Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 480
________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM . ताकत उसको दे रही है और वह बड़ा हो रहा है। आपने इधर क्रोध | | जाए, उससे पेंट करता। और जब उससे कोई पूछता, किसलिए? का बीज बोया, सारी दुनिया से क्रोध को साथ देने वाली | | तो वह कहता, बस, बना लेने में आनंद है। ताकतें–तमस की, इनरशिया की ताकतें-आपकी तरफ बहनी परमात्मा उद्देश्य से जगत को नहीं बना रहा है; बना लेने में शुरू हो जाएंगी। आपने प्रेम बोया, सारी तरफ से दुनिया से शुभ आनंद है; बनाना ही आनंद है। आगे-पीछे कुछ भी उद्देश्य नहीं, शक्तियां आपकी तरफ बहनी शुरू हो जाएंगी। आपने साक्षीभाव परपजलेस। और ध्यान रहे, आनंद हमेशा ही परपजलेस होता है। निर्मित किया, दुनिया की सारी ताकतें आपके लिए बैलेंस में हो | एक मां अपने बेटे को बड़ा कर रही है, उससे पूछे, किसलिए? जाएंगी। कोई आपकी तरफ नहीं बहेगा, कोई आपके बाहर नहीं | अगर वह कहे कि बाद में नौकरी करवानी है, तो समझना मां नहीं बहेगा; सब चीजें सम हो जाएंगी; ठहर जाएंगी। है, कोई फैक्टरी है। अगर मां है, तो वह कहेगी, किसलिए? कैसा कृष्ण कहते हैं, न तो कोई शैतान, न कोई परमात्मा; ये तीन गलत सवाल पूछते हो! बस, मेरा आनंद है। शक्तियां हैं अर्जुन। और तू जिसका बीज बो देता है अपने भीतर, | परमात्मा के लिए सृष्टि आनंद है, उसका आनंद-कृत्य है; वही शक्ति सक्रिय होकर काम करने लगती है। | इसलिए उद्देश्य तो कोई नहीं है। हां, लेकिन यह सवाल फिर भी | संगत है कि वह आदमी में तमस क्यों रखता है? असल में हम तमस शब्द को सदा ही गलत अर्थों में लेते रहे हैं। प्रश्न: भगवान श्री, तीनों गुणों से चलने वाली सृष्टि | | हम समझते हैं, तमस कोई बुरी चीज है। तमस बुरी नहीं है, तमस ईश्वर ने बनाई। तमस गुण मनुष्य की प्रकृति में ईश्वर | अपने आप में बुरी चीज नहीं है। हां, तमस में ही पूरी तरह भर जाना ने दिया, उसके पीछे क्या उद्देश्य ईश्वर का है? | बुरा है। तमस अपने आप में बुरा नहीं है, जहर भी अपने आप में | बुरा नहीं है; और कभी तो बीमारी में दवा का काम करता है। हम कहें कि जहर क्यों बनाया परमात्मा ने! एक आदमी जहर खाकर = श्वर का कोई उद्देश्य नहीं होता। उद्देश्य की भाषा सदा | | मर जाए। आप कहेंगे कि जिम्मेदार परमात्मा है। जहर क्यों र मनुष्य की है। उद्देश्य तो उसका होता है, जिसे भविष्य बनाया? न बनाता परमात्मा, न यह आदमी खाता। । ____ में कुछ पाना हो। जैसे एक आदमी, एक कुम्हार एक लेकिन जहर अपने आप में किसी को मारता नहीं। जहर तो घड़ा बनाता है। उसका उद्देश्य होता है कि बाजार में बेचना है या | जिला भी सकता है। लेकिन इस आदमी ने जहर ही जहर खा लिया, उसका उद्देश्य होता है कि घर का पानी भरना। फिर एक वानगाग तो मर गया। अमृत भी खा लो ज्यादा मात्रा में, तो मौत घटित हो चित्र बनाता है। वानगाग से कोई पूछता है कि यह चित्र तुमने किस | सकती है। अमृत भी मात्रा में ही खाना, अगर मिल जाए! एक तो उद्देश्य से बनाया है ? तो वह कहता है, कोई उद्देश्य नहीं है। बनाना मिलता नहीं, क्योंकि डर यही है कि जहर तो बहुत कम लोग खाते ही मेरा आनंद है। आप कहेंगे, बाजार में बिक सकता है। वानगाग हैं, अमृत अगर मिल जाए, तो बिना मात्रा में बहुत लोग खा जाएंगे। का एक चित्र नहीं बिका, एक चित्र जिंदा रहते नहीं बिका। आप | शायद इसीलिए नहीं मिलता है। क्योंकि रोकेंगे कैसे फिर अमृत कह सकते हैं कि कोई प्रतिष्ठा मिलती होगी, कोई सम्मान करता | | मिल जाए, तो आप अपने को कि अब कहां रुकें, खाते ही चले होगा कि बड़े चित्रकार हो। किसी ने प्रतिष्ठा नहीं की, किसी ने | जाएंगे। अमृत से मौत आ जाएगी। सम्मान नहीं किया। आप कहते होंगे कि बड़ा धन वाला आदमी रहा ___ जीवन में नियम हैं। कोई नियम बुरा नहीं, कोई नियम भला नहीं, होगा, पैसा पास में रहा होगा, फुर्सत रही होगी, तो कुछ न कुछ | अनिवार्य हैं। बिना तमस के, बिना इनरशिया के जगत अस्तित्व में करता रहा होगा। नहीं, वानगाग बहुत गरीब आदमी था। और | | नहीं हो सकता। उसके अस्तित्व में होने के लिए कोई अवरोधक उसका भाई उसे इतना ही पैसा देता था, जिसमें सात दिन की सिर्फ | शक्ति चाहिए। लेकिन अगर कोई आदमी सिर्फ अवरोधक शक्ति रोटी चल जाए रूखी-सूखी। न रंग के लिए पैसे, न कागज के पर ही निर्भर रह जाए, तो भी खतरा हो जाएगा, क्योंकि दूसरी दो लिए, न कैनवास के लिए। तो वह सप्ताह में चार दिन खाना खाता शक्तियां भी चाहिए। और श्रेष्ठतम स्वास्थ्य की स्थिति वह है, जहां और तीन दिन उपवास करता। और तीन दिन में उपवास में जो बच तीनों शक्तियां बैलेंस करती हैं, संतुलित होती हैं। उसी क्षण में 14501

Loading...

Page Navigation
1 ... 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512