Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 463
________________ mश्रद्धा है द्वार - जिसको दोनों का अनुभव है, उसकी बात ही भरोसे की होती है। - अध्यात्म-चेतना तीसरे तरह की है। न तो वह सत्य को उघाड़ती और न सत्य को ढांकती, वह सत्य के साथ स्वयं को लीन करती है। विज्ञान उघाड़ता, कला ढांकती। धर्म एक हो जाता। अध्यात्म, प्रश्नः भगवान श्री, अगले श्लोक में जाने के पहले सत्य क्या है, इसे नहीं जानना चाहता; सत्य कैसा होना चाहिए, इसे एक छोटा-सा प्रश्न और। श्लोक क्रमांक तीस में | | नहीं बनाना चाहता; अध्यात्म स्वयं ही सत्य हो जाना चाहता है। कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अध्यात्म चेतसा होकर | | अध्यात्म की जिज्ञासा संघर्ष की नहीं, अध्यात्म की जिज्ञासा संवारने संपूर्ण कर्मों को मुझे समर्पित करके तू युद्ध कर। कृपया | | की नहीं, अध्यात्म की जिज्ञासा तल्लीनता की है, लीन हो जाने की अध्यात्म चेतसा होकर, इसका अर्थ पुनः स्पष्ट करें। है। सत्य जो है, उसी में डूब जाना चाहता है। वह जैसा भी हो–सुंदर-असुंदर-सत्य जैसा भी है, अध्यात्म उसमें डूब जाना चाहता है। विज्ञान दुश्मन की तरह व्यवहार करता। कला मित्र की 11 नुष्य के पास तीन प्रकार की चेतनाएं हो सकती हैं, थ्री | तरह व्यवहार करती। अध्यात्म भेद ही नहीं रखता मित्र और शत्रु UI टाइप्स आफ कांशसनेस। एक विज्ञान चेतना, एक का, अभेद व्यवहार करता है। कला चेतना और एक अध्यात्म चेतना। मनुष्य तीन ___ कृष्ण कहते हैं अर्जुन से कि तू अध्यात्म चेतसा होकर, चेतनाओं से जीवन के सत्य से संबंधित हो सकता है. तीन ढंग. तीन | आध्यात्मिक चेतन संपन्न होकर समर्पण को उपलब्ध हो। एप्रोच। एक विज्ञान की एप्रोच है, एक अध्यात्म की या धर्म की और ___ठीक ही कहते हैं। क्योंकि अध्यात्म चेतन ही समर्पण कर सकता एक कला या आर्ट की। ठीक है, इन तीनों का अंतर समझ लेना है। विज्ञान कभी समर्पण नहीं करता। विज्ञान समर्पण कर दे, तो जरूरी भी है। अध्यात्म चेतस, स्प्रिचुअल कांशसनेस क्या है? | बेकार हो गया। अगर एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में समर्पण कर दे, विज्ञान की चेतना अन्वेषण करती है; सत्य क्या है, इसकी खोज तो विज्ञान खतम। विज्ञान लड़ता है, प्रकृति को समर्पित करवाने की करती है। विज्ञान-चेतना सत्य क्या है, इसकी खोज करती है, कोशिश करता है; खुद समर्पण कभी नहीं करता। वैज्ञानिक योद्धा अन्वेषण करती है, डिस्कवर करती है। जो ढंका है, उसे उघाड़ती की तरह जूझता है। और प्रकृति से कहता है, तू समर्पण कर, अपने है, निर्वस्त्र करती है, तथ्य को नग्न करती है। कला-चेतना, आर्ट रहस्यों को उघाड़, अपने वस्त्रों को अलग कर, अपने तथ्यों को कांशसनेस, जो है, उसे सजाती और संवारती है; उघाड़ती नहीं, प्रकट कर, मेरे सामने समर्पित हो। विज्ञान योद्धा की तरह, प्रकृति ढांकती है-आभूषणों से, वस्त्रों से, रंगों से, कविताओं से, लयों को शत्रु की भांति लेकर जीतने की कोशिश करता है। से, छंदों से। विज्ञान उघाड़ता, नग्न तथ्य को खोजता, नैकेड टूथ, ___ कला लड़ती नहीं, प्रकृति को फुसलाती है, परसुएड करती है। क्या है? विज्ञान तथ्य के साथ दुश्मन की भांति लड़ता है, वह कहती है, जो भी है, कोई फिक्र नहीं। लेकिन हमारा मन चाहता कांफ्लिक्ट, जूझता है; सत्य को जीतने की कोशिश करता है, है, ऐसा हो। उमर खय्याम ने गीत गाया है, कि अगर मेरा बस चले, कांकरिंग। कला सत्य को ढांकती, जहां-जहां कुरूप है, असुंदर है, तो सारी दुनिया को मिटाकर फिर अपने मन की दुनिया ढंग से बना वहां-वहां संदर का निर्माण करती. तथ्यों को स्वप्न बनाती. जिंदगीलं। कवि वही करता है। नहीं बस चलता यहां तो कविता में बना के सीधे-सादे रंगों को रंगीन करती, काव्य देती, फिक्शन देती। | लेता है। चित्रकार वही करता है। सुंदर नहीं मिलता ऐसा पृथ्वी पर काव्य संजोता-संवारता, तथ्य जो है, उसे उघाड़ता नहीं, ढांकता, कोई, तो एक मूर्ति बना लेता है। कला संवारती है, ढांकती है, डेकोरेट करता, डेकोरेटिव है। इसलिए विज्ञान कई दफा ऐसे तथ्य शृंगार करती है-प्रेयस बन जाए जगत, जीवन प्रिय हो जाए, बस। उघाड़ लेता है, जो बड़े संघातक सिद्ध होते हैं। और कला कई बार अध्यात्म न मित्र है, न शत्रु। अध्यात्म कहता है, जो है, उसके जीवन की ऐसी अभद्रताओं को ढांक जाती है, जो अप्रीतिकर हो | | साथ मैं एक होना चाहता हूं। कला सृजन करती, विज्ञान अन्वेषण सकती थीं। | करता, धर्म समर्पण करता। कला क्रिएटिव है, विज्ञान इनवेंटिव है, अध्यात्म चेतस, कृष्ण कहते हैं, अध्यात्म चेतस होकर तू धर्म सरेंडरिंग है। इसलिए कृष्ण कहते हैं कि तू अध्यात्म चेतस हो, समर्पण कर। तो ही समर्पण को उपलब्ध हो सकता है। 433

Loading...

Page Navigation
1 ... 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512