Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 436
________________ ymगीता दर्शन भाग-1 कभी-कभी हजारों-लाखों वर्षों में बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा होता है। | है, उसे होने दे और तू उस होने के बाहर अनासक्त खड़ा हो जा। उसको जो मां पहली दफे भोजन देती है, वह भी धन्यभागी है। और | यदि तू अनासक्त खड़ा हो सकता है, तो फिर युद्ध ही शांति है। जो आदमी उसे अंतिम भोजन देता है, वह भी कम धन्यभागी नहीं | | और अगर तू अनासक्त खड़ा नहीं हो सकता, तो शांति भी युद्ध बन है। इस आदमी ने मुझे अंतिम भोजन दिया, यह बहुत धन्यभागी है। जाती है। और भिक्षु तो चले गए; आनंद रुका रहा। आनंद ने बुद्ध से कहा कि मेरा मन नहीं होता; आप यह क्या कह रहे हैं! बुद्ध ने कहा, आनंद तू समझता नहीं। जहर ने अपना काम किया, उस आदमी ने | | प्रश्नः भगवान श्री, अहंकाररूपी भ्रम से आसक्ति अपना काम किया। मैं बुद्ध हूं, मुझे मेरे गुणधर्म के अनुसार काम | पैदा होती है, तो कृपया अहंकार की उत्पत्ति को करने दो, अन्यथा लोग क्या कहेंगे। और अगर मैं यह कहकर न | अधिक स्पष्ट करें। जाऊं और मर जाऊं, तो मुझे खयाल है कि तुम मिलकर कहीं उसकी हत्या न कर दो! कहीं उसके घर में आग न लगा दो। अगर तुमने यह भी न किया, तो वह जन्मों-जन्मों के लिए नाहक श हंकाररूपी भ्रम से आसक्ति उत्पन्न होती है, अहंकार अपमानित और निंदित तो हो ही जाएगा। 21 कैसे उत्पन्न होता है? दो-तीन बातें समझ लेनी एक और छोटी बात कहूं। उमास्वाति ने उल्लेख किया है एक ___ उपयोगी हैं। पहली बात तो अहंकार कभी उत्पन्न नहीं फकीर का, एक साधु का कि वह पानी में उतरा। एक बिच्छू पानी | | होता, सिर्फ प्रतीत होता है। उत्पन्न कभी नहीं होता, सिर्फ प्रतीत में डूब रहा है। उसने उसे हाथ में ले लिया। लेकिन बिच्छू जोर से | | होता है। जैसे रस्सी पड़ी हो और सांप प्रतीत हो। उत्पन्न कभी नहीं डंक मारता है। हाथ कंप जाता है, बिच्छू गिर जाता है। वह फिर । | होता, सिर्फ प्रतीत होता है। लगता है कि है, होता नहीं। अहंकार बिच्छू को उठाता है। किनारे खड़ा एक आदमी कहता है कि तुम | | भी लगता है कि है, है नहीं। पागल तो नहीं हो! वह बिच्छ्, जो तुम्हें काट रहा है और जहर से | जैसे हम लकड़ी को पानी में डालें और लकड़ी तिरछी दिखाई भरे दे रहा है, तुम उसे बचाने की कोशिश क्यों कर रहे हो? पड़ती है—होती नहीं, जस्ट एपियर्स-बस प्रतीत होती है। बाहर वह फकीर कहता है कि बिच्छू अपना गुणधर्म निभा रहा है, मैं | | निकालें, सीधी पाते हैं। फिर पानी में डालें, फिर तिरछी दिखाई अपना गुणधर्म न निभाऊं, तो परमात्मा के सामने बिच्छू जीत पड़ती है। और हजार दफे देख लें और पानी में डालें, अब आपको जाएगा और मैं हार जाऊंगा। मैं साधु हूं, बचाना मेरा गुणधर्म है।। | भलीभांति पता है कि लकड़ी तिरछी नहीं है, फिर भी लकड़ी तिरछी वह बिच्छू है, काटना उसका गुणधर्म है। वह अपना काम पूरा कर | | दिखाई पड़ती है। ठीक ऐसे ही अहंकार दिखाई पड़ता है, पैदा नहीं रहा है, तुम मुझे मेरा काम पूरा क्यों नहीं करने देते हो! होता। इस बात को तो पहले खयाल में ले लें। क्योंकि अगर कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से, जो व्यक्ति, जीवन गुणों के अनुसार | अहंकार पैदा हो जाए, तब उससे छुटकारा बहुत मुश्किल है। अगर वर्तित हो रहा है और कर्म भी महाप्रकृति की विराट लीला के हिस्से | दिखाई ही पड़ता हो, तो समझ से ही उससे छुटकारा हो सकता है। हैं, ऐसा जान लेता है, वह कर्म में अनासक्त हो जाता है। ऐसे | फिर चाहे वह दिखाई ही पड़ता रहे, तो भी छुटकारा हो जाता है। व्यक्ति को दुख नहीं व्यापता; ऐसे व्यक्ति को सुख नहीं व्यापता। | अहंकार कैसे दिखाई पड़ता है, अहंकार के दिखाई पड़ने का जन्म ऐसे व्यक्ति को सफलता-असफलता समान हो जाती है। ऐसे | कैसे होता है, यह मैं जरूर कहना चाहूंगा। व्यक्ति को यश-अपयश एक ही अर्थ रखते हैं। ऐसे व्यक्ति को पहली बात। एक बच्चा पैदा होता है। हम उसे एक नाम देते जीवन-मृत्यु में भी कोई फर्क नहीं रह जाता है। और ऐसी चित्तदशा | हैं-अ, ब, स। कोई बच्चा नाम लेकर पैदा नहीं होता। किसी में ही परमात्मा का, सत्य का, आनंद का अवतरण है। बच्चे का कोई नाम नहीं होता। सब बच्चे अनाम, नेमलेस पैदा होते इसलिए वे कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, तू भाग मत। तू इस भांति | | हैं। लेकिन बिना नाम के काम चलना मुश्किल है। अगर आप बर्त, समझ कि जो हो रहा है, हो रहा है। तू उसके बीच में अपने | | सबके नाम छीन लिए जाएं, तो बड़ी कठिनाई पैदा हो जाएगी। और को भारी मत बना, अपने को बीच में बोझिल मत बना। जो हो रहा | मजा यह है कि नाम बिलकुल झठा है। फिर भी उस झूठ से काम 406

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