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m श्रद्धा है द्वार पर
इसलिए श्रद्धा बहुत बड़ा शब्द है।
हैं कि अब किसी आदमी पर भरोसा नहीं करना; यह अविवेक है। पर यह मैं जरूर कहूंगा कि श्रद्धा तक वे ही पहुंचते हैं, जो सच तो यह है कि जिस आदमी ने आज आपको धोखा दिया, वह विवेकवान हैं; वे नहीं पहुंचते, जो विवेकहीन हैं। इतना कहूंगा। | भी कल धोखा देगा, यह जरूरी नहीं है। आदमी बदल जाते हैं।
और इतना ही उपयोग है विवेक का। विवेकहीन श्रद्धा तक कभी और आपको एक आदमी ने धोखा दिया और सारी मनुष्यता पर से नहीं पहंचते। विवेकहीन अश्रद्धा तक पहुंच जाते हैं। विवेकवान | आपका विश्वास उठ गया! बड़ी अविवेक की बात है। बड़ी श्रद्धा तक पहुंच जाते हैं। क्या मतलब मेरा? विवेकहीन अश्रद्धा | विवेकहीन बात है। एक जगह ठोकर लग गई, तब सारी दुनिया में तक पहुंच जाते हैं। मैंने अभी आपको कहा कि श्रद्धा का मैं अर्थ | ठोकर लगेगी, यह निर्णय ले लिया! करता हूं, ट्रस्ट, भरोसा। भरोसा-सहज, सरल। अश्रद्धा का अर्थ | ___ एक दिन ऐसा हुआ कि मैं एक ट्रेन में सवार था। एक स्टेशन करता हूं, गैर-भरोसा-कठिन, जटिल—किसी का भी नहीं; | पर रुकी बहुत देर तक। एक आदमी भीख मांगने खिड़की पर आया परमात्मा तो दूर है, किसी का भी नहीं, भरोसा ही नहीं। अंततः | और उसने कहा कि मैं बड़ी मुसीबत में हूं। मैंने कहा, तुम मुसीबत अपना भरोसा भी नहीं।
| मत बताओ, क्योंकि मुसीबत बताने में तुम्हारा भी समय जाया एक आदमी को मैं जानता हूं, मेरे गांव में मेरे घर के सामने रहते | | होगा, मेरा भी। तुम मुझे यह कहो कि मैं क्या कर सकता हूं? उसने थे। ताला लगाते हैं, दस कदम फिर लौटकर आकर ताला हिलाकर | मेरी तरफ देखा, उसको शक हुआ, क्योंकि बिना मुसीबत बताए देखते हैं। फिर जाते हैं, फिर देखते हैं कि किसी ने देखा तो नहीं | किसी को फंसाया नहीं जा सकता। क्योंकि जब वह पूरी मुसीबत एक दफे लौटा हुआ! फिर लौटते हैं, फिर हिलाकर देखते हैं। एक | बता ले और पांच मिनट आप सुन लें, तो फिर इनकार करने में दिन मैं छत पर बैठा देख रहा था। दो बार मैंने देखा, मैंने सोचा, | | कठिनाई हो जाती है। तो उसने कहा कि नहीं, मेरी मुसीबत...। तीसरी बार भी यह आदमी जरूर लौटेगा। क्योंकि जब दो बार में | मैंने कहा कि तुम मुसीबत की बात ही मत करो। तुम मुझे यह भरोसा नहीं आया कि ताला लगा है कि नहीं, तो तीसरी बार में कैसे | | कहो कि क्या कर सकता हूं? उसने बड़ी हिम्मत जुटाकर कहा कि आएगा! लेकिन उस आदमी ने भी मुझे देख लिया। तो ठीक जगह, एक रुपया दे दें। मैंने कहा, तुम एक रुपया लो। इतनी सरलता से जहां से वह लौटता था, उस जगह जाकर उसके पैर थोड़े-से | | छूटती है बात! तुम नाहक मुसीबत मुझे बताओ, मैं तुम्हारी मुसीबत डगमगाए। मैंने कहा, लौट आओ। उसने कहा कि मैं आपके ही सुनूं। तुम यह रुपया लो और जाओ। वह आदमी बड़ी बेचैनी में डर से तो लौट नहीं रहा। तो मैंने कहा कि यहां मेरे पास आओ। गया। उसने बार-बार रुपए को देखा भी होगा, फिर लौटकर मुझे बात क्या है? उसने कहा, मुझे भरोसा ही नहीं होता। ऐसा लगता भी देखा कि यह आदमी भरोसे का नहीं मालूम पड़ता। क्या गड़बड़ है कि पता नहीं भूल-चूक से खुला ही न रह गया हो! और पता है! कुछ मैंने कहा ही नहीं, कोई मुसीबत नहीं सुनी। होता तो ऐसा नहीं कि मैंने हिलाकर देखा भी है या नहीं देखा!
| है कि मुसीबत पूरी बताओ, तब भी कोई कुछ नहीं देता। और उसने अब वह आदमी इतनी दफे देख चुका है हिलाकर कि शक हो सोचा कि यह आदमी...! जाना बिलकुल स्वाभाविक है। अब यह जो आदमी है, यह अश्रद्धा | पांच सात मिनट बाद वह वापस आया। टोपी लगाए था, वह को उपलब्ध हुआ। यह अश्रद्धा टोटल हो गई। यह पत्नी पर भरोसा | | उतारकर रख आया। उसने आकर फिर खिड़की पर कहा कि मैं बड़ी नहीं कर सकता, बेटे पर भरोसा नहीं कर सकता, मित्र पर भरोसा | | मुसीबत में हूं। मैंने कहा, मुसीबत की बात ही मत करो। तुम मुझे नहीं कर सकता। यह अपने ही हाथों पर भरोसा नहीं कर सकता। | यह बताओ कि तुम्हें मैं क्या कर सकता हूं? उसने मुझे पूरी आंख यह अपनी ही बुद्धि पर भरोसा नहीं कर सकता। इसका सब भरोसा | | से देखा कि मैं पागल तो नहीं हूं! उसने बड़ी हिम्मत जुटाई, उसने खो गया। अब ऐसा अश्रद्धावान जीते जी मर गया। पर यह इतनी | | सोचा कि ऐसा नहीं हो सकता कि यह आदमी भूल ही गया हो, अश्रद्धा कैसे आई होगी? यह अविवेक के कारण आई है। | सिर्फ टोपी अलग कर लेने से। और वही की वही बात। उसने बहुत अविवेक का क्या मतलब? अविवेक का मतलब, विवेक का | | हिम्मत जुटाकर कहा कि मुझे दो रुपए...! मैंने कहा, तुम यह दो गलत उपयोग किया है इसने।
| रुपए लो। वह फिर मुझे बार-बार लौटता हुआ देखे, रुपए देखे। अगर आपको एक आदमी ने धोखा दे दिया, तो आप समझते दो-तीन मिनट बाद वह फिर आ गया। कोट पहने था, उसको
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