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परधर्म, स्वधर्म और धर्म -
को जंच जाती हैं। यानी उसी दिन ईदन के बगीचे में ऐसी भूल हुई
श्री भगवानुवाच हो, ऐसा नहीं, हर बगीचे में और हर घर में यही भूल होती है। जंच | काम एष कोध एष रजोगुणसमुद्भवः । ही जाती है। क्योंकि स्त्री परसुएड करने में बहुत कुशल है। महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ।। ३७।।
उसने फुसलाया अदम को। अदम ने फल खा लिया, और इस पर अर्जुन ने पूछा कि हे कृष्ण, फिर यह पुरुष तत्काल स्वर्ग के दरवाजे के बाहर निकाल दिए गए। परमात्मा ने बलात्कार से लगाए हुए के सदृश, न चाहता हुआ भी, कहा, अदम, तूने फल क्यों खाया? उसने कहा, मैं क्या करूं! किससे प्रेरा हुआ पाप का आचरण करता है? दूसरे ने मुझे फुसलाया, ईव ने मुझे फुसलाया। ईव से कहा कि तूने श्री कृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन, रजोगुण से उत्पन्न हुआ इसे क्यों फुसलाया? तो उसने कहा, दूसरे ने मुझे फुसलाया, सांप | यह काम क्रोध ही है; यही महाअशन अर्थात अग्नि के ने मुझे फुसलाया।
सदृश, भोगों से तृप्त न होने वाला और बड़ा पापी है। ईसाई कहानी कहती है कि दूसरे के मार्ग से पाप आता है। इस
इस विषय में इसको ही तू वैरी जान । कहानी में दो-तीन बातें हैं। दसरे के मार्ग से। और इसमें एक और | बात खयाल करने की है। और वह यह कि ज्ञान के फल ने आदमी को स्वर्ग के बाहर क्यों कर दिया? क्योंकि जैसे ही अदम ने फल 27 र्जुन ने एक बहुत ही गहरा सवाल कृष्ण से पूछा। खाया और जैसे ही ईव ने फल खाया उस ट्री आफ नालेज का, ज्ञान JI अर्जुन ने कहा, फिर अगर सब कुछ परमात्मा ही कर के वृक्ष का, वैसे ही अदम को पता चला कि मैं नंगा हूं, ईव को रहा है, अगर सब कुछ प्रकृति के गुणधर्म से ही हो पता चला कि मैं नग्न हूं, उसने जल्दी से पत्ते रखकर अपनी नग्नता | | रहा है, अगर सब कुछ सहज ही प्रवाहित है और अगर व्यक्ति ढांक ली। परमात्मा ने कहा कि तुमने ज्ञान तो पा लिया, लेकिन | जिम्मेवार नहीं है, तो फिर पाप कर्म न चाहते हुए भी कि करे, सरलता खो दी। और सरलता में ही स्वर्ग है, कांशसनेस में नहीं, | | आदमी बलात पाप कर्म क्यों कर लेता है? कौन करवा देता है? ज्ञान में नहीं, सरलता में। अब तक तुम बच्चों जैसे सरल थे। नग्न | | अगर परमात्मा ही चला रहा है सब कुछ और मैं भी नहीं चाहता कि थे, तो तुम्हें पता न था कि तुम नग्न हो। अब तुम बच्चों जैसे सरल | बुरा कर्म करूं, और परमात्मा चला रहा है सब कुछ, फिर भी मैं न रहे। अब तुम चालाक हो गए, अब तुम कनिंग हो गए, अब तुम | | बुरे कर्म में प्रवृत्त हो जाता है, तो बलात मुझे कौन बुरे कर्म में धक्का कैलकुलेटिंग हो गए, अब तुम हिसाब लगाने लगे कि नग्न हैं; | दे देता है? ऐसा है, वैसा है। अब तुम सवाल उठाओगे, अब तुम सवालों में ___ गहरा सवाल है। कहना चाहिए कि मनुष्य जाति में जो गहरे से उलझोगे और गिरोगे।
गहरे सवाल उठाए गए हैं, उनमें से एक है। सभी धर्मों के ___ ज्ञान का फल इसलिए, जो ज्ञान इसलिए सरलता को नष्ट कर | | सामने–चाहे हिब्रू, चाहे ईसाई, चाहे मोहमडन, चाहे हिंदू, चाहे दे, वह धोखा है, ज्ञान नहीं है। नाम ही उसका ज्ञान है। जो ज्ञान | जैन-गहरे से गहरा सवाल यह उठा है कि अगर परमात्मा ही चला सरलता को वापस लौटा दे, वही ज्ञान है। और दूसरे के मार्ग से | | रहा है और हम भी नहीं चाहते...। और फिर आप तो कहते हैं कि ज्ञान नहीं आता, अज्ञान आता है। और दूसरे के मार्ग से धर्म नहीं | हमारे चाहने से कुछ होता नहीं। हम चाहें भी, तो भी परमात्मा जो आता, अधर्म आता है। धर्म का मार्ग स्वयं के भीतर है। वह गंगोत्री | | चाहता है, उससे अन्यथा नहीं हो सकता। और हम चाहते भी नहीं स्वयं के भीतर है जहां से ज्ञान की, धर्म की गंगा जन्मती है और | कि बुरा कर्म करें और परमात्मा तो चाहेगा क्यों कि बुरा कर्म हो! एक दिन सर्व के सागर में लीन हो जाती है।
फिर कौन हमें धक्के देता है और बलात बुरे कर्म करवा लेता है ? फ्राम व्हेयर इज़ ईविल? यह बुराई कहां से आती है?
___ अलग-अलग चिंतकों ने अलग-अलग उत्तर खोजे हैं जो बहुत अर्जुन उवाच
गहरे नहीं गए, उन्होंने कहा, शैतान है, वह करवा लेता है। उत्तर अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । खोजना जरूरी था, लेकिन यह कोई बहुत गहरा उत्तर नहीं है। वे अनिच्छन्नपि वाष्र्णेय बलादिव नियोजितः ।। ३६ ।। कहते हैं, डेविल है, एक पापात्मा है, वह सब करवा लेती है। लेकिन
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