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- गीता दर्शन भाग-1
हों। आदमी बड़ी घटना है। कंकड़ों तक के संबंध में परमात्मा खुशी कैसे मिले? सच बात यह है कि खुशी सिर्फ स्वधर्म के व्यक्तित्व देता है, तो आदमी के संबंध में तो देता ही है। फलफिलमेंट से मिलती है और किसी तरह मिलती नहीं है। बाकी
इसलिए कृष्ण कहते हैं, खोज, पीछे देख, लौटकर देख, तू क्या सब समझाने की तरकीबें हैं, कन्सोलेशंस हैं। सिर्फ आदमी को हो सकता है! अर्जुन को कृष्ण, अर्जुन से भी ज्यादा बेहतर ढंग से | | आनंद उसी दिन मिलता है, जिस दिन उसके भीतर का बीज पूरा जानते हैं। कृष्ण की आंखें अर्जुन को आर-पार देख पाती हैं। | खिल जाता है और फूल बन जाता है। उस दिन वह परमात्मा के
अब पश्चिम में मनोविज्ञान कह रहा है कि प्रत्येक नर्सरी स्कूल | चरणों में समर्पित कर पाता है। उस दिन वह धन्यभागी हो जाता है। में, किंडरगार्टन में, प्रत्येक प्राइमरी स्कूल में मनोवैज्ञानिक होने | | उस दिन वह कह पाता है, प्रभु तेरी अनुकंपा है, तेरी कृपा है; चाहिए, जो प्रत्येक बच्चे का एप्टिट्यड-अगर कृष्ण की भाषा में धन्यभागी हं कि तने मझे पथ्वी पर भेजा है। अन्यथा जिंदगीभर वह कहें, तो स्वधर्म-उस बच्चे का झुकाव पता लगाएं। और | | कहता रहता है कि मेरे साथ अन्याय हुआ है; मुझे क्यों पैदा किया मनोवैज्ञानिक कहे कि इस बच्चे का यह झुकाव है, तो बाप उस | | है? क्या वजह है मुझे सताने की? मुझे क्यों न उठा लिया जाए? बच्चे का कुछ भी कहे कि इसको डाक्टर बनाना है, अगर कामू ने अपनी एक किताब का प्रारंभ एक बहुत अजीब शब्द से मनोवैज्ञानिक कहे कि चित्रकार, तो बाप की नहीं चलनी चाहिए। | किया है। लिखा है, दि ओनली मेटाफिजिकल प्राब्लम बिफोर सरकार कहे कि इसे डाक्टर बनाना है, तो सरकार की नहीं चलनी ह्यूमन काइंड इज़ स्युसाइड-मनुष्य जाति के सामने एक ही चाहिए। सरकार कितना ही कहे कि हमें डाक्टरों की जरूरत है, हमें | धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक प्रश्न है, सवाल है और वह है, पेंटर की जरूरत नहीं है, तो भी नहीं चलनी चाहिए। क्योंकि यह आत्महत्या। कि हम आत्महत्या क्यों न कर लें? रहने का क्या आदमी डाक्टर हो ही नहीं सकता। हां, डाक्टर की डिग्री इसे मिल प्रयोजन है? क्या अभिप्राय है? क्या अर्थ है? ठीक कहता है वह। सकती है, लेकिन यह डाक्टर हो नहीं सकता। इसके पास । एक ओर कहां हम कृष्ण को देखते हैं बांसुरी बजाते, नाचते; चिकित्सक का एप्टिटयूड नहीं है। इसके पास वह गुणधर्म नहीं है। कहां एक ओर हम दुख-पीड़ा से भरे हुए लोग! कहां एक ओर बुद्ध
इसलिए पश्चिम का मनोवैज्ञानिक इस सत्य को समझने के कहते हैं, परम शांति है; कहां एक ओर हम कहते हैं, शांति परिचित करीब आ गया है। और वह कहता है, अब तक बच्चों के साथ | नहीं है, कोई पहचान नहीं है। कहां एक ओर क्राइस्ट कहते हैं, प्रभु ज्यादती हो रही है। कभी बाप तय कर लेता है कि बेटे को क्या | का राज्य; और कहां हम एक ओर, जहां सिवाय नर्क के और कुछ बनाना है, कभी मां तय कर लेती है, कभी कोई तय कर लेता है। | भी दिखाई नहीं पड़ता है। या तो ये सब पागल हैं, या हम चूक गए कभी समाज तय कर देता है कि इंजीनियर की ज्यादा जरूरत है। | हैं कहीं। जहां ये नहीं चूके हैं, वहां हम चूक गए हैं। चूक गए हैं, कभी बाजार तय कर देता है। मार्केट वेल्यू होती है—डाक्टर की | स्वधर्म से चूक गए हैं। ज्यादा है, इंजीनियर की ज्यादा है, कभी किसी की ज्यादा है-इन | | इसलिए मैं भी दोहराता हूं, स्वधर्म में असफल हो जाना भी सब से तय हो जाता है। सिर्फ एक व्यक्ति, जिसे तय किया जाना श्रेयस्कर, परधर्म में सफल हो जाना भी अश्रेयस्कर। स्वधर्म में मर चाहिए था, वह भर तय नहीं करता है। वह उस व्यक्ति की | | जाना भी उचित, परधर्म में अनंतकाल तक जीना भी नर्क। स्वधर्म अंतरात्मा से कभी नहीं खोजा जाता है कि यह आदमी क्या होने को | में एक क्षण भी जो जी ले, वह मुक्ति को अनुभव कर लेता है। एक है। बाजार तय कर देगा, मां-बाप तय कर देंगे, हवा तय कर देगी, | क्षण भी अगर मैं पूरी तरह वही हो जाऊं, जो परमात्मा ने चाहा है फैशन तय कर देगी कि क्या होना है।
कि मैं होऊ, बस, उससे ज्यादा प्राणों की और कोई प्यास नहीं है। स्वभावतः मनुष्य विजड़ित हो गया है, क्योंकि कोई मनुष्य वह नहीं हो पाता है, जो हो सकता है। और जब कभी भी हम करोड़ों लोगों में एकाध आदमी वही हो जाता है, जो होने को पैदा हुआ था, प्रश्नः भगवान श्री, आप कहते हैं, धर्म एक है, तो उसका आनंद और है, उसका नृत्य और है, उसका गीत और है। | समाधि एक है, परमात्मा एक है, लेकिन स्वधर्म उसकी जिंदगी में जो खुशी है; फिर हम तड़पते हैं कि यह खुशी | अनेक हैं। तो इन दोनों में कैसे तालमेल बैठे, इसे हमको कैसे मिले? कौन-सा मंत्र पढ़ें, कौन-सा ग्रंथ पढ़ें, यह | स्पष्ट करें।
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