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गीता दर्शन भाग-1
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पूछा कि मेरी पत्नी कहती है कि बुद्ध के स्वागत के लिए मुझे भी . वही राजी हो सकता है, जो इतना निर्भार है कि अब कोई भार उसके जाना चाहिए। लेकिन क्या यह उचित है? मैं सम्राट, वह एक | | लिए भार नहीं बन सकता है। दूसरों को सहारा देने के लिए वही भिखारी, उसे आना होगा आ जाएगा। आजकल का कोई मंत्री कह सकता है, जिसे अब खुद किसी तरह के सहारे की कोई भी होता, तो वह कहता, धन्य महाराज! आप बिलकुल ठीक कहते हैं। | जरूरत नहीं रह गई है। कृष्ण बड़ी सबलता से कहते हैं। इतनी लेकिन उस मंत्री ने इतना सुना, कागज उठाया, कलम उठाया; तो | | सबलता से बहुत मुश्किल से कभी कहा गया है। और अब, अब सम्राट ने पूछा, क्या करते हो? उसने कहा, मेरा इस्तीफा स्वीकार | | इतने सबल आदमी खोजना बहुत मुश्किल होता चला जाता है, जो करें। उसने कहा, कोई बात नहीं हुई, इस्तीफा किस बात का? तो कहें कि छोड़, तू सब मुझ पर छोड़ दे। यह तभी वे कह पाते हैं, उसने कहा कि नहीं, ऐसी जगह एक क्षण रुकना कठिन है। क्योंकि | जब कि परमात्मा से तादात्म्य इतना गहरा है कि मुझ पर क्या छूटता जिस दिन सिर्फ अहंकार आत्मा के सामने अपने को श्रेष्ठ समझेगा, | | है, परमात्मा पर छूटता है। कृष्ण बीच में हैं ही नहीं। उस दिन से बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता है। आपको जाना पड़ेगा। अर्जुन भी तभी छोड़ सकता है, जब उसके सारे ज्वरों के बाहर क्योंकि बुद्ध भिक्षा का पात्र लिए हुए भी भिखारी नहीं हैं, सम्राट हो जाए। तब तक नहीं छोड़ सकता है, तब तक उसे एक-एक ज्वर हैं। और तुम सम्राट होते हुए भी भिखारी हो। तुम्हारे पास कुछ नहीं | | पकड़ेगा। वह एक-एक सवाल उठाएगा। उसकी हर बीमारी के है। तुम से अगर सब छीन लिया जाए, तो तुम ना-कुछ हो जाओगे। अपने सवाल हैं, अपनी जिज्ञासाएं हैं। और गीता अर्जुन की बुद्ध ने सब छोड़ दिया है, फिर भी वे सब कुछ हैं।
एक-एक बीमारी का उत्तर है। अनेक-अनेक मार्गों से वह कृष्ण से असल में जो सब कुछ है, वही सब कुछ छोड़ पाता है। जो कुछ | | वही-वही पूछेगा। वह कृष्ण से उत्तर नहीं चाह रहा है, वह कृष्ण से भी नहीं है, वह छोड़ेगा कैसे?
मार्ग नहीं चाह रहा है। क्योंकि मार्ग इससे सरल और क्या हो सकता अहंकार बहुत दीनता को छिपाए रहता है भीतर। वह हमेशा | | है कि कृष्ण कहते हैं, छोड़ मुझ पर। इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स का बचाव है। वह हीनग्रंथि का इंतजाम एक महिला मेरे पास आई, अभी कोई आठ-दस दिन पहले। है, सुरक्षा का, सेफ्टी मेजर है। तो अहंकारी निर्बल होता है। निर्बल | वह मुझे कहने लगी कि संतों के हाथ में तो सब कुछ है। आप सब अहंकारी होता है। सबल, आत्मबल से भरा हुआ, अहंकारी नहीं | | कुछ कर दें मेरे लिए। मैंने कहा, राजी। तू क्या करने का इरादा होता। और आत्मबल से भरा हुआ व्यक्ति ही समर्पण कर सकता | रखती है ? उसने कहा, हमसे क्या हो सकता है। मैंने उसको कहा, है। क्योंकि समर्पण शक्ति की सबसे बड़ी घोषणा है। यह बात बड़ी | राजी। तू अपने को छोड़ने की हिम्मत रखती है? छोटी उम्र नहीं; कंट्राडिक्टरी मालूम होगी। संकल्प समर्पण का सबसे बड़ा संकल्प सत्तर साल उम्र होगी। बढी स्त्री है। अब कछ छोडने को बचा भी है। इससे बड़ा कोई विल पावर नहीं है जगत में कि कोई आदमी | नहीं है, सिर्फ मौत है आगे। न, उसने कहा कि मैं घर अपने लड़के कह सके कि मैंने छोड़ा, सब छोड़ा।
से, बहू से पूछकर आपको कुछ कहूंगी। लेकिन बोली कि संत तो कृष्ण जब अर्जुन से कहते हैं, तू सब मुझ पर छोड़ दे। सब- सभी कर सकते हैं, आप कर ही दें। संत क्या नहीं कर सकते! छोड़ अपनी सब बीमारियों को, छोड़ आकांक्षाओं को, छोड़ बड़ा मजेदार है सब मामला। संत निश्चित ही सब कुछ कर ममताओं को, छोड़ आशाओं को, छोड़ अपेक्षाओं को-सब छोड़ सकते हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं के लिए, जो सब कुछ छोड़ने की दे, मुझ पर छोड़ दे। इसमें दो मजेदार बात हैं। अगर अर्जुन बहुत | हिम्मत रखते हैं। तत्काल हो जाता है सब कुछ। संत को कुछ करना
हो, तो छोड़ सकता है। लेकिन कृष्ण बहुत सबल आदमी नहीं पड़ता, संत तो सिर्फ वीहिकल बन जाता है, सिर्फ परमात्मा के हैं। छोड़ना भी सबल के लिए संभव है और किसी को इस भांति | | लिए साधन हो जाता है। छोड़ने के लिए कहना भी सबल के लिए संभव है। निर्बल के लिए कृष्ण कहते हैं, छोड़ मुझ पर। दुनिया बहुत बदल गई है। दुनिया संभव नहीं है।
बहुत बदल गई है। कृष्ण कहते हैं, छोड़ मुझ पर। अर्जुन छोड़ने की कृष्ण कितनी सहजता से कहते हैं, छोड़ सब मेरे ऊपर! दूसरे हिम्मत नहीं जुटा पाता। आज तो हालत और उलटी है। आज तो की बीमारियां लेने को केवल वही राजी हो सकता है, जिसे अब कोई कहेगा नहीं किसी से कि छोड़ मुझ पर। क्योंकि हम समझेंगे बीमार होने की कोई संभावना नहीं है। दूसरों के भार लेने को केवल कि पता नहीं बैंक बैलेंस छुड़ा लेगा, कि पता नहीं क्या मतलब है।
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