Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 440
________________ yam+ गीता दर्शन भाग-1 AM इससे आपके भीतर क्या होता है? उन्होंने कहा, होता है। आप | | पसीना आ गया। घबड़ा गए और कहने लगे, मैंने यह क्या किया? सौंदर्य को नहीं मानते? यह हुआ क्या? मैंने कहा, ठीक ऐसे ही स्त्री और पुरुष सुंदर मालूम तो मैंने उन्हें सम्मोहित करके बेहोश किया। जब वे बेहोश हो || हो रहे हैं। ठीक ऐसे ही। वह प्रकृति के द्वारा डाला गया मोह है, वह गए, तो पास में पड़े हुए तकिए को मैंने उनके पास रखा और मैंने | | प्रकृति के द्वारा डाली गई हिप्नोसिस है। वह हमारे अचेतन में कहा, यह तकिया इतना संदर है, जितनी कोई स्त्री आपने कभी नहीं जन्मों-जन्मों से डाला गया, बांधा गया वासना का बीज है। वह देखी है। इसे पास में लो, आलिंगन करो, चूमो, प्यार करो। उन्होंने | | काम कर रहा है। वह काम करता है, फिर वह जुड़ जाता है। वह तकिए को पास में लिया, खूब प्रेम किया। फिर मैंने उनसे कहा कि | | चीजों से भी जुड़ जाता है। जब तुम होश में आ जाओगे, आधा घंटे बाद, फिर तुममें प्रेम की | | कृष्ण कह रहे हैं, प्रकृति के गुणों से मोहित हुआ पुरुष...। लहर आएगी और इस तकिए को तुम फिर छाती से लगाओगे।। वही दुख है, वही पीड़ा है सब की। हम किन-किन चीजों से पोस्ट-हिप्नोटिक सजेशन! आधा घंटे बाद होश में आने के बाद, | | मोहित होते हैं, जरा खयाल करना, तो बड़ी हैरानी होगी। अगर आधा घंटे बाद तुम विवश हो जाओगे, तुम्हारे बस में न रहेगा, बस | | चित्र देखें, फिल्म देखें, पेंटिंग्स देखें, कविताएं उठाएं, नाटक पढ़ें, तुम उठाओगे तकिए को, छाती से लगाओगे और चूमोगे। | उपन्यास देखें; अगर सारी मनुष्य जाति का पूरा का पूरा साहित्य, फिर वे होश में आ गए। फिर हम सब बैठकर गपशप करने | जिसको हम बड़ा भारी साहित्य कहते हैं, उसे उठाकर देखें, तो बड़ी लगे। फिर सब ठीक बात हो गई। घड़ी मैं देख रहा हूं। तकिया हैरानी होगी। कुछ चीजों से आब्सेशन आदमी को पैदा हो गया है, उनके पास में पड़ा है। उसे उठाकर मैंने आलमारी में बंद कर दिया। | पागल की तरह। और किसी को खयाल में नहीं है कि क्या हो गया उनकी आंखें देख रहा हूं। पच्चीस मिनट, तीस मिनट और बेचैनी है। और कभी खयाल में नहीं आता कि प्रकृति के गुण इस भांति उनकी शुरू हुई। जो लोग भी बैठे थे, वे भी देख रहे हैं कि अब वे | मोहित कर सकते हैं! बेचैन हो गए हैं। वे बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। अब वे ठीक उसी | ___ अब स्त्रियों के स्तन सारी मनुष्य जाति को पीड़ित किए हुए हैं। हालत में हैं, जैसी हालत में कामुकता से भरा हुआ आदमी हो जाता | | सारे चित्र, सारी तस्वीरें, कविताएं, साहित्य, उन्हीं से भरा हुआ है। है। लेकिन तकिए के प्रति कोई कामुकता होती है? उठे। सब कवि, सब चित्रकार पागल मालूम पड़ते हैं। स्त्री के स्तन में मैंने कहा, कहां जा रहे हैं? उन्होंने कहा कि जरा वह तकिया मुझे | क्या है? लेकिन छोटे बच्चे की पहली पहचान स्तन से होती है। देखना है, क्योंकि मुझे वह बहुत पसंद पड़ा, उसी तरह का तकिया | पहला प्रेम और पहला ज्ञान स्तन से जुड़ता है। पहला एसोसिएशन, मैं भी बाजार से खरीदना चाहता हूं। अब वे रेशनलाइज कर रहे हैं। | उसके दिमाग में पहला इंप्रेशन स्तन का बनता है। फिर वह उनको भी पता नहीं है। अब वे तर्क दे रहे हैं। मैंने कहा, छोड़ो भी, जिंदगीभर पीछा करता है। वह सम्मोहित हो गया। अब वह बूढ़ा मैं तुम्हें यहीं बताए देता हूं कि तकिया कहां से लिया गया है। वहां | हो गया, अभी भी वह स्तन से सम्मोहित है। से तुम तकिया ले लेना। उन्होंने कहा कि नहीं, जरा मैं देखना ही | ___ यह बचपन में पड़ी पहली छाप है। इसको बायोलाजिस्ट कहते चाहता हूं। उनकी चाल देखने जैसी थी; जैसे भौंरा फूल के पास | हैं, यह ट्रॉमेटिक इंप्रेशन है। वे कहते हैं, चूंकि बच्चे के चित्त पर जाता है, बस वैसे ही वे आलमारी खोलकर। लेकिन सब हम बैठे | सबसे पहली छाप मां के स्तन की पडती है. इसलिए बढापे के मरते हैं। तकिए को उठाकर देखते हैं उसे, उनकी आंखें, उनके हाथ। वह दम तक स्तन पीछा करता है। और कुछ भी नहीं। बस, सम्मोहित तकिया बड़ा जीवित हो गया है, क्योंकि अनकांशस में सम्मोहित | हो गया आदमी; फिर बड़े से बड़ा कालिदास हो, कि भवभूति हो, कर रहा है। तकिया उन्हें खींच रहा है, क्योंकि तकिया सुंदर है, यह | | कि पिकासो हो, कि कोई भी हो, बड़े से बड़ा चित्रकार, बड़े से बड़ा भाव गहरे अचेतन में उनके प्रवेश कर गया है। | कवि, बस वह उसी में उलझा हुआ है। आश्चर्यजनक है। एक क्षण उन्होंने हमारी तरफ देखा, फिर जैसे बेहोश आदमी, । लेकिन कृष्ण कहते हैं, प्रकृति के गुण को न समझने से और फिर वे हमारी फिक्र भूल गए, फिर उन्होंने तकिए को छाती से | | उनसे सम्मोहित हो जाने से, हिप्नोटाइज्ड हो जाने से आदमी अज्ञान लगाकर चूमना शुरू कर दिया। हमने कहा भी कि यह क्या में, मोह में, आसक्ति में, दुख में पड़ता है। और पागलपन कर रहे हो! पर वे पागलपन कर चुके थे। फिर बैठ गए। हुआ जगत है। ये सभी इसी तरह...मनोवैज्ञानिक फेटिश शब्द का 4101

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