Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 445
________________ m- अहंकार का भ्रम - ब्लिस कभी दिखाई नहीं पड़ता। जिंदगी एक उदास कहानी है। आदमी चाहिए। यह कहता है, ठीक है, उसके हाथ में है। वह शेक्सपियर ने कहीं कहा है, ए टेल टोल्ड बाय एन ईडियट, फुल जानेगा, हम क्या सलाह दें? और जब हाथ में तलवार उसके है, आफ फ्यूरी एंड न्वायज सिग्नीफाइंग नथिंग। एक मूर्ख के द्वारा कही | तो उसकी मर्जी; अगर गरदन ही काटनी है, तो काट ले। इसी में हुई कहानी है जिंदगी। शोरगुल बहुत, मतलब कुछ भी नहीं। बस, कुछ हित होगा, तो यही सही। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक बड़ा शोरगुल, जैसे भारी कुछ होने जा शक्तिशाली ही समर्पण करता है, अहंकारी सदा कमजोर होता रहा है। अंत में हाथ कुछ भी नहीं है। कहानी लंबी, दृश्य बहुत | है। लेकिन हम कहेंगे, गलत। अहंकारी कमजोर! अहंकार तो बड़ा बदलते हैं, निष्कर्ष कोई भी नहीं, निष्पत्ति कोई भी नहीं। आखिर में | बलशाली मालूम पड़ता है। खबर आती है, वह आदमी मर गया। और कहानी सदा बीच में ही | यहां आपसे एक और मनोवैज्ञानिक सत्य कहूं। एडलर ने इस टूट जाती है। सदी में कुछ गहरे मनोवैज्ञानिक सत्यों की शोध की है। उसमें एक कहीं कुछ भूल हो रही है। वह भूल यह हो रही है कि जीवन की सत्य यह भी है कि जितना हीन आदमी होता है, उतना ही अहंकारी ऊर्जा, लाइफ एनर्जी ज्वर से बह रही है, बीमारियों से बह रही है। होता है। जितना इनफीरिआरिटी से पीड़ित आदमी होता है, उतना इसलिए जीवन का संगीत, और जीवन के फूल वंचित ही रह जाते अहंकारी होता है। क्योंकि जिसके पास शक्ति होती है, उसे हैं, उन्हें शक्ति ही नहीं मिल पाती है। इसलिए आपसे यह भी कहना अहंकार की कोई जरूरत ही नहीं होती। उसकी शक्ति दिखती ही चाहता हूं, इस सूत्र में कृष्ण के यह भी खयाल कर लें कि वे कह | है; उसकी घोषणा की कोई जरूरत नहीं होती। उसके लिए रहे हैं, विगतज्वर होकर अर्जुन, तू मुझकों समर्पित हो। समर्पित | बैंड-बाजे बजाकर कोई खबर नहीं करनी पड़ती। वह होती ही है। वही हो सकता है, जो परम शक्तिशाली है। कमजोर कभी समर्पित | सूरज कोई खबर नहीं करता कि मैं आता हूं। आ जाता है और नहीं होता। समर्पण बड़ा भारी आत्मबल है। सारी दुनिया जानती है कि आ गया। फूल खिलने लगते हैं और पक्षी मैंने सुना है, एक युवक ने विवाह किया था नया-नया। और | गीत गाने लगते हैं और लोगों की नींद टूट जाती है। वृक्ष उठ जाते अपनी पत्नी को लेकर वह दूर देश की यात्रा पर गया, नाव में। | हैं, हवाएं बहने लगती हैं, सागर की लहरें उठने लगती हैं। सब परानी कहानी है। तफान आ गया और नाव डोलने-डगमगाने लगी तरफ पता चल जाता है कि आ गया। उसका आना ही काफी है। और सारे यात्री कंपने-थर्राने लगे। कोई प्रार्थना करने लगा, कोई | लेकिन कोई नकली सूरज अगर आ जाए, जिसके पास भीतर कोई हाथ जोड़ने लगा, कोई भगवान को बुलाने लगा, कोई मनौती मनाने ताकत न हो, तो सामने वह बैंड मास्टरों को लाएगा, चोट करो, लगा। लेकिन वह युवक बैठा हुआ है। उसकी पत्नी ने कहा, क्या खबर करो कि मैं आता हूं। क्योंकि खुद के आने से तो कोई खबर कर रहे हो तुम! कुछ प्रार्थना नहीं करोगे? कोई उपाय नहीं करोगे? नहीं हो सकती। तुम जरा भी भयभीत नहीं मालूम होते! नाव खतरे में है। यह जो हमारा अहंकार है, यह भीतर की कमजोरी को छिपाता उस युवक ने अपनी तलवार म्यान के बाहर निकालकर उस है; यह सामने से इंतजाम करता है। पता है इसे कि भीतर मैं कमजोर नई-नई दुल्हन के कंधे पर रख दी। चमकती हुई तलवार, गरदन हूं। सीधा तो मेरा कोई भी पता नहीं चलेगा। हां, मिनिस्टर हो जाऊं, पास में है। जरा और गरदन अलग। लेकिन वह युवती हंसती रही। | तो पता चल सकता है। कुर्सी पर बैठ जाऊं, तो पता चल सकता उस युवक ने पूछा, तुझे भय नहीं लगता? तो उस युवती ने कहा, है। धन मेरे पास हो, तो पता चल सकता है। बड़ा मकान मेरे पास जब तुम्हारे हाथ में तलवार हो, तो मुझे भय कैसा? उस युवक ने | हो, तो पता चल सकता है। ऐसे मेरा तो कोई पता नहीं चलेगा। कहा, छोड़! जब परमात्मा के हाथ में सब कुछ है, तो मुझे भय | कुछ हो, जिसके सहारे मैं घोषणा कर सकूँ कि मैं हूं। मैं समबडी कैसा? तलवार म्यान के भीतर रख ली। जब परमात्मा के हाथ में हूं, नोबडी नहीं हूं। मैं ना-कुछ नहीं हूं, कुछ हूं। लेकिन कुछ हूं सब कुछ है, तो मुझे भय कैसा? अगर भीतर, तब तो कोई जरूरत नहीं है। महावीर नंगे भी खड़े हो लेकिन सब कमजोर प्रार्थनाएं कर रहे हैं; वे प्रार्थनाएं करने वाले | | जाएं, तो भी पता चलता है कि वे हैं। बुद्ध भिक्षा का पात्र लेकर भी मालूम पड़ते हैं कि भक्त हैं बड़े, धार्मिक हैं। यह आदमी धार्मिक गांव में निकल जाएं, तो भी पता चलता है कि वे हैं। है। इतना भरोसा! लेकिन इतने भरोसे के लिए बड़ा बलशाली बुद्ध एक गांव में गए। उस गांव के सम्राट ने अपने वजीर से 415/

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