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mm वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक पुनर्स्थापना HIM
ऐसा मान लेता है। दो बातें हैं।
खले, तो पूरी तस्वीर ऊपर दिखाई पड़े। अकेला होना मश्किल हो सच ही, सब कुछ किया हुआ है प्रकृति का। जिसे आप कहते गया, अपनी ही तस्वीर पीछा करे! आधी रात तक जद्दोजहद की, हैं, मैं करता हूं, वह भी प्रकृति का किया हुआ है। जिसे आप कहते | | लड़ाई की कि कोई तरह जीत जाऊं उस गद्दी से, जीत नहीं हो सकी। हैं, मैं चुनता हूं, वह भी प्रकृति का चुना हुआ है। आप कहते हैं कि | | फिर नीचे फर्श पर सो गया और नींद आ गई। सुबह मित्र आए। कोई चेहरा मुझे प्रीतिकर लगता है, चुनता हूं इस चेहरे को, विवाह | | मुझे फर्श पर देखा, तो दुखी हुए। और कहा कि कुछ अड़चन हुई करता हूं। लेकिन कभी आपने सोचा कि यह चेहरा आपको | | आपको? इंतजाम ठीक नहीं कर पाए ? मैंने कहा, ज्यादा कर दिया! प्रीतिकर क्यों लगता है? अंधा है चुनाव! क्या कारण हैं इसके | फर्श पर बड़ा सुख मिला। तालमेल पड़ गया। गद्दी आपकी जरा प्रीतिकर लगने का? यह आंख, यह नाक, यह चेहरा, प्रीतिकर क्यों | | ज्यादा गद्दी थी; अभ्यास नहीं था, तालमेल नहीं हो सका। लगता है ? बस, लगता है। कुछ और कह सकेंगे, क्यों लगता है ? | | जिसे हम सुख कहते हैं, वह भी तालमेल है। जिसे हम दुख शायद कहें कि आंख काली है। लेकिन काली आंख क्यों प्रीतिकर कहते हैं, वह भी तालमेल है या तालमेल का अभाव है। लेकिन मैं लगती है? यह आंख आपकी आंख में प्रीतिकर लगती है। यह | | सुखी होता हूं, मैं दुखी होता है, वह भ्रांति है। सिर्फ मेरे भीतर जो आपकी प्रकृति और इस आंख की प्रकृति के बीच हुआ तालमेल प्रकृति है और मेरे बाहर जो प्रकृति है, उसके बीच संबंध निर्मित है। इसमें आप कहां हैं?
होते हैं। जन्म भी एक संबंध है, मृत्यु भी एक संबंध है। लेकिन मैं आप कहते हैं, यह चीज मुझे बड़ी स्वादिष्ट लगती है। कभी | कहता हूं, मैं जन्मा; और मैं कहता हूं, मैं मरा। और जवानी भी एक आपने सोचा कि स्वादिष्ट लगती है, आपको? लेकिन बुखार चढ़ संबंध है, मेरे भीतर की प्रकृति और बाहर की प्रकृति के बीच। और जाता है, और फिर स्वादिष्ट नहीं लगती। सिर्फ आपकी जीभ पर | | बुढ़ापा भी एक संबंध है। लेकिन मैं कहता हूं, मैं जवान हुआ और प्रकृति के रसों का और भोजन के रसों का तालमेल है। आप नाहक | मैं बूढ़ा हुआ। हार भी एक संबंध है, मेरी प्रकृति के बीच और बाहर बीच में पड़ जाते हैं। आप नाहक हर जगह बीच में खड़े हो जाते हैं। | की प्रकृति के बीच। जीत भी एक संबंध है, मेरी प्रकृति के बीच और
आप कहते हैं, मुझे जीने की इच्छा है। लेकिन आपको जीने की | | बाहर की प्रकृति के बीच। लेकिन मैं हारता हूं, मैं जीतता हूंइच्छा है या आप ही जीने की इच्छा के एक अंग हैं? एक आदमी | अकारण, व्यर्थ। कहता है, मैं आत्महत्या कर रहा हूं। यह आदमी स्वयं आत्महत्या - कृष्ण कह रहे हैं, ज्ञानी पुरुष इस अहंकार, इस अज्ञान, इस भ्रम कर रहा है कि जीवन के सारे गुण उस जगह आ गए हैं, जहां से बच जाता है कि मैं कर्ता हूं, और देखता है, प्रकृति करती है। आत्महत्या घटित होती है? यदि हम कर्मों में गहरे उतरकर देखें, | और जैसे ही खयाल आता है कि प्रकृति करती है, कि सब सुख-दुख और अहंकार में भी, तो अहंकार एक भ्रांति है। जीवन कर रहा है, | खो जाते हैं। और जैसे ही खयाल आता है कि प्रकृति के गुणधर्मों सब कुछ जीवन कर रहा है। सुख-दुख, जो आपको सुखद लगता का फैलाव सब कुछ है, हम उसमें ही उठी हुई एक लहर से ज्यादा है, वह भी प्रकृति का गुणधर्म है। जो आपको दुखद लगता है, वह | नहीं, उसके ही एक अंश-वैसे ही जीवन से आसक्ति-विरक्ति भी प्रकृति का गुणधर्म है।
खो जाती है, और आदमी अनासक्त, वीतराग, ज्ञान को उपलब्ध मैं एक राजमहल में मेहमान था। पहली ही दफा राजमहल में हो जाता है। अर्जुन से वे कह रहे हैं कि तू लड़ रहा है, ऐसा मत मेहमान हुआ, तो बड़ी मुश्किल में पड़ गया, रातभर सो न सका। सोच, प्रकृति लड़ रही है। ऐसी मुश्किल मुझे कभी न आई थी। ऐसे सुख का कोई अभ्यास न ___ कौरवों की एक प्रकृति है, एक गुणधर्म है; पांडवों की एक था। सुख का भी अभ्यास चाहिए, अन्यथा दुख बन जाता है। | प्रकृति है, एक गुणधर्म है। तालमेल नहीं है। संघर्ष हो रहा है। जैसे क्योंकि तालमेल, कोई हार्मनी नहीं बन पाती। जिनका अतिथि था, सागर की लहर आती और तट से टकराती। लेकिन हम कभी ऐसा उनके पास जो श्रेष्ठतम. जो भी श्रेष्ठतम था. उन्होंने इंतजाम किया नहीं कहते कि सागर की लहर तट से लड़ रही है। लेकिन अगर था। गद्दी ऐसी थी कि मैं पूरा ही उसमें डूब जाऊं। करवट लूं, तो लहर को होश आ जाए और लहर चेतन हो जाए, तो लहर तैयारी मुसीबत; फिर नींद खुल जाए। एक तो नींद लगनी ही मुश्किल। करके आएगी कि लड़ना है तट से। और तट तैयारी रखेगा कि ऊपर मसहरी पर पूरा आईना था। अंदर ही पंखे थे। जरा आंख | लड़ना है लहर से। अभी दोनों को कोई होश नहीं है, इसलिए कोई
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