________________
m
गीता दर्शन भाग-1 AM
मैं का न रह जाना ही समर्पण है। और मैं कब नहीं रहेगा? जब ज्वर जिस दिन आप इन्हें बीमारी की तरह पहचानेंगे, उसी दिन छुटकारा नहीं रहेंगे।
शुरू हो जाएगा। दि वेरी रिकग्नीशन, इस बात की प्रत्यभिज्ञा कि ये इसे ऐसा भी समझ लें कि ज्वरों के जोड़ का नाम मैं है। तो अभी | बीमारियां हैं, आपको इनमें जाने से रोकने लगेगी। और जब क्रोध मैंने आपसे कहा कि मैं एक भ्रम है। लेकिन भ्रम भी काम करता है, | आएगा, तब आपको लगेगा कि बीमारी आती है। हाथ ढीले पड़ क्योंकि ये ज्वर बड़े सत्य हैं और भ्रम इन ज्वरों के रथ पर सवार हो जाएंगे, भीतर कोई चीज रुक जाएगी। लेकिन क्रोध बीमारी नहीं है, जाता है। ये ज्वर बड़े सत्य हैं। ये काम, क्रोध, लोभ बड़े सत्य हैं। हमारी अकड़ है। हम सोचते हैं, क्रोध नहीं रहेगा, तो रीढ़ ही टूट इनका शारीरिक अर्थ भी है, इनका मानसिक अर्थ भी है। ये | | जाएगी। हम सोचते हैं, क्रोध नहीं रहेगा, तो कौन हमारी फिक्र साइकोसोमेटिक हैं। ये शरीर और मन दोनों में इनका सत्य है। इनके | करेगा। हम सोचते हैं, क्रोध नहीं रहेगा, तो जीवन की गति और ऊपर अहंकार सवारी करता है। और इनको जब तक हम विसर्जित | जीवन का मोटिवेशन और जीवन की प्रेरणा सब चली जाएगी। हम न कर दें, तब तक अहंकार रथ के नीचे नहीं उतरता। इनको कैसे कहते हैं, लोभ नहीं रहेगा, तो फिर हम क्या करेंगे! हमें पता ही नहीं विसर्जित करें? ये ज्वर कैसे चले जाएं?
है कि हम क्या कह रहे हैं! __ पहली तो बात यह है, इन्हें हमने कभी ज्वर की तरह, बीमारी की लोभ की वजह से हम कुछ भी नहीं कर पाते। क्रोध की वजह से तरह देखा नहीं। और जिस चीज को हम बीमारी की तरह न देखें | हम कछ भी नहीं कर पाते। काम की वजह से हम कछ भी नहीं कर उसे हम कभी विसर्जित नहीं कर सकते। कोई आदमी टी.बी. नहीं | पाते। हमारी सारी शक्ति तो इन्हीं छिद्रों में बह जाती है। बहुत बचाना चाहता और कोई आदमी कैंसर नहीं बचाना चाहता। क्योंकि | दीन-हीन भीतर जो थोड़ी-बहुत शक्ति बचती है, उससे हम किसी उनको हम बीमारियों की तरह पहचानते हैं। लेकिन क्रोध, लोभ, | | तरह जिंदगी घसीट पाते हैं। हमारी जिंदगी आनंद नहीं बन सकती, मोह, काम, इन्हें हम बीमारियों की तरह नहीं पहचानते। इसलिए | | क्योंकि आनंद सदा ओवर फ्लोइंग एनर्जी है। आनंद सदा ही ऊपर हम इन्हें बचाना चाहते हैं। हम कहते हैं कि बिना क्रोध के चलेगा| | से बह गई शक्ति है, ओवर फ्लोइंग, जैसे नदी में बाढ़ आ जाए और कैसा? कोई आदमी नहीं कहता कि बिना टी.बी. के चलेगा कैसे? | | किनारे टूट जाएं और नदी चारों तरफ नाचती हुई बहने लगती है। नहीं, वह कहता है, टी.बी. हो गई, तो चलेगा ही नहीं। टी.बी. किसी पौधे में फूल तब तक नहीं आते, जब तक पौधे में जरूरत एकदम अलग करो। अभी हम शरीर की बीमारियां तो पहचानने से ज्यादा शक्ति न हो। अगर पौधे में जरूरत से ज्यादा शक्ति आती लगे हैं। लेकिन मन की बीमारियां हम अभी तक नहीं पहचान पाए। है, तो ओवरफ्लो हो जाते हैं उसके रंग, फल बन जाते हैं। कोई पक्षी
और ध्यान रहे, अगर कोई आपके शरीर की बीमारियों की तरफ | | तब तक गीत नहीं गाता, जब तक उसके पास जरूरत से ज्यादा इशारा करे, तो आप कभी नाराज नहीं होते; लेकिन अगर आपके शक्ति न हो। जब जरूरत से ज्यादा शक्ति होती है, तो पक्षी गीत मन की बीमारियों की तरफ कोई इशारा करे, तो आप लड़ने को | गाता है, मोर नाचता है। लेकिन आदमी की जिंदगी में सब नाच, तैयार हो जाते हैं। कोई आदमी कहे कि देखिए, आपके पैर में घाव | | सब आनंद, सब खो गया है। कारण? मोर हमसे ज्यादा होशियार हो गया है, तो आप उससे लड़ते नहीं कि तुमने हमारा अपमान हैं? कोयल हमसे ज्यादा बुद्धिमान हैं? फूल हमसे ज्यादा वैज्ञानिक कर दिया कि हमारे पैर में घाव बता दिया। आप धन्यवाद देते हैं हैं? नदियां हमसे ज्यादा प्रज्ञावान हैं ? कि तुम्हारी बड़ी कृपा कि तुमने याद दिला दी। लेकिन कोई आदमी | नहीं, एक ही बात की भूल हो रही है। हम अपने को जरूरत से कहे कि बड़े लोभी हो, तो लकड़ी लेकर खड़े हो जाते हैं कि आप ज्यादा बुद्धिमान समझे हुए हैं और अपनी बुद्धिमानी में न मालूम क्या कह रहे हैं! असल में मन की बीमारी को हम बीमारी स्वीकार | कितने प्रकार की मूढ़ताओं को पाल रखा है। बीमारियों को भी हम नहीं करते। मन की बीमारी को तो हम समझते हैं कि कोई बड़ी स्वास्थ्य समझे बैठे हैं। दुश्मनों को मित्र समझते हैं। कांटों को फूल धरोहर है, उसे बचाना है; उसे बचा-बचाकर रखना है, उसे समझ लेते हैं, फिर छाती से लगा लेते हैं। फिर वे गड़ते हैं, चभते सम्हाल-सम्हालकर रखना है।
हैं. घाव कर देते हैं। और इन सारे ज्वरों में हमारी इतनी शक्ति व्यर्थ कृष्ण कह रहे हैं, ये सब ज्वर हैं।
ही व्यय हो जाती है कि ओवरफ्लो करने के लिए, फूल बनने के इन्हें, पहली तो शर्त यह है कि बीमारी की तरह पहचानें। और | लिए कभी कोई शक्ति शेष नहीं बचती। इसलिए जिंदगी में आनंद,
414