Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 432
________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM लड़ाई नहीं है। लहर तट से टकराती, बिखरती, तट भी टूटता | पर पैर पड़ा, गिर गए। उनके हाथ में नहीं, कि हंसी बिखर गई। रहता। दोनों गुणधर्म चलते रहते हैं। कहीं कोई जीतता नहीं, कहीं और आप अब दुखी होकर चले जा रहे हैं। अब कल आप जरूर कोई हारता नहीं। आदमी, आदमियों की लहरें जब लड़ती हैं, तो | | उनके रास्ते पर छिलके बिछाएंगे। जरूर कल उनको गिराकर हंसना, हम लड़ते हैं, प्रकृति को भूलकर। चाहेंगे। अब आप जाल में पड़ते हैं, अब आप व्यर्थ के जाल में कृष्ण के हिसाब से धर्म और अधर्म की लड़ाई है। कृष्ण के | पड़ते हैं। वह जाल अहंकार स्पर्शित होने से हुआ है। हिसाब से प्रकृति के बीच ही उठी हुई दो लहरों का संघर्ष है। इसमें कृष्ण इतना ही कहते हैं कि ज्ञानी करता है कर्म, लेकिन कर्ता अर्जुन नाहक ही...। हां, अर्जुन लहर के ऊपर है, एक लहर के | नहीं बनता है। बस जो कर्ता नहीं बनता, वह जीवन के परम सत्य ऊपर है; इसलिए भ्रम में हो सकता है कि मैं लड़ रहा हूं। इस भ्रम को उपलब्ध हो जाता है। में हो सकता है कि मैं हारूंगा, मैं जीतंगा। इस भ्रम में हो सकता है शेष रात बात करेंगे। कि मैं मारूंगा, मिटूंगा। वह सिर्फ लहर के ऊपर है, जैसे समुद्र की लहर के ऊपर झाग होती है। झाग भी अकड़ उठे, अगर उसको होश आ जाए। लहर के ऊपर होती है। जैसे कि सम्राटों के सिर पर | राजमुकुट होते हैं, ऐसे ही लहर पर झाग होती है। अर्जुन भी झाग है एक लहर की, वह दुर्योधन भी झाग है एक लहर की। दोनों लहरें | टकराएंगी और प्रकृति निर्णय करती रहेगी कि क्या होना है। जिस दिन कोई व्यक्ति जीवन को अहंकार से मुक्त करके देख पाता. उसी दिन हार-जीत. सख-दख. सब खो जाते हैं। ज्ञानी तब कर्म करता और कर्ता नहीं बनता है। ज्ञानी तब सब कुछ होता और फिर भी भीतर से कुछ भी नहीं होता है। तब ज्ञानी जवान होता और जवान नहीं होता, भीतर वही रहता है, जो बचपन में था। और बूढ़ा होता और बूढ़ा नहीं होता है, भीतर वही रहता है, जो जवानी में था। और मरता है और नहीं मरता, भीतर वही रहता है, जो जीवन में था। तब ज्ञानी भीतर अस्पर्शित, अनटच्ड। लेकिन स्पर्शित हो जाते हैं हम अहंकार के कारण। अहंकार बहुत सेंसिटिव है; छुआ नहीं कि दुखा नहीं। छुओ और दुखा। बस, अहंकार ही सारा स्पर्श ले लेता है। रास्ते पर आप जा रहे हैं, कोई हंस देता है। और आपका अहंकार स्पर्श ले लेता है; दुखी होने लगे। बड़ी मुश्किल है। एक लहर हंसती है, उसे हंसने दें। और एक लहर को हक है कि दूसरी लहर को देखकर हंसे। आप क्यों परेशान हैं? नहीं, लेकिन आप परेशान न होते, अगर आपने जाना होता कि प्रकृति ऐसी है। आप गिर पड़े हैं। केले के छिलके पर पैर फिसल गया और चार लोग हंस दिए हैं। बिलकुल ठीक है; इसमें कहीं कोई गड़बड़ नहीं है। जैसे छिलके के ऊपर पैर पड़ता है, आप गिर जाते हैं, वैसे ही उनके ऊपर आपके गिरने की घटना पड़ती है और हंसी फूट जाती है। यह सब प्रकृति का गुणधर्म है। आपके हाथ में नहीं है, छिलके 402

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