Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 485
________________ 1000+ वासना की धूल, चेतना का दर्पण 4 अज्ञान से दो मतलब हो सकते हैं। ज्ञान का अभाव मतलब हो सकता है अज्ञान से, एब्सेंस आफ नोइंग । कृष्ण का यह मतलब नहीं है। अज्ञान ज्ञान का अभाव नहीं है, अज्ञान ज्ञान का ढंका होना है। अज्ञान ज्ञान का अभाव नहीं है, अज्ञान सिर्फ ज्ञान का अप्रकट होना है। यह भी बहुत मजे की बात है कि धुआं वहीं प्रकट हो सकता है, जहां आग हो। धुआं वहां प्रकट नहीं हो सकता, जहां आग न हो। अज्ञान भी वहीं प्रकट हो सकता है, जहां ज्ञान हो । अज्ञान भी वहां प्रकट नहीं हो सकता, जहां ज्ञान न हो। इसलिए तर्कशास्त्री से अगर पूछेंगे, नैयायिक से अगर पूछेंगे, तो वह कहेगा, जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग है। हम धुआं देखकर ही कह देते हैं कि आग जरूर होगी। दूसरी मजे की बात यह है कि धुआं तो बिना आग के कभी नहीं होता, लेकिन आग कभी बिना धुएं के हो सकती है, होती है । असल में धुएं का संबंध आग से इतना ही है कि आग बिना ईंधन के नहीं होती। और ईंधन अगर गीला है, तो धुआं होता है; और अगर सूखा है, तो धुआं नहीं होता। लेकिन धुआं बिना आग नहीं हो सकता, ईंधन कितना ही गीला हो। ईंधन अगर सूखा हो, तो आग बिना धुएं के हो सकती है, दमकता हुआ अंगारा बिलकुल बिना धुएं के होता है। अज्ञान के अस्तित्व के लिए पीछे ज्ञान जरूरी है, इसलिए अज्ञान ज्ञान का अभाव नहीं है, एब्सेंस नहीं है, अनुपस्थिति नहीं है। अज्ञान भी बताता है कि भीतर ज्ञान मौजूद है। अन्यथा अज्ञान भी संभव नहीं है, अज्ञान भी नहीं हो सकता है। अज्ञान सिर्फ आवरण की खबर देता है। और आवरण सदा उसकी भी खबर देता है, जो भीतर मौजूद है। बीज सिर्फ आवरण की खबर देता है, अंडे के ऊपर की खोल सिर्फ आवरण की खबर देती है। साथ में यह भी खबर देती है कि भीतर वह भी मौजूद है, जो आवरण नहीं है। इसलिए अज्ञानी को हताश होने की कोई भी जरूरत नहीं है। अज्ञानी को निराश होने की कोई भी जरूरत है। और ज्ञानी को भी अहंकारी हो जाने की कोई जरूरत नहीं है। अगर हिसाब रखा जाए, तो अज्ञानी के पास ज्ञानी से सदा ज्यादा है। यह ज्ञानी को अहंकारी होने की कोई भी जरूरत नहीं है। अज्ञानी को निराश होने की कोई भी जरूरत नहीं है। जो ज्ञानी में प्रकट हुआ है, वह अज्ञानी प्रकट है। जो अप्रकट है, वह प्रकट हो सकता है। वह अप्रकट क्यों है? क्या कारण है? क्या बाधा है ? कृष्ण कहते हैं, धुआं जैसे आग को घेरता है, वैसे ही वासना मन को हुए है। वासना को समझना जरूरी है, अन्यथा आत्मा को हम न समझ पाएंगे। वासना को समझना जरूरी है, अन्यथा अज्ञान को हम न समझ पाएंगे। वासना समझना जरूरी है, अन्यथा का ज्ञान प्रकट होना असंभव है। अब अगर हम ठीक से समझें, तो ज्ञान में अज्ञान बाधा नहीं बन रहा है; ठीक से समझें, तो ज्ञान में वासना | बाधा बन रही है। क्योंकि वासना ही गीला ईंधन है, जिससे कि | धुआं उठता है; वासनामुक्त आदमी सूखे ईंधन की भांति है। मैंने सुना है, फरीद के जीवन में एक छोटा-सा उल्लेख है। एक आदमी आया है और फरीद से पूछने लगा, कि मैंने सुना है कि मंसूर के हाथ-पैर काट डाले गए और उसे दुख न हुआ, यह कैसे हो सकता है ? और मैंने सुना है कि जीसस को फांसी लगाई गई और जीसस परमात्मा से कहते रहे, इन सबको माफ कर देना, क्योंकि ये लोग जानते नहीं हैं कि क्या कर रहे हैं। यह कैसे हो सकता है? यह असंभव है। सूली लगाई जाए, हाथ-पैर काटे जाएं, खीले ठोंके जाएं, गरदन काटी जाए - यह संभव नहीं है, पीड़ा तो | होगी ही, दुख तो होगा ही। मुझे ये सब कहानियां मालूम पड़ती हैं। फरीद हंसने लगा। उसके पास एक नारियल पड़ा था, कोई भक्त चढ़ा गया था। उसने उसे उठाकर दे दिया और कहा, जाओ, देखते | हो इस नारियल को, इसे ठीक से तोड़ लाओ; खोल अलग कर देना, गिरी अलग कर लाना और गिरी को साबित बचा लाना। उस आदमी ने कहा, माफ करें, यह न होगा। नारियल कच्चा है । गिरी और खोल जुड़े हुए हैं। अभी मैं खोल तोडूंगा, तो गिरी भी टूट जाएगी। फरीद ने कहा, छोड़ो, दूसरा नारियल ले जाओ। यह सूखा नारियल है, इसकी तो गिरी और खोल अलग कर लाओगे ! उस आदमी ने कहा, बिलकुल कर लाऊंगा। फरीद ने कहा, अब जाने की जरूरत नहीं है, नारियल को यहीं | रख दो। मैं तुमसे यह पूछता हूं कि सूखे नारियल की गिरी और खोल को तुम बचा लाओगे, अलग कर लाओगे; खोल टूट जाएगी, गिरी बच जाएगी। क्यों? उस आदमी ने कहा, यह भी कोई पूछने की बात है ? सूखे नारियल की गिरी और खोल अलग-अलग हो गई हैं। कच्चे नारियल की जुड़ी हैं। फरीद ने | कहा, बस अब जाओ; तुम्हारे सवाल का जवाब मैंने दिया है। | जीसस या मंसूर जैसे लोगों का नारियल सूखा नारियल है। तो शरीर को कोई चोट पहुंचाता है तो शरीर टूटता है; लेकिन आत्मा तक चोट नहीं पहुंचती है, आत्मा तक घाव नहीं बनता। हम सब कच्चे 455

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