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गीता दर्शन भाग-1 -
परधर्म पकड़ने की मत सोच।
धर्म की खोज में जाने वाला आदमी दूसरे से हटता है, चुपचाप बडे मजे की बात है, जो परधर्म को पकड ले. वह परमात्मा तक हट जाता है। न पर रहे-न रहे बांस. न बजे बांसरी—न पर रहे. कभी नहीं पहुंच सकता। परधर्म पकड़ने वाला तो स्वधर्म तक ही | | न पर को पकड़ने का प्रलोभन रहे। हट जाता है छोड़कर चुपचाप। नहीं पहुंचता, परमात्मा तक पहुंचने का तो सवाल ही नहीं उठता। | लेकिन जिस आदमी को अधर्म करना है, वह आदमी भीड़ खोजता पहले परधर्म छोड़, स्वधर्म पकड़। फिर घड़ी आएगी वह | है। वह आदमी कभी अकेलापन नहीं खोजता। क्योंकि अधर्म करने भी-उसकी हम बात करेंगे जब कृष्ण कहेंगे, अब स्वधर्म भी | के लिए दूसरा बिलकुल जरूरी है। छोड़, अब परमात्मा में लीन हो जा। पर को छोड़ पहले, फिर स्व | यह बड़े मजे की बात है कि शांत तो आप अकेले भी हो सकते को भी छोड़ देना, तब सर्व उपलब्ध होता है। पर को छोड़कर स्व, हैं, अशांत के लिए दूसरा बिलकुल जरूरी है। यह बड़े मजे की बात स्व को छोड़कर सर्व। उसके आगे फिर कुछ छोड़ने-पकड़ने को है कि आनंदित तो आप अकेले भी हो सकते हैं, लेकिन दुखी होने नहीं रह जाता।
के लिए दूसरा बहुत जरूरी है। यह बड़े मजे की बात है कि पवित्रता स्वधर्म परधर्म के विपरीत है। और धर्म जो है, वह अधर्म के में तो आप अकेले भी हो सकते हैं, लेकिन पाप में उतरने के लिए विपरीत है। स्वधर्म परधर्म के विपरीत है, धर्म जो है वह अधर्म के दूसरा बिलकुल जरूरी है। ब्रह्मचर्य में तो आप अकेले भी हो सकते विपरीत है। परधर्म से यात्रा स्वधर्म तक, स्वधर्म से यात्रा धर्म तक। हैं, लेकिन कामुकता के लिए दूसरा बिलकुल जरूरी है। त्याग तो जो आदमी स्वधर्म को लेकर चलेगा, एक दिन धर्म में पहुंच | आप अकेले भी कर सकते हैं, लेकिन भोग के लिए दूसरा बिलकुल जाएगा; और जो आदमी परधर्म को पकड़कर चलेगा, एक दिन जरूरी है। इसे खयाल ले लें। अधर्म में पहुंच जाएगा। परधर्म का आखिरी कदम अधर्म होगा। एक ईसाई पैरेबल है, ईसाई कहानी है ओल्ड टेस्टामेंट में। ईदन क्योंकि परधर्म को पकड़ने वाले की निजता खो जाती है, उसकी के बगीचे में अदम और ईव को परमात्मा ने बनाया। कहानी है, आत्मा खो जाती है। और जिस दिन आत्मा खो जाती है, उसी दिन | | लेकिन एक बात देखने जैसी है, इसलिए आपसे कहता हूं। और अधर्म घर कर लेता है। खुद का दीया तो बुझ गया, अब अंधेरा घर परमात्मा ने कहा कि यह एक वृक्ष है, इसके फल मत खाना। यह में प्रवेश कर जाएगा। जिसका स्वधर्म जागता है, वह अधर्म में | ज्ञान का वृक्ष है, इसके फल खाए कि तुम स्वर्ग के दरवाजे के बाहर कभी नहीं गिर पाता। स्वधर्म बढ़ते-बढ़ते, ज्योति बढ़ते-बढ़ते एक कर दिए जाओगे। बड़ी अजीब बात! बड़ी अजीब बात! अज्ञान का दिन सूर्य के साथ एक हो जाती है। उस दिन वह धर्म को उपलब्ध । कोई फल खाए और स्वर्ग के बाहर कर दिया जाए, समझ में आता हो जाता है।
| है। ज्ञान का कोई फल खाए और स्वर्ग के दरवाजे के बाहर कर तो ये चार बातें खयाल में ले लें। हमारे सामने अभी विकल्प है, | | दिया जाए, समझ में आने में कठिनाई होती है। लेकिन साफ या तो स्वधर्म, या परधर्म। अगर अधर्म तक जाना हो, तो परधर्म | परमात्मा ने कहा कि यह ज्ञान का वृक्ष है, इसके फल खाए तो स्वर्ग का रास्ता उपयोगी है, हितकर है, सहयोगी है। अगर धर्म तक जाना के बाहर कर दिए जाओगे। हो, तो स्वधर्म का रास्ता हितकर है, सहयोगी है। अधर्म तक हम सांप ने आकर ईव को, स्त्री को कहा कि त पागल है, इस धोखे दूसरे के द्वारा पहुंचते हैं।
में मत पड़ना। परमात्मा खुद इसी वृक्ष के फल खाकर परमात्मा है। इस संबंध में एक छोटी-सी कहानी आपको कहूं। अधर्म तक और पागल, कहीं ज्ञान के फल खाकर कोई स्वर्ग खोता है! ज्ञान सदा ही हम वाया दि अदर, दूसरे के द्वारा पहुंचते हैं। और धर्म तक के फल से ही स्वर्ग मिलता है। तुम्हें पता ही नहीं है कुछ। खा लो हम सदा ही वाया दि सेल्फ, स्व के द्वारा पहुंचते हैं।
और परमात्मा जैसे हो जाओ। ईव ने अदम को समझाया कि इस इसलिए धर्म पर जाने वाला आदमी एकांत में चला जाता है, फल को खा ही लेना चाहिए। इसमें जरूर कोई राज है, जरूर कोई ताकि दूसरे न हों, जहां दूसरे न हों, दूसरे का चित्र भी न बने। | रहस्य है। और जब परमात्मा ने रोका, तो मतलब गहरा है। और इसलिए धर्म की खोज में बद्ध जंगल चले जाते हैं, महावीर पहाड़ों परमात्मा ज्ञान के फल खाने से रोके, तो हमारा दोस्त नहीं दुश्मन पर चले जाते हैं, मोहम्मद पहाड़ चढ़ जाते हैं, मूसा सनाई के पर्वत है। ज्ञान का फल! पर खो जाते हैं।
अदम को भी बात जंची, जैसा कि सदा ही स्त्रियों की बातें परुषों
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