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परधर्म, स्वधर्म और धर्म 4AR
फिर वही होने में लग जा। और सारी चिंताओं को छोड़ दे। तो ही | की क्षमता असीम है। अक्सर बुढ़ापे में कवि अपनी पुरानी तू किसी दिन संतृप्ति के अंतिम मुकाम तक पहुंच सकता है। | कविताओं को फिर-फिर लिखने लगते हैं। चित्रकार चुक जाते हैं
परधर्म लेकिन हम ओढ़ लेते हैं। इसके दो कारण हैं। एक तो | | और फिर उन्हीं चित्रों को पेंट करने लगते हैं, जिनको वे कई दफा स्वधर्म तब तक हमें पूरी तरह पता नहीं चलता, जब तक कि फूल कर चुके। थोड़ा बहुत हेर-फेर, और फिर वही पेंट करते हैं। आदमी खिल न जाए। गुलाब को भी पता नहीं चलता तब तक कि उसमें | की सीमाएं हैं। से क्या खिलेगा, जब तक गुलाब खिल न जाए। तो बड़ी कठिनाई खलील जिब्रान ने अपनी पहली किताब, प्रोफेट, इक्कीस साल है, स्वधर्म क्या है! मर जाते हैं और पता नहीं चलता; जीवन हाथ | की उम्र में लिखी, बस चुक गया। फिर बहुत किताबें लिखीं, लेकिन से निकल जाता है और पता नहीं चलता कि मैं क्या होने को पैदा वे सब पुनरुक्तियां हैं। फिर प्रोफेट के आगे कोई बात नहीं कह हुआ था! परमात्मा ने किस मिशन पर भेजा था! कौन-सी यात्रा पर सका। इक्कीस साल में मर गया, एक अर्थ में। एक अर्थ में, भेजा था। मुझे क्या होने को भेजा था! मैं किस बात का दूत होकर खलील जिब्रान इक्कीस साल में मर जाए, तो कोई बड़ी हानि होने पृथ्वी पर आया था, इसका मरते दम तक पता नहीं चलता। वाली नहीं थी। जो वह दे सकता था, दिया जा चुका था, चुक गया।
न पता चलने में सबसे बड़ी जो बाधा है, वह यह है कि चारों ___ अगर पिकासो के चित्र उठाकर देखें, तो पुनरुक्ति ही है फिर। तरफ से परधर्म के प्रलोभन मौजूद हैं, जो कि पता नहीं चलने देते फिर वही-वही दोहरता रहता है। फिर आदमी जुगाली करता है, कि स्वधर्म क्या है। गुलाब तो खिला नहीं है, अभी उसे पता नहीं । | जैसे भैंस घास खा लेती है और जुगाली करती रहती है। अंदर जो है, लेकिन बगल में कोई कमल खिला है, कोई चमेली खिली है, | | डाल लिया, उसी को निकालकर फिर चबा लेती है। कोई चंपा खिली है। वे खिले हुए हैं, उनकी सुगंध पकड़ जाती है, | - लेकिन परमात्मा जुगाली नहीं करता, अनंत है उसकी उनका रूप पकड़ जाता है, उनका आकर्षण, उनकी नकल पकड़ सृजनशीलता, इनफिनिट क्रिएटिविटी। जो एक दफा बनाया, जाती है और मन होता है कि मैं भी यही हो जाऊं। महावीर के पास | | बनाया। उस माडल को फिर नहीं दोहराता। लेकिन हमारा मन होता से गुजरेंगे, तो मन होगा कि मैं भी महावीर हो जाऊं। खिला फूल | | है कि किसी को देखकर हम आकर्षित हो जाते हैं कि ऐसे हो जाएं। है वहां। बुद्ध के पास से गुजरेंगे, तो मन होगा, कैसे मैं बुद्ध हो | | बस, भूल की यात्रा शुरू हो गई। जाऊं! क्राइस्ट दिखाई पड़ जाएंगे, तो प्राण आतुर हो जाएंगे कि | ___ परधर्म लुभाता है, क्योंकि परधर्म खिला हुआ दिखाई पड़ता है। ऐसा ही मैं कब हो जाऊं! कृष्ण दिखाई पड़ जाएंगे, तो प्राण नाचने | स्वधर्म का पता नहीं चलता, क्योंकि वह भविष्य में है। परधर्म लगेंगे और कहेंगे, कृष्ण कैसे हो जाऊं!
अभी है, पड़ोस में खिला है; वह आकर्षित करता है कि मैं भी खुद का तो पता नहीं कि मैं क्या हो सकता हूं; लेकिन आस-पास ऐसा हो जाऊं। खिले हुए फूल दिखाई पड़ सकते हैं। और उनमें भटकाव है। क्योंकि | कृष्ण जब कहते हैं कि स्वधर्म में हार जाना भी बेहतर है, परधर्म कृष्ण, इस पृथ्वी पर कृष्ण के सिवाय और कोई दूसरा नहीं हो सकता | | में सफल हो जाने के बजाए, तो वे यह कह रहे हैं कि परधर्म से है। उस दिन नहीं, आज भी नहीं, कल भी नहीं, कभी नहीं। परमात्मा सावधान। परधर्म भयावह है। इससे बड़ी फिअरफुल कोई चीज पुनरुक्ति करता ही नहीं है, रिपिटीशन करता ही नहीं है। परमात्मा नहीं है जगत में, परधर्म से। दूसरे को अपना आदर्श बना लेने से बहुत मौलिक सर्जक है। उसने अब तक दुबारा एक आदमी पैदा नहीं बड़ी और कोई खतरनाक बात नहीं है, सबसे ज्यादा इससे भयभीत किया। हजारों साल बीत गए कृष्ण को हुए, दूसरा कृष्ण पैदा नहीं होना। लेकिन हम इससे कभी भयभीत नहीं हैं। हम तो अपने बच्चों हुआ। हजारों साल बुद्ध को हो गए, दूसरा बुद्ध पैदा नहीं हुआ। को कहते हैं कि विवेकानंद जैसे हो जाओ, रामकृष्ण जैसे हो जाओ, हालांकि लाखों लोगों ने कोशिश की है बुद्ध होने की, लेकिन कोई बुद्ध जैसे हो जाओ, मोहम्मद जैसे हो जाओ। जैसे कि परमात्मा बुद्ध नहीं हुआ। और हजारों लोगों ने आकांक्षा की है क्राइस्ट होने चुक गया हो, कि मोहम्मद को बनाकर अब कुछ और अच्छा नहीं की, लेकिन कहां कोई क्राइस्ट होता है! बस, एक बार। | हो सकता है, कि कृष्ण को बनाकर अब कुछ होने का उपाय नहीं ___ इस पृथ्वी पर पुनरुक्ति नहीं है। पुनरुक्ति तो सिर्फ वे ही करते | | रहा है। जैसे परमात्मा हार गया और अब आपके लिए सिर्फ हैं, जिनके सृजन की क्षमता सीमित होती है। परमात्मा की सृजन रिपिटीशन के लिए भेजा है, पुनरुक्ति के लिए, डिट्टो आपको
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