Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 494
________________ - गीता दर्शन भाग-1 AM जन्म ऐसे बीत सकते हैं। दूसरे से पूछा, तुम कितने दिन रुकोगे? उसने कहा, मैं तो सिर्फ तीन अगर कोई आदमी साहस से वासना में ही चला जाए, तो आज | सप्ताह रुकूँगा। वैटिकन के पोप ने कहा, तुम काफी फ्रांस देख नहीं कल वासना के बाहर आना पड़ेगा। सिर्फ परमात्मा के बाहर | लोगे। तीसरे से पूछा, तुम कितने दिन रुकोगे? उसने कहा, मैं तो आने का उपाय नहीं है, बाकी तो कहीं से भी बाहर आना पड़ेगा। | सिर्फ एक सप्ताह के लिए आया हूं। वैटिकन के पोप ने कहा कि क्योंकि जिस दिन पता चलेगा कि व्यर्थ है, उसी दिन लौटना शुरू तुम पूरा फ्रांस देख लोगे। तीनों चकित हुए। उन्होंने कहा, आप क्या हो जाएगा। उस दिन फिर कृष्ण की बात उधार नहीं मालूम पड़ेगी, कहते हैं। मैं छः महीना रुकुंगा, मुझसे कहते हैं कि थोड़ा-बहुत देख आथेंटिक, प्रामाणिक हो जाएगी। प्राणों की, अपने ही प्राणों से आई लोगे। तीन सप्ताह वाले से कहते हैं, काफी देख लोगे। एक सप्ताह हुई मालूम पड़ेगी। उस दिन गवाही दे सकेगा वाल्मीकि कि ठीक | वाले से कहते हैं, पूरा देख लोगे! वैटिकन के पोप ने कहा कि कहते हो तुम, मैं भी दस्तखत करता हूं, मैं भी गवाह हूं, विटनेस | जिंदगी का मेरा अनुभव यही है कि जिसके पास लगता है कि बहुत हूं कि यही बात है। सिर्फ नर्क के और कुछ भी नहीं आता। समय है, वह उतना आराम कर लेता है। जिसके पास लगता है कि इसलिए जब में कहता हूं कि वासना की पूर्णता पर ही रूपांतरण समय कम है, वह शीघ्रता से दौड़-धूप कर लेता है। जो चीज होता है, तो मेरी दोनों बातों में कोई विरोध नहीं है। वासना की लगती है कि कभी भी मिल जाएगी. उसे हम कभी नहीं पाते। और पूर्णता पर आप परमात्मा से सर्वाधिक दूर होते हैं, लेकिन वासना | जो चीज लगती है कि अब आखिरी घड़ी आ गई, जहां से छूटी तो की पूर्णता पर, चरम स्थिति में रूपांतरण की संभावना भी सर्वाधिक सदा को छूट जाएगी, हम दौड़ पड़ते हैं। होती है। असल में जो परमात्मा से सर्वाधिक दूर है, वही शायद | इसलिए अगर कभी पापी अपने पाप की चरम सीमा से परमात्मा परमात्मा की सर्वाधिक कमी भी अनुभव कर पाता है। और जो | की गोद में सीधा पहुंच जाता है, तो बहुत चकित होने की जरूरत परमात्मा से सर्वाधिक दूर है, वही शायद दौड़कर परमात्मा की गोद | नहीं है। वह दौड़ पाता है। उसे लगता है, आ गई आखिरी जगह, में भी गिर पाता है। जिनको लगता है कि हम तो पास ही हैं मंदिर | यहां से एक कदम और कि मैं सदा के लिए खो जाऊंगा; फिर के पड़ोस में वे सोचते हैं. कभी भी हो लेंगे। ऐसी कोई जल्दी भी लौटने की कोई जगह न रह जाएगी। लौट पडता है। आपको नहीं क्या है? पड़ोस में ही मंदिर है, कभी भी मंदिर में चले जाएंगे। | लगता है। आपको लगता है, रास्ता साफ सुथरा है; बिलकुल आदमी हम भले हैं, ऐसा परमात्मा की तरफ दौड़ने की जरूरत भी | | मेटल रोड है; मजे से चले जा रहे हैं। गति अच्छी है। और फिर क्या है? कभी भी, कभी भी। | भगवान पास है। भले आदमी हैं, दान भी देते हैं, गीता भी पढ़ते एक अंग्रेज लेखक ने एक छोटी-सी किताब लिखी है। उस हैं, मस्जिद भी जाते हैं, मंदिर भी जाते हैं. साध-संत को नमस्कार किताब में उसने लिखा है कि लंदन में दूसरे यात्री आते हैं सारी | भी करते हैं, और क्या चाहिए! कभी भी चले जाएंगे। पास है। दुनिया से, तो लंदन का टावर देख लेते हैं; पर लंदन में ऐसे लाखों नहीं। इसलिए पाप की पीड़ा मनुष्य को परमात्मा के पास पहुंचा लोग हैं, जिन्होंने लंदन का टावर नहीं देखा है। नहीं देखा इसलिए | देती है और पुण्य का अहंकार मनुष्य को परमात्मा से दूर कर देता है। कि देख लेंगे कभी भी। रोज उसी के पास से दफ्तर के लिए जाते हैं, देख लेंगे कभी भी! इतने पास है, ऐसा अहसास जो है-देख लेंगे। पेकिंग से आदमी आता है, देख लेता है। टोकियो से आता इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । है, देख लेता है। बंबई से आता है, देख लेता है। लंदन का निवासी एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् । । ४० ।। टावर के सामने ही रहता है, पत्थर फेंके तो टावर पर पहुंच जाए, तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । लेकिन वह नहीं पहुंचता। वह सोचता है, देख लेंगे। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् । । ४१ ।। वैटिकन के पोप से एक दफा एक अमेरिकी यात्री मिलने आया। इंद्रियां, मन (और) बुद्धि इसके वासस्थान कहे जाते हैं तीन मित्र साथ ही आए। वैटिकन के पोप ने पूछा कि फ्रांस में कितने (और) यह (काम) इनके द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित दिन रुकने का इरादा है? एक अमेरिकन ने कहा, छः महीने। करके (इस) जीवात्मा को मोहित करता है। वैटिकन के पोप ने कहा कि तुम थोड़ा-बहुत फ्रांस जरूर देख लोगे। | इसलिए, हे अर्जुन! तू पहले इंद्रियों को वश में करके ज्ञान 464

Loading...

Page Navigation
1 ... 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512