Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 448
________________ Im गीता दर्शन भाग-1 कि जब से मैंने जाना, तब से गीत मेरे नहीं रहे। मैं तो सिर्फ बांसुरी | वाले। चारों तरफ हैं। लेकिन अहंकार से बड़ा परसुएडर और कोई हूं। मैं तो सिर्फ बांस की पोंगरी हूं, गीत परमात्मा के हैं। जो भी जान | | भी नहीं है। अहंकार बड़ी तरकीब से फुसलाता है। वह जो लेता है, वह बांस की पोंगरी रह जाता है। स्वर परमात्मा के, गीत कहलवाना चाहता है, जो वह खुद कहना चाहता है, वह दूसरे से परमात्मा का, हम केवल मार्ग रह जाते हैं। कहलवाता है। अगर आप किसी स्त्री से कहलवाना चाहते हैं कि __ कृष्ण कहते हैं अर्जुन से, तू बस मार्ग बन जा। मुझे मार्ग दे; जो | आप बड़े सुंदर हैं, तो आप खुद मत कह देना जाकर कि मैं बड़ा मुझे करना है, होने दे। मुझे से मतलब, परमात्मा को जो करना है, सुंदर हूं, नहीं तो मुश्किल में पड़ जाएंगे। नहीं, आप कहेंगे कि तुम वह होने दे। बड़ी सुंदर हो; तुमसे सुंदर कोई भी नहीं; और फिर प्रतीक्षा करना। __ और कृष्ण क्यों इतने आश्वस्त ढंग से अर्जुन से कह सके? | फिर वह स्त्री जरूर कहेगी कि आपसे सुंदर कोई भी नहीं है। अर्जुन को शक नहीं आता कि ये कृष्ण अपने को परमात्मा क्यों __ यह म्यूचुअल ग्रेटिफिकेशन है, यह एक-दूसरे के अहंकार की बनाए चले जा रहे हैं! अनेकों को शक आता है। जब भी कोई गीता तृप्ति है। आप उन्हें बड़ा बनाओ, वे आपको बड़ा बनाते हैं। एक पढ़ता है, तो अगर भक्त पढ़ता है, तब तो उसे कुछ पता नहीं | नेता दूसरे नेता को बड़ा बनाता है, दूसरा नेता दूसरे को। एक चलता; लेकिन अगर कोई विचार करके पढ़ता है, तो उसे खयाल महात्मा दूसरे महात्मा को, दूसरा महात्मा दूसरे को। एक-दूसरे को आता है कि कृष्ण क्यों ऐसा कहते हैं कि मैं, मुझ पर छोड़ दे। बड़े | बड़ा बनाते चले जाओ। इस तरह परोक्ष, इनडाइरेक्ट, अहंकार अहंकारी मालूम होते हैं। मुझे अनेक लोगों ने कहा कि कृष्ण का | अपने रास्ते खोजता है। अहंकार भारी मालूम पड़ता है। वे कहते हैं, मुझ पर सब छोड़ दे। कृष्ण अदभुत निरहंकारी व्यक्ति हैं। वे कहते हैं, छोड़ मुझ पर। एक तरफ अर्जुन से कहते हैं, अहंकार छोड़; और एक तरफ कहते वे इतनी सरलता से कहते हैं कि अहंकार का कहीं लेशमात्र मालूम हैं, मुझ पर सब छोड़! तो यह अहंकार नहीं है? | नहीं पड़ता। अहंकार कभी इतना सरल होता ही नहीं। अहंकार मैंने उनसे कहा कि कष्ण इतनी सरलता से कहते हैं कि मझ पर | हमेशा तिरछा चलता है। कृष्ण की इतनी सहजता...वे यह भी नहीं सब छोड़ कि अहंकार नहीं हो सकता। अहंकार कभी सीधा नहीं | कहते कि मैं भगवान हूं, इसलिए छोड़ मुझ पर। क्योंकि वह भी कहता कि मुझ पर सब छोड़। अहंकार सदा तरकीब से जीता है। | इनडाइरेक्ट हो जाएगा। वे अगर यह भी कहें कि मैं भगवान हूं, अहंकार कहता है कि मैं तो आपके पैर की धूल हूं। जरा आंख में छोड़ मुझ पर। ऐसा भी वे नहीं कहते। वे कहते हैं, छोड़ मुझ पर। देखें, तब पता चलेगा। इधर हाथ पैर में झुके होते हैं, उधर आंखें कोई कारण भी नहीं देते। कोई परोक्ष उपाय भी नहीं करते। सीधा आकाश में चढ़ी होती हैं। अहंकार कहता है, मैं तो कुछ भी नहीं। कहते हैं कि छोड़ मुझ पर। यह सरलता ही उनके निरहंकार होने की लेकिन अगर आपने मान लिया कि आप बिलकुल ठीक कह रहे | घोषणा है। इतना अत्यधिक सीधापन, स्ट्रेट फारवर्डनेस उनके हैं, बिलकुल सच कह रहे हैं कि कुछ भी नहीं, तो बड़ा दुखी होता निरहंकार होने का सबूत है। और जब वे कहते हैं, छोड़ मुझ पर, है। नहीं, जब अहंकार कहता है, मैं कुछ भी नहीं, तो वह सुनना तो हमारे सामने वे मौजूद नहीं हैं, इसलिए बड़ी कठिनाई होती है। चाहता है कि आप कहो कि आप भी कैसी बात कर रहे हैं! आप दुनिया में जो भी महत्वपूर्ण सत्य आज तक प्रकट हुए हैं, वे तो सब कुछ हैं। तब वह प्रसन्न होता है। लिखे नहीं गए, बोले गए हैं। इस बात को खयाल में रखना। दुनिया अहंकार कभी सीधा नहीं बोलता। उसका कारण है। अहंकार | का कोई पैगंबर, कोई तीर्थंकर लेखक नहीं था। और दुनिया का इसलिए सीधा नहीं बोलता कि सीधा अहंकार दूसरे के अहंकार को | कोई अवतार लेखक नहीं था। यह स्मरण रखना। चाहे बाइबिल, चोट पहुंचाता है। और दूसरे के अहंकार को चोट पहुंचाकर आप | और चाहे कुरान, और चाहे गीता, और चाहे बुद्ध और चाहे कभी अपने अहंकार की तृप्ति नहीं कर सकते। इसलिए जो कनिंग महावीर के वचन, और चाहे लाओत्से-ये सब वचन बोले गए अहंकार है, जो चालाक अहंकार है-और सब अहंकार चालाक हैं, ये लिखे नहीं गए हैं। और इनके मुकाबले लेखक कभी भी कुछ हैं—वे तरकीब से अपनी तृप्ति करते हैं। वे दूसरे के अहंकार को | नहीं पहुंच पाता, कहीं नहीं पहुंच पाता। उसका कारण है। बोले गए परसुएड करते हैं। शब्द में एक लिविंग क्वालिटी है। वान पेकाई ने एक किताब लिखी है, दि परसुएडर्स, फुसलाने जब अर्जुन से कृष्ण ने बोला होगा, तो सिर्फ शब्द नहीं था। हमारे 018

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