Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 422
________________ Om गीता दर्शन भाग-1 AM हमने करीब-करीब उनको जराजीर्ण कर दिया। अब एक दूसरा | इकतारा रस दे सकता है अगर और वाद्यों के साथ बजता हो। जैविक भेद है स्त्री-पुरुष का, उसको भी तोड़ने की कोशिश की जा | अकेले ही बजता रहे, तो घबड़ाहट हो जाती है। रही है। मैंने एक घटना सुनी है, कि एक सज्जन वीणा बजाते हैं। लेकिन तो एक बहुत मजेदार घटना घट रही है। वह घटना यह घट रही | | बस वे एक तार को और एक ही जगह दबाए चले जाते हैं। महीनों है कि लडकियां यरोप और अमेरिका में लड़कों के कपड़े पहन रही हो गए। उनकी पत्नी, उनके बच्चे बहत घबड़ा गए हैं। और एक हैं और लड़के लड़कियों जैसे बाल बढ़ा रहे हैं। दोनों करीब आ रहे दिन उनके पड़ोसियों ने भी सबने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि आप हैं। बायोलाजिकल भेद तोड़ने की कोशिश चल रही है। लेकिन | क्या कर रहे हैं। हमने औरों को भी बजाते देखा है, लेकिन हाथ इससे क्या होगा? इससे क्या भेद टूट जाएगा? इससे भेद नहीं | | चलता है, अलग तार छुए जाते हैं, अलग दबाव दिया जाता है। टूटेगा; सिर्फ लड़कियां कम लड़कियां हो जाएंगी, और लड़के कम यह क्या पागलपन है कि एक ही जगह उंगली को दबाए हैं आप! लड़के हो जाएंगे; और दोनों के बीच जो फासले से, भेद से, जो और अब महीनों हो गए, वहीं दबाए चले जा रहे हैं! हम घबड़ा गए रस पैदा होता था, वह क्षीण हो जाएगा। इसलिए आज यूरोप और | हैं। उन सज्जन ने कहा कि तुम्हें पता नहीं, दूसरे लोग ठीक स्थान अमेरिका में लड़के और लड़की के बीच से रोमांस विदा हो गया खोज रहे हैं; मुझे मिल गया है! वे वहीं अपना सब...। इसलिए है, रोमांस नहीं है। हो नहीं सकता। वह भेद पर निर्भर है। कितना वे लोग इधर-उधर हाथ फैलाते हैं। मुझे कोई जरूरत न रही। मैं भेद है, उतना रस है। जितना भेद टटा, उतना रस टट जाता है। मंजिल पर आ गया है। अब मैं उसी को बजाता रहेगा। . हम सब तरह के भेद तोड़ने को पागल लोग हैं। भेद रहने ही लेकिन यह आदमी तो पागल है, पड़ोस के लोगों को भी पागल चाहिए। उसका मतलब लेकिन यह नहीं कि स्त्री छोटी है और पुरुष | कर देगा। बड़ा है। वह गलत बात है। भेद के आधार पर ऊंचाई-नीचाई तय जीवन एक संगीत है, लेकिन संगीत अर्थात एक आर्केस्ट्रा। करना गलत बात है। सब भेद हॉरिजांटल हैं। कोई भेद वर्टिकल | उसमें बहुत विभिन्न स्वर चाहिए। उसमें क्षत्रिय की चमक भी नहीं है। न तो पुरुष ऊंचा है और न तो स्त्री ऊंची है। लेकिन इसका | चाहिए; उसमें शूद्र की सेवा भी चाहिए। उसमें ब्राह्मण का तेज भी यह मतलब नहीं है कि पुरुष और स्त्री एक हैं। पुरुष अलग है, स्त्री चाहिए; उसमें वैश्य की खोज भी चाहिए। उसमें सब चाहिए। और अलग है। ऊंचा-नीचा कोई भी नहीं है। लेकिन भेद स्पष्ट है और | इनमें ऊपर-नीचे कोई भी नहीं है। और यह सत्य आज भी असत्य भेद स्पष्ट रहना चाहिए। नहीं हो गया और कल भी असत्य नहीं हो जाने वाला है। __ और स्त्री को पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वह कितनी स्त्रैण दूसरी बात पूछी है कि मैंने कहा कि जीवन का एक क्रम है और हो सके, और पुरुष को पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वह कितना | संन्यास उसमें अंतिम अवस्था है...। पुरुष हो सके। और स्त्री जितनी ज्यादा स्त्री, पुरुष जितना ज्यादा लेकिन यह क्रम टूट गया। और अभी तो ब्रह्मचर्य भी अंतिम पुरुष, उन दोनों के बीच के जीवन का रस उतना ही गहरा होगा, | | अवस्था नहीं है। ब्रह्मचर्य पहली अवस्था थी उस क्रम में, यह क्रम आकर्षण उतना ही गहरा होगा। उन दोनों के बीच प्रेम के प्रवाह की टूट गया। अब तो ब्रह्मचर्य अंतिम अवस्था भी नहीं है! पहले की धारा उतनी ही तीव्र होगी। जितना कम पुरुष और जितनी कम स्त्री, | | तो बात ही छोड़ दें। मरते क्षण तक आदमी ब्रह्मचर्य की अवस्था में तो स्त्री नंबर दो का पुरुष हो जाती है और पुरुष नंबर दो की स्त्री हो | नहीं पहुंचता। तो अब तो संन्यास तो कब्र के आगे ही कहीं कोई जाता है। और वे दोनों करीब तो बहत आ जाते हैं, लेकिन उनके अवस्था हो सकती है। और जब बढे ब्रह्मचर्य को उपलब्ध न होते बीच की पोलैरिटी टूट जाती है, और उनके बीच का रस टूट जाता | हों, तो मैं कहता हूं, बच्चों को भी हिम्मत करके संन्यासी होना है। आज पहली दफे पश्चिम में स्त्री और पुरुष के बीच का जो चाहिए, जस्ट टु बैलेंस, संतुलन बनाए रखने को। जब बूढ़े भी रस-संगीत था, वह टूट गया है। ब्रह्मचर्य को उपलब्ध न होते हों, तो बच्चों को भी संन्यासी होने का वर्ण मनोवैज्ञानिक भेद हैं। और समाज में उनसे भी रस-संगीत | साहस करना चाहिए। तो शायद बूढ़ों को भी शर्म आनी शुरू हो, पैदा होता है। एकसुरा समाज ऐसा ही है जैसा इकतारा बजता है। | अन्यथा बूढ़ों को शर्म आने वाली नहीं है। एक तो इसलिए। इकतारे का भी थोड़ा रस तो है, लेकिन उबाने वाला है। और और दूसरा इसलिए भी कि जीवन का जो क्रम है, उस क्रम में 392

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