाहक्रिया के लिए ले जाया गया। 26 दिसंबर 1988 को ओशो ने अपने नाम के आगे से | 21 जनवरी 1990 के पूर्वाह्न में उनके अस्थि-फूल का 'भगवान' संबोधन हटा दिया। 27 फरवरी 1989 को ओशो कलश महोत्सवपूर्वक कम्यून में लाकर च्यांग्त्स हॉल में निर्मित कम्यून इंटरनेशनल के बुद्ध सभागार में सांध्य-प्रवचन के संगमरमर के समाधि भवन में स्थापित किया गया। समय उनके 10,000 शिष्यों व प्रेमियों ने एकमत से अपने ओशो की समाधि पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है: प्यारे सद्गुरु को 'ओशो' नाम से पुकारने का निर्णय लिया। ___ अक्तूबर 1985 में जेल में अमरीका की रीगन सरकार
OSHO द्वारा ओशो को थेलियम नामक धीमा असर करने वाला जहर
Never Born दिये जाने एवं उनके शरीर को प्राणघातक रेडिएशन से गुजारे
Never Died जाने के कारण उनका शरीर तब से निरंतर अस्वस्थ रहने लगा
Only Visited this था और भीतर से क्षीण होता चला गया। इसके बावजूद वे
Planet Earth between ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना के गौतम दि बुद्धा Dec 11 1931-Jan 19 1990 आडिटोरियम में 10 अप्रैल 1989 तक प्रतिदिन संध्या दस हजार शिष्यों, खोजियों और प्रेमियों की सभा में प्रवचन देते रहे ध्यान और सृजन का यह अनूठा नव-संन्यास उपवन,
और उन्हें ध्यान में डुबाते रहे। इसके बाद के अगले कई महीने | ओशो कम्यून, ओशो की विदेह-उपस्थिति में आज पूरी दुनिया उनका शारीरिक कष्ट बढ़ गया।
| के लिए एक ऐसा प्रबल चुंबकीय आकर्षण-केंद्र बना हुआ है ____ 17 सितंबर 1989 से पुनः गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम | कि यहां निरंतर नये-नये लोग आत्म-रूपांतरण के लिए आ में हर शाम केवल आधे घंटे के लिए आकर ओशो मौन रहे हैं तथा ओशो की सघन-जीवंत उपस्थिति में अवगाहन कर दर्शन-सत्संग के संगीत और मौन में सबको डुबाते रहे। इस बैठक को उन्होंने “ओशो व्हाइट रोब ब्रदरहुड" नाम दिया। ओशो 16 जनवरी 1990 तक प्रतिदिन संध्या सात बजे "ओशो
हैं।
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