Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 386
________________ yam गीता दर्शन भाग-1 +K हिस्सा, प्रार्थना करते समय खयाल में रखें, मंदिर में प्रवेश करते जीवन में, तो वापस भीड़ में लौट आए। मोहम्मद जब दुखी हैं, तो समय खयाल में रखें, साधु-संत के पास जाते समय खयाल में रखें। | पहाड़ पर; और जब आनंद से भर गए, तो जिंदगी में, बाजार में। और यह भी खयाल में रखें कि जो साधु-संत प्रलोभन देता हो | | जहां भी आनंद घटित होगा, आनंद को बांटना पड़ेगा। वैसे ही जैसे कि आओ, मैं यह दे दंगा, वहां भलकर मत जाना। क्योंकि वहां जब बादल पानी से भर जाते हैं. तो बरसते हैं ऐसे प्रार्थना घटित ही नहीं हो सकती। वहां प्रार्थना असंभव है। और प्राणों में भरता है, तो बरसता है। बरसना ही चाहिए। अगर न चूंकि लोग मांगते हैं, इसलिए साधु देने वाले पैदा हो गए हैं। वे | बरसा, तो रोग बन जाएगा। आपने पैदा किए हैं। आप नौकरी मांगते हैं, तो नौकरी देने वाले इसलिए कृष्ण दूसरा सूत्र कहते हैं कि अर्जुन! जब यज्ञरूपी कर्म साधु हैं। धन मांगते हैं, तो धन देने वाले साधु हैं। स्वास्थ्य मांगते से दिव्य शक्तियां वह सब देने लगें जिसकी कि प्राणों में सदा से हैं, तो स्वास्थ्य देने वाले साधु हैं। राख मांगते हैं, तो राख देने वाले प्यास और मांग रही, लेकिन कभी मिला नहीं और अब बिना मांगे साधु हैं। ताबीज मांगते हैं, तो ताबीज देने वाले साधु हैं। जो-जो | | मिल गया है, तो कंजूस मत हो जाना। उसे रोक मत लेना, उसे बांट बेवकूफी हम मांगते हैं, उसको सप्लाई कोई तो करना चाहिए। | देना। क्योंकि जितना तुम बांटोगे, उतना ही वह बढ़ता चला जाता है। परमात्मा नहीं करता, तो दूसरे लोग करते हैं। लेकिन ध्यान रखें, आनंद का यह नियम अगर खयाल में आ जाए कि बांटने से वहां धर्म का फूल कभी नहीं खिलेगा, वहां प्रार्थना प्राणों से कभी | | बढ़ता है...। कबीर ने कहा है, दोनों हाथ उलीचिए। आनंद को नहीं निकलेगी और गूंजेगी। बाजार है, वह भी बाजार का ही हिस्सा | | ऐसे ही उलीचना चाहिए जैसे नाव चलती हो और पानी नाव में भर है। धर्म का उससे कोई लेना-देना नहीं है। यह पहला सूत्र है। जाए, तब दोनों हाथ आदमी उलीचने लगता है। आनंद को भी ऐसे इस सूत्र का दूसरा हिस्सा है, जिसमें कृष्ण और भी गहरी बात | | ही दोनों हाथ उलीचिए। उसे बांट दीजिए, उसे रोकिए मत। उसे कहते हैं। वे यह कहते हैं कि यज्ञरूपी कर्म से जो मिले, उसे बांट रोका कि वह सड़ा। वही नहीं सड़ेगा, उसे रोकने से वह जो द्वार दो, उसमें दसरों को साझीदार बना लो। क्यों? उसे शेयर करो। खला था-अन-मांगा मिलने का वह भी बंद हो जाएगा। क्यों? यह भी एक नियम है जीवन का-परम नियमों में से | क्योंकि वह द्वार उसी के लिए खुला रह सकता है, जो बिना मांगे एक–कि जितना हम अपने आनंद को बांटते हैं, उतना वह बढ़ता | खुद भी दे। है; और जितना उसे रोकते हैं, उतना सड़ता है। जितना हम अपने | आप जानते हैं कि घर में अगर दो खिड़कियां हों, तो आप एक आनंद में दूसरों को सहभागी बनाते हैं, शेयरिंग करते हैं, उतना वह नहीं खोलते। एक खोलने. से कुछ मतलब नहीं होता। क्रास अनंत गुना होता चला जाता है। और जितना हम कंजूस की तरह | | वेंटिलेशन चाहिए। एक खिड़की खोलते हैं, उससे हवा नहीं आती, अपने आनंद को तिजोरी में बंद कर लेते हैं, आखिर में हम पाते हैं जब तक कि दूसरी खिड़की न खुले, जिससे हवा बाहर जाए। एक कि वहां सिर्फ सड़ांध और बदबू रह गई और कुछ भी नहीं बचा है। खिड़की खोले बैठे रहें, तो कमरे में हवा नहीं आएगी। खिड़की तो आनंद का जीवन विस्तार में है, फैलाव में है। खुली है, लेकिन हवा नहीं आएगी कमरे में। ताजी हवाएं कमरे में और खयाल रखें, जब आप दुख में होते हैं, तो सिकुड़ जाते हैं। नहीं भरेंगी, क्योंकि कमरे से हवाओं को निकलने का कोई मार्ग ही दख में मन करता है कि किसी कोने में दबकर बैठ जाएं कोई मिले नहीं है। इसलिए इसके पहले कि आप हवाओं को निमंत्रित करें. न, कोई देखे न, कोई बात न करे। बहुत दुखी होते हैं, तो मन होता | | उस द्वार को भी खोल दें, जहां से हवाएं आएं और जा भी सकें। है, मर ही जाएं। उसका मतलब यह है कि ऐसे कोने में चले जाएं, __ आनंद भी क्रास वेंटिलेशन है। इधर से परमात्मा की तरफ से जहां से कोई संबंध जिंदगी से न रह जाए। लेकिन जब भी आप | | आनंद मिलना शुरू हो, तो दूसरी तरफ से बांट दें। और जितना आनंद में होते हैं, तब आप कोने में नहीं बैठना चाहते हैं, तब आप | बांटेंगे, उतना ही परमात्मा की तरफ से आनंद बढ़ता चला जाता है। चाहते हैं, मित्र के पास, प्रियजनों के पास जाएं। | जितने रिक्त होंगे, खाली होंगे, उतने भर दिए जाएंगे। कभी आपने खयाल किया कि बुद्ध जब दुखी थे, तो जंगल में | | इसलिए जीसस कहते हैं, जिसके पास भी हिम्मत नहीं है देने गए; और जब आनंद से भर गए, तो शहर में वापस लौट आए! की, वह पाने का पात्र भी नहीं है। जिसमें देने की हिम्मत है, वह महावीर जब दुखी थे, तो पहाड़ों में गए; और जब आनंद भर गया पाने का भी पात्र है। हम सिर्फ पाना चाहते हैं और देना कभी नहीं 356

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