Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 435
________________ ST- अहंकार का भ्रम - हो? वह आदमी तुम्हें लकड़ी मारकर गया और तुम उसकी लकड़ी | समझ लेता है, वह आदमी अनासक्त हो जाता है। लौटाने की चिंता कर रहे हो! रिझाई ने कहा, एक दिन मैं एक वृक्ष | बद्ध एक गांव में ठहरे हैं अंतिम दिन. जहां उनकी बाद में के नीचे लेटा हुआ था। वृक्ष से एक शाखा मेरे ऊपर गिर पड़ी। तब मृत्यु हुई—एक गरीब आदमी ने उन्हें भोजन पर बुलाया। बिहार के मैंने वृक्ष को कुछ भी नहीं कहा। आज इस आदमी के हाथ से | | गरीब सब्जी तो नहीं जुटा पाते थे। अब भी नहीं जुटा पाते हैं। तो लकड़ी मेरे ऊपर गिर पड़ी है, मैं इस आदमी को क्यों कुछ कहूं! | कुकुरमुत्ता बरसात में पैदा हो जाता है-वृक्षों पर, पत्थरों पर, नहीं समझा वह दुकानदार। उसने कहा, पागल हो! वृक्ष से शाखा | जमीन में-छतरी, उसको ही काटकर रख लेते हैं। फिर उसे सुखा का गिरना और बात है। इस आदमी से लकड़ी तुम्हारे ऊपर गिरना लेते हैं। फिर उसी की सब्जी बना लेते हैं। गरीब था आदमी। उसके वही बात नहीं है। घर में कोई सब्जी न थी। लेकिन बुद्ध को निमंत्रण कर आया, तो रिझाई कहने लगा, एक बार मैं नाव खे रहा था। एक खाली नाव | कुकुरमुत्ते की सब्जी बनाई। कुकुरमुत्ता कभी-कभी विषाक्त हो आकर मेरी नाव से टकरा गई। मैंने कुछ भी न कहा। और एक बार | जाता है, पायजनस हो जाता है। कहीं भी उगता है; अक्सर गंदी ऐसा हुआ कि मैं किसी और के साथ नाव में बैठा था। और एक जगहों में उगता है। नाव, जिसमें कोई आदमी सवार था और चलाता था, आकर टकरा | वह सूखा कुकुरमुत्ता विषाक्त था। बुद्ध ने चखा, तो वह कड़वा गई। तो वह जो नाव चला रहा था मेरी, वह गालियां बकने लगा। | था। लेकिन वह गरीब पंखा झल रहा था, और उसकी आंखों से मैंने उससे कहा, अगर नाव खाली होती, तब तुम गाली बकते या | आनंद के आंसू बह रहे थे। तो बुद्ध ने कुछ कहा न, वे खाते चले न बकते? तो उस आदमी ने कहा, खाली नाव को क्यों गाली गए। वह कड़वा जहर था। लौटे तो बेहोश हो गए। चिकित्सकों ने बकता! रिझाई ने कहा, गौर से देखो; नाव भी एक हिस्सा है इस कहा कि बचना मुश्किल है। खून में जहर फैल गया है। उस आदमी विराट की लीला का। वह आदमी जो बैठा है, वह भी एक हिस्सा | ने बेचारे ने कहा कि आपने कहा क्यों नहीं कि कड़वा है! है। नाव को माफ कर देते हो, आदमी पर इतने कठोर क्यों हो? - बुद्ध ने कहा, देखा मैंने तुम्हारे आंखों के आंसुओं को, उनके द वह दकानदार फिर भी नहीं समझा होगा। हममें से कोई आनंद को देखा मैंने ककरमत्ते के कडवेपन को। देखा मैंने मेरे खन भी नहीं समझ पाता है। में फैलते हुए जहर को। देखा मैंने मेरी आती हुई मौत को। फिर मैंने एक आदमी क्रोध से भर जाता है और किसी को लकड़ी मार कहा, मौत तो रोकी नहीं जा सकती, आज नहीं कल आ ही जाएगी। देता है। इस मारने में प्रकृति के गुण ही काम कर रहे हैं। एक आदमी कुकुरमुत्ता कड़वा है, इसमें नाराजगी क्या! जहर मिल गया होगा। शराब पीए होता है और आपको गाली दे देता है; तब आप बुरा | तुम इतने आनंदित हो कि जो मृत्यु आने ही वाली है, जो रोकी न नहीं मानते; अदालत भी माफ कर सकती है उसे, क्योंकि वह शराब जा सकेगी, आज-कल आ ही जाएगी, उस छोटी-सी घटना के पीए था। लेकिन अगर एक आदमी शराब पीए, तो हम माफ कर लिए तुम्हारी खुशी को छीनने वाला क्यों मैं बनूं? कहूं कि कड़वा देते हैं; और एक आदमी के शरीर में क्रोध के समय ऐड्रीनल नामक है, तो तुम्हारी खुशी कड़वी हो जाए। और सब चीजें अपने गुण से ग्रंथि से विष छूट जाता है, तब हम उसे माफ नहीं करते। हो रही हैं : जहर कड़वा है; भोजन कराने वाला आनंदित है; भोजन ___ जब एक आदमी क्रोध में होता है, तो होता क्या है ? उसके खून | | करने वाला भी आनंदित है। बुद्ध ने कहा, मैं पूरा आनंदित हूं। जहर में विष छूट जाता है। उसके भीतर की ग्रंथियों से रस-स्राव हो जाता | मुझे नहीं मार पाएगा। जहर जिसे मार सकता है, उसे मार लेगा। है। वह आदमी उसी हालत में आ जाता है, जैसा शराबी आता है। | जहर का जो गुण है, वह शरीर के जो गुण हैं, उन पर काम कर फर्क इतना ही है, शराबी ऊपर से शराब लेता है, इस आदमी को | जाएगा। मैं देखने वाला हूं, मैं मरने वाला नहीं हूं। भीतर से शराब आ जाती है। अब जिस आदमी के खून में जहर छूट __ लेकिन बुद्ध की मृत्यु हो गई। मृत्यु के पहले बुद्ध ने अपने गया है, अगर वह घूसा बांधकर मारने को टूट पड़ता है, तो इसमें | | भिक्षुओं को बुलाकर कहा कि जाओ गांव में डुंडी पीट दो, सारे इस आदमी पर नाराज होने की बात क्या है! यह इस आदमी के गांव में खबर कर दो कि जिस आदमी ने बुद्ध को अंतिम भोजन भीतर जो घटित प्रकृति का गुण, उसका परिणाम है। दिया, वह परम पण्यशाली है। भिक्षओं ने कहा. आप क्या कहते कृष्ण यह कह रहे हैं कि जो आदमी जीवन के इस रहस्य को हैं! वह आदमी हत्यारा है। बुद्ध ने कहा, तुम्हें पता नहीं है; 405

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