Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 453
________________ + श्रद्धा है द्वार - कीमत ही आंकनी मुश्किल है। उदाहरण के लिए थोड़ा समझाऊं। | | सब अविश्वास भीतर किसी कोने में मौजूद प्रतीक्षा कर रहे हैं। विवेकानंद खोजते थे कि परमात्मा है या नहीं है। खबर श्रद्धा का अर्थ है, ऐसा हृदय जहां विरोध में कोई भी स्वर नहीं है। मिली-रवींद्रनाथ के दादा महर्षि थे-खबर मिली कि महर्षि गांव | जहां जो है, वह पूरी तरह से है, जिसके विपरीत कुछ है ही नहीं। में आए हैं। नाव पर, बजरे में वे साधना करते हैं। रात. आधी रात | जिससे अन्य का कोई अस्तित्व नहीं है। जिससे भिन्न का कोई किसी मित्र ने कहा बारह बजे। आपसे कहा होता, तो आप कहते, | | सवाल नहीं है। जो है, है; पूरा है, टोटल है। श्रद्धा का अर्थ है, सुबह उठकर चल पड़ेंगे; सुबह मिल लेंगे। पर विवेकानंद आधी | | हृदय की समग्रता। रात ही गंगा पार करके बजरे पर चढ़ गए। धक्का दिया, दरवाजा | कृष्ण कह रहे हैं कि श्रद्धापूर्वक, हृदय की समग्रता से, जिसके खुल गया। महर्षि ध्यान कर रहे थे। ध्यान उचट गया। विवेकानंद | भीतर विपरीत कुछ स्वर ही नहीं है, जिसके भीतर अविश्वास की ने जाकर कोट का कालर पकड़ लिया और कहा, ईश्वर है? | रेखा भी नहीं है, वही व्यक्ति इस मार्ग पर चलकर कर्मों को क्षीण ___ अब ऐसे जिज्ञासाएं नहीं की जातीं! ये कोई शिष्ट बातें नहीं हैं। करके मुक्त हो जाता है। लेकिन जो परमात्मा के लिए दीवाने हैं, वे शिष्टाचार के लिए नहीं - तो पहला फर्क विश्वास और श्रद्धा में ठीक से समझ लें। और रुक पाते हैं। कोई भी दीवाना नहीं रुक पाता है। महर्षि ने कहा, बैठो | | आपके पास जो हो, उसे जरा ठीक से देख लें। वह विश्वास है या भी, यह भी कोई ढंग है! अंधेरी रात, पानी से तर-बतर, नदी में | | श्रद्धा है? और ध्यान रहे, अविश्वासी तो कभी श्रद्धा पर पहुंच भी तैरकर आया हुआ युवक, आकर गर्दन पकड़ ले और कहे, ईश्वर | सकता है, विश्वासी कभी नहीं पहुंच पाता है। उसके कारण हैं। जिस है? महर्षि ने कहा, बैठो भी। पर विवेकानंद ने कहा कि नहीं, | आदमी के हाथ में कुछ भी नहीं है, कंकड़-पत्थर भी नहीं हैं, वह जवाब मिल गया। आपकी झिझक ने कह दिया कि आपको पता | आदमी हीरों की खोज कर सकता है। लेकिन जिस आदमी ने नहीं है। अन्यथा मैं पूछता हूं, ईश्वर है? और आप देखते हैं कि मेरे | कंकड़-पत्थर के रंगीन टुकड़ों को समझा हो हीरे-जवाहरात और उन कपडे पानी में भीगे हुए हैं। और मैं पछता हं. ईश्वर है? और आप पर मट्टी बांधे रहे. वह कभी हीरों की खोज पर ही नहीं निकलता है। देखते हैं कि आधी रात है। मैंने नहीं देखी, जो अभी खोज रहा है। अविश्वासी तो किसी दिन श्रद्धा को पा सकता है। उसके कारण तो जिसको मिल गया है, वह क्या खाक देखेगा कि आधी रात है! | हैं। क्योंकि अविश्वास में जीना असंभव है, इंपासिबल है। कूद पड़े वापस। महर्षि ने बहुत बुलाया कि युवक, ठहर! जवाब | अविश्वास आग है, जलाती है, पीड़ा देती है, चुभाती है; अंगारे लेकर जा। विवेकानंद ने पानी से कहा कि जवाब मिल गया। | हैं उसमें। अविश्वास में कोई भी खड़ा नहीं रह सकता। उसे आज झिझक ने सब कह दिया कि अभी कुछ पता नहीं है। नहीं कल या तो श्रद्धा में प्रवेश करना पड़ेगा या विश्वास में प्रवेश फिर यही विवेकानंद कुछ महीनों के बाद रामकृष्ण के पास गए। करना पड़ेगा। भक्त इकट्ठे थे; बीच में घुसकर जाकर उनके पास खड़े होकर कहा, ध्यान रहे, श्रद्धा का विरोध अविश्वास से नहीं है; श्रद्धा का ईश्वर है? उसी तरह जैसे उस दिन रात महर्षि को पकड़कर कहा | | विरोध विश्वास से है। बिलीफ करने वाले लोग कभी भी श्रद्धा को था, ईश्वर है? रामकृष्ण ने यह नहीं कहा कि है या नहीं। रामकृष्ण | उपलब्ध नहीं होते हैं। यह बहुत उलटी-सी बात लगेगी। क्योंकि ने जवाब में ही जवाब दिया और कहा, तुझे जानना है ? विवेकानंद | हम तो सोचते हैं, पहले विश्वास करेंगे, फिर धीरे-धीरे श्रद्धा आ ने लिखा है कि वे आंखें, रामकृष्ण का वह कहना कि तुझे जानना | जाएगी। ऐसा कभी नहीं होता। क्योंकि जिसने विश्वास कर लिया, है ? फिक्र छोड़ इसकी कि है या नहीं। तुझे जानना है, यह बता, तो वह झूठी श्रद्धा में पड़ जाता है। और झूठे सिक्के असली सिक्कों मैं तैयार हूं। विवेकानंद ने लिखा है कि मैंने महर्षि को दिक्कत में | | के मार्ग में अवरोध बन जाते हैं। आप ठीक से जांच कर लेना कि डाल दिया था। रामकृष्ण ने मुझे दिक्कत में डाल दिया। मैंने यह | | आपके पास जो है, वह विश्वास है कि श्रद्धा है। सोचा ही न था कि कोई इतने जोर से पकड़कर कहेगा कि तेरी तैयारी और ध्यान रहे, विश्वास सदा मिलता है दूसरों से, श्रद्धा सदा है, देखना है, जानना है? यह मत पूछ। मैं दिखाने को तैयार हूं। | आती है स्वयं से। एक आदमी हिंदू है, यह विश्वास है, श्रद्धा नहीं; रामकृष्ण एक श्रद्धा से बोल रहे हैं, जहां सब अविश्वास गिर | | क्योंकि अगर वह मुसलमान के घर में रखकर बड़ा किया गया गए हैं। महर्षि देवेंद्रनाथ बोलते भी, तो विश्वास से बोलते, जहां होता, तो मुसलमान होता। एक आदमी मुसलमान है, यह विश्वास

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