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9- समर्पित जीवन का विज्ञान -AM
चाहते। इसलिए कृष्ण ऐसे आदमी को कहते हैं, वह चोर है। बंद हो जाए, तो सिर्फ डबरा बन जाएगा, गंगा नहीं होगी। उस डबरे
कृष्ण ने यह बात जो कही कि वह आदमी चोर है, जो परमात्मा | में गंदगी होगी, बास उठेगी, उसके पास रहना मुश्किल हो जाएगा। से, जीवन से, जगत से जो भी मिल रहा है, उसे रोक लेता है। अपने | गंगा आए और जाए, आती रहे और जाती रहे। रुके न, ठहरे न। तईं, निजी अहंकार के आस-पास, इर्द-गिर्द इकट्ठा कर लेता है, | ऐसे ही जिस दिन कोई व्यक्ति अपने पूरे जीवन को परमात्मा को वह चोर है। धो ने तो बहुत बाद में कहा कि लोग चोर हैं। मार्क्स | समर्पित करके जीता है, उसके जीवन में आनंद की गंगा आती रहती ने तो बहुत बाद में कहा कि लोग चोर हैं। कृष्ण ने सबसे पहले कहा है और बढ़ती रहती है, आती रहती है और बढ़ती रहती है। उसकी कि लोग चोर हैं। अगर वे शेयर नहीं करते, अगर वे बांटते नहीं, | | जिंदगी एक बहाव, एक सरिता की भांति है, जीवित; रुके हुए अगर वे आनंद में दूसरे को साझीदार नहीं बनाते, तो वे चोर हैं। | सरोवर की भांति नहीं, घेरों में बंद नहीं, बहती हुई।
लेकिन कृष्ण जब लोगों को चोर कहते हैं, तो बहुत और मतलब | | और कभी आपने खयाल किया कि जब गंगा आती है, कहां से है। और जब मार्क्स और धो लोगों को चोर कहते हैं, तो मतलब लाती है यह गंगा पानी? और कहां ले जाती है? कभी आपने इस और है।
और प्रधो लोगों को कहते हैं कि लोग चोर हैं. वर्तल का खयाल किया. इस सर्कल का खयाल किया कि गंगा तो उनका मतलब यह है कि उनकी गरदन दबा दो; छीन लो, जो जहां से लाती है, वहीं लौटा देती है! सागर की तरफ भागी चली उनके पास है; बांट दो, जो उनके पास है। लेकिन कृष्ण जब कहते | जा रही है। सागर में गिरेगी, सूरज की किरणों पर चढ़ेगी, बादलों हैं कि चोर हो तुम, तो वे यह नहीं कहते कि कोई तुम्हारी गरदन दबा | | में उठेगी, हिमालय पर बरसेगी, फिर भागेगी। फिर सागर, फिर दे और छीन ले। वे यह कहते हैं कि तुम ही जानो कि तुम अपने ही | सूरज की किरणों पर चढ़ना, फिर बादल, फिर पहाड़, फिर मैदान, दुश्मन हो। तुम्हें और बहुत मिल सकता था, लेकिन तुम रोककर | फिर सागर। एक वर्तुल है, एक सर्कल है। बैठ गए हो और उसे बड़े मिलने से वंचित रह गए हो। इसे तम बांट जीवन की सभी गतियां सरक्यलर हैं। आनंद की भी वैसी ही दो, ताकि तुम्हें और बड़ा मिलता चला जाए। तम जितना बांट गति है। परमात्मा से ही आता है. परमात्मा में ही जाता है। आप में
ने के निरंतर अधिकारी और हकदार होते आए. तत्काल उसे आस-पास जो भी परमात्मा का रूप फैला है. चले जाओगे।
उसे बांट दें, ताकि वह सागर तक फिर पहंच जाए। फिर बादलों में और अगर कृष्ण कहते हैं कि ऐसा आदमी गलत कर रहा है, तो उठे, फिर आप में गिरे। अगर आपने कहा कि नहीं, पता नहीं, फिर उनका मतलब यही है कि वह दूसरों के लिए तो गलत कर रहा है, आया कि नहीं आया। रोक लें। बस, उस रोकने से आदमी चोर हो वह ठीक ही है, लेकिन वह गौण है, वह अपने लिए ही गलत कर जाता है। रहा है। वह आदमी आत्मघाती है। उसको एक किरण मिली थी, सब तरह के आनंद में जब भी रोकने का खयाल पैदा होता है,
और उसने दरवाजा बंद कर लिया कि कहीं वह निकल न जाए। तभी थेफ्ट, चोरी पैदा हो जाती है। और यह चोरी परमात्मा के एक किरण उतरी आपके घर में, आपने जल्दी से दरवाजा बंद कर खिलाफ है। जहां से आया है, वहां जाने दें। आप से गुजरा, यही लिया कि कहीं वह किरण निकलकर पड़ोसी के घर में न चली क्या कम है! आप से गुजरता रहेगा, यही क्या कम है! और सतत जाए। लेकिन आपको पता नहीं कि जब आप दरवाजा बंद कर रहे गुजरता रहे, यही जीवन की धन्यता है। हैं, तभी वह किरण मर गई! और जिस दरवाजे से वह आई थी, | उसको ही आपने बंद कर दिया। अब आने का भी द्वार बंद हो गया। और किरणें बचती नहीं, आती रहें, तो ही बचती हैं।
प्रश्नः भगवान श्री, तेरहवें श्लोक के पहले हिस्से में यह बात भी खयाल में ले लें कि आनंद कोई ऐसी चीज नहीं है। कहा गया है, यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाला कि मिल गया, और मिल गया। आनंद ऐसी चीज है कि आता ही | | श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाता है। कृपया यज्ञ रहे, तो ही रहता है। आनंद एक बहाव है, प्रवाह है, एक धारा है। से बचे हुए अन्न का अर्थ स्पष्ट करें। ऐसा नहीं कि गंगा आ गई, और आ गई। आती ही रहे रोज, तो ही। अगर एक दिन आए और फिर बस आ गई; और दूसरे दिन से धारा
सकोगे।
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