Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 478
________________ गीता दर्शन भाग-1 होगा कि जब आप कामवासना को मन को पकड़ लेने देते हैं, आप जब पकड़ लेने देते हैं...। और ध्यान रहे, कामवासना आपके बिना पकड़ाए आपको नहीं पकड़ती है। हां, एक सीमा होती है हर चीज की, उसके पार मुश्किल हो जाता है रोकना। एक सीमा होती है। जगह-जगह हमने कार की ट्रैफिक पर लिखा हुआ है कि यहां पांच मील रफ्तार। क्यों? क्योंकि वहां इतने ज्यादा लोग गुजर रहे हैं कि अगर तीस मील रफ्तार हो, तो रोकना समय पर मुश्किल है। पांच मील हो, तो समय पर रोकना आसान है। जहां लोग कम गुजर रहे हैं, वहां सत्तर मील भी हो, तो कोई हर्ज नहीं। वहां समय पर सत्तर मील भी रोकना आसान है। हर चीज की एक सीमा है। फ्रायड, सिग्मंड फ्रायड एक कहानी कहा करता था। वह कहा करता था कि एक छोटे से गांव में एक गरीब म्युनिसिपल कमेटी गांव का कचरा ढोने के लिए एक घोड़ा खरीदा, एक घोड़ागाड़ी के लिए। लेकिन गरीब थी म्युनिसिपैलिटी और कहते हैं, गांव बड़ा बुद्धिमान था । बुद्धिमान था, ऐसा कहें; या लोगों में ऐसी मजाक प्रचलित थी कि गांव बहुत बुद्धिमान है, गांव को ऐसा खयाल था कि बहुत बुद्धिमान है। हालांकि वह जो भी करता था, वह बहुत बुद्धिहीनता के काम होते थे । म्युनिसिपल ने एक घोड़ा खरीदा। लेकिन घोड़े को घास, दाना, पानी इतना महंगा पड़ने लगा कि म्युनिसिपल के बजट पर भारी हुआ। गरीब, छोटी-सी म्युनिसिपल थी। कमेटी बुलाई गई। उन्होंने तय किया कि क्या किया जाए ! उन्होंने कहा कि आधा राशन करके देखा जाए घोड़े के लिए। अगर आधे में काम चल जाए तो ठीक, नहीं फिर थोड़ा बढ़ा देंगे। आधा राशन किया, लेकिन काम बिलकुल ठीक चल गया। घोड़ा आधे राशन पर भी जिंदा रहा। तब तो उन्होंने कहा कि हम पागल हैं, जो इसको इतना दें। और आधा करके देखें। उन्होंने और आधा किया। घोड़ा फिर भी जिंदा रहा और फिर भी काम करता रहा! उन्होंने कहा, हम बिलकुल पागल हैं। इसे और आधा करें। और भी आधा कर दिया। घोड़ा मुश्किल में रहा, लेकिन फिर भी किसी तरह काम करता रहा । म्युनिसिपल कमेटी ने कहा कि हम बिलकुल नासमझी कर रहे हैं, अब राशन बिलकुल बंद कर दें। राशन बिलकुल बंद कर दिया। जो होना था, वही हुआ। घोड़ा मर गया। एक सीमा थी, जहां तक घोड़ा कम राशन पर भी काम किया; फिर एक सीमा आई, जहां से काम नहीं कर सका। हमारी प्रत्येक वृत्ति की सीमाएं हैं, जहां तक हम उन्हें रोक सकते 448 हैं, और जहां से फिर हम उन्हें नहीं रोक सकते। एक विचार मेरे मन में उठा, शब्द बना मेरे भीतर। अभी मैं आपको न कहूं, तो रोक सकता हूं। फिर मेरे मुंह से शब्द निकल गया; अब इस शब्द को वापस नहीं ला सकता। एक सीमा थी, एक जगह थी; मेरे भीतर विचार भी था, शब्द भी था, ओंठ पर भी आ गया था, फिर भी मैं रोक सकता हूं। फिर एक सीमा के बाहर बात हो गई, मैंने आपसे बोल दिया, अब मैं इसे वापस नहीं लौटा सकता। अब कोई उपाय इसे वापस लौटाने का नहीं है। एक जगह थी, जहां से यह वापस लौट जाता। क्रोध, एक जगह है, जहां से वापस लौट सकता है। लेकिन जब | उस जगह के बाहर निकल जाता है, उसके बाद वापस नहीं लौटता। . काम, एक जगह है, जहां से वापस लौट सकता है। जब उसके आगे चला जाता है, तो फिर वापस नहीं लौट सकता। और ध्यान रहे, बड़े मजे की बात यह है कि उस सीमा तक, जहां तक काम वापस लौट सकता है, उस समय तक आप उसको सहयोग देते हैं। और जब वह वापस नहीं लौटता, तब आप चिल्लाते हैं कि कौन मुझे धकाए जा रहा है परवश! कौन मुझे बलात काम करवा रहा है ! इसे ठीक से भीतर समझेंगे, तो खयाल में आ जाएगा। एक | जगह है, जहां तक हर वृत्ति आपके हाथ में होती है। लेकिन जब आप उसे इतना उकसाते हैं कि आप का पूरा शरीर और पूरा यंत्र उसको पकड़ लेता है, फिर आपकी बुद्धि के बाहर हो जाता है। फिर आप कहते हैं कि नहीं-नहीं। और फिर भी घटना घटकर रहती है। तब आप कहते हैं, कौन बलात करवाए चला जाता है, जब कि हम नहीं करते हैं! कोई नहीं करवाता, शक्तियां करती हैं। लेकिन करवाने का अंतिम निर्णय गहरे में आपका ही कोआपरेशन है, आपका ही सहयोग है। कृष्ण इतना ही कह रहे हैं कि कोई बैठा नहीं है पार, तुम्हें क्रोध में, काम में, युद्ध में, लड़ाई-झगड़े में ले जाने को । प्रकृति के नियम हैं। अगर उन नियमों को तुम समझ लेते हो और समता को, | संतुलन को उपलब्ध होते हो; अनासक्ति को, साक्षीभाव को उपलब्ध होते हो; विवेक को, श्रद्धा को उपलब्ध होते हो, तो फिर तुम्हें कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं है, फिर जो भी होगा परमात्मा पर। लेकिन जब तक तुम ऐसी समता को और अनासक्ति को उपलब्ध नहीं होते, भीतर तुम आसक्ति को पालते चले जाते हो, बारूद में चिनगारी डालते चले जाते हो, फिर जब आग भड़ककर | मकान को पकड़ लेती है, तब तुम कहते हो, मैं तो चाहता नहीं था

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